हिन्दू संगठन एवं धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दू जनजागृति समिति
‘तनावमुक्त जीवन एवं हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान !
मुंबई : देश के विभाजन के उपरांत पाकिस्तान और बांग्लादेश ने उनके देश के बहुसंख्यक नागरिकों के धर्म पर आधारित इस्लामी राजतंत्र का स्वीकार किया; परंतु भारत ने यहां के बहुसंख्यक हिन्दुओं की उपेक्षा कर धर्मनिरपेक्ष राजतंत्र आरंभ किया । स्वतंत्रता की प्राप्ति के उपरांत भारत में अल्पसंख्यकों को प्रधानता देकर हिन्दुओं का निरंतर दमन किया गया । हिन्दुओं में ‘धर्मनिरपेक्षता’ नाम का विषाणु संजोया गया और अन्य धर्मियों को उनके धर्म के आचरण के लिए खूली छूट दी गई । उसके कारण ही आज भारत के ९ राज्यों में हिन्दुओं पर अल्पसंख्यक बनने की स्थिति आ गई है । यदि यह ऐसा ही चलता रहा, तो हिन्दुओं को विश्व में कहीं शरण लेने हेतु एक भी स्थान नहीं बचेगा । यह स्थिति न आए, साथ ही हिन्दुओं पर हो रहे आघातों को रोककर वे देश में सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकें; इसके लिए हिन्दुओं को संवैधानिक पद्धति से हिन्दू राष्ट्र की मांग करनी चाहिए । हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट ने यह आवाहन किया । सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित ‘तनावमुक्त जीवन एवं हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’ विषय पर राष्ट्रप्रेमी नागरिक और जिज्ञासुओं के लिए हाल ही में आयोजित किए गए ऑनलाइन व्याख्यान में वे ऐसा बोल रहे थे ।
इस कार्यक्रम में सनातन की साधिका डॉ. (श्रीमती) सायली यादव ने ‘आनंदमय जीवन हेतु धर्माचरण की आवश्यकता’ विषय पर मार्गदर्शन किया । हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. बळवंत पाठक ने सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य का सभी को परिचय करवाया । इस व्याख्यान में मुंबई, ठाणे, रायगढ और गुजरात से राष्ट्रप्रेमी नागरिक और जिज्ञासु सहभागी थे ।
डॉ. (श्रीमती) सायली यादव ने यह आवाहन करते हुए कहा कि सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से निःशुल्क ऑनलाइन धर्मशिक्षावर्ग का आयोजन किया जाता है । अतः राष्ट्रप्रेमी और जिज्ञासु इस धर्मशिक्षावर्ग में जुडकर उसका लाभ उठाएं ।
शिक्षातंत्र की दुर्भाग्यजनक स्थिति में परिवर्तन लाने हेतु हिन्दू राष्ट्र स्थापना ही एकमात्र विकल्प ! – श्री. सुनील घनवट
स्वतंत्रता के उपरांत धर्मनिरपेक्षता के नामपर हिन्दुओं का इतिहास, धर्म, शिक्षाव्यवस्था आदि क्षेत्रों का योजनाबद्ध पद्धति से विकृतिकरण कर हिन्दुओं को उनके धर्म और गुरुकुल शिक्षापद्धति से वंचित रखा गया । धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में मदरसों में कुरआन और ईसाई विद्यालयों से बाईबल पढाया जाता है । विद्यालय-महाविद्यालयों से बच्चों को भगवद्गीता पढाने की पहल की गई, तो धर्मनिरपेक्षतावादी गिरोहों से शिक्षाव्यवस्था का भगवाकरण किए जाने का आक्रोश किया जाता है । इस दुर्भाग्यशाली स्थिति में परिवर्तन लाने हेतु हिन्दू राष्ट्र स्थापना ही एकमात्र विकल्प है ।
तनावमुक्त आनंदमय जीवन के लिए धर्माचरण आवश्यक ! – डॉ. (श्रीमती) सायली यादव, सनातन संस्था
अनेक संतों, द्रष्टा पुरुषों और भविष्यवेत्ताओं ने आनेवाला काल भयावह होने की बात कही है । आज के समय की कोरोना महामारी, चक्रवाती तूफान, भूकंप, ज्वालामुखी का प्रकोप और अनेक राष्ट्रों के मध्य बढते तनाव को देखकर यही वह आपातकाल है । तीसरा विश्वयुद्ध यह इनमें का सबसे बडा संकट होगा । ‘कौशिकपद्धति’ ग्रंथ में कहा गया है कि जब राजकर्ता धर्माधिष्ठित नहीं होते, तब प्रजा भी धर्मपालन नहीं करती । उसके कारण आपातकालीन स्थिति बनती है । इसके विपरीत धर्मपालन के कारण सुख, शांति एवं सफलता मिलकर प्रजा का कल्याण होता है । नित्य पूजा, नामजप, शास्त्र समझ लेकर त्योहार-उत्सव मनाना, कुलाचारों का पालन करना आदि को धर्माचरण कहा जाता है । प्रतिदिन साधना करने से जीवन में उत्पन्न तनाव दूर होकर आनंद मिलता है । साथ ही जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है ।