हिन्दू संगठन एवं धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दू जनजागृति समिति
हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से पश्चिम महाराष्ट्र एवं गोवा क्षेत्र के धर्मप्रेमियों के लिए ऑनलाइन अखंड बलोपासना आरंभ उपक्रम !
पुणे : प्रत्येक मनुष्य पर पितृऋण, गुरुऋण, ऋषिऋण एवं समाजऋण होता है । माता-पिता की सेवा कर उनका ऋण चुकाया जात सकता है, ऋषियों द्वारा बताई गई साधना कर उनका ऋण चुकाया जा सकता है और गुरु द्वारा बताई साधना कर उनका ऋण चुकाया जा सकता है । गुरु द्वारा बताई साधना का समाज में प्रसार कर अर्थात समष्टि साधना कर समाजऋण और गुरुऋण चुकाया जा सकता है । इसके साथ व्यष्टि साधना के साथ व्यष्टि साधना करना भी आवश्यक होता है । साधना करते समय केवल क्षात्रतेज नहीं, अपितु उसके साथ ब्राह्मतेज भी आवश्यक होता है । किसी भी बात को पूर्णता तक पहुंचाने हेतु ईश्वर के साथ में होने की आवश्यकता होती है । गुरुकृपायोग के अनुसार अष्टांग पद्धति से की गई साधना, ईश्वरप्राप्ति का विहंगम मार्ग है । इस मार्ग से साधना करने से आत्मविश्वास उत्पन्न होकर धर्म का कार्य करने के लिए बल मिलता है, साथ ही किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए सामना करना संभव होता है और वाणी में चैतन्य आता है । अतः हम सभी गुरुकृपायोग के अनुसार साधना कर हिन्दू राष्ट्र के साक्षी एवं भागीदार बनेंगे । सनातन संस्था की धर्मप्रचारक सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी ने यह मार्गदर्शन किया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से पश्चिम महाराष्ट एवं गोवा क्षेत्र के लिए चल रहे अखंड बलोपसना उपक्रम में उन्होंने उक्त मार्गदर्शन किया । इस उपक्रम के अंतर्गत स्वरक्षा प्रशिक्षण के विविध प्रात्यक्षिक सिखाए गए । इस कार्यक्रम का आरंभ शंखनाद और प्रार्थना से हुए । पुणे की कु. चारुशीला शिंदे ने सूत्रसंचालन किया, तो रत्नागिरी की कु. नारायणी शहाणे ने कार्यक्रम का उद्देश्य विशद किया ।
कार्यक्रम में उपस्थित धर्मप्रेमियों का मनोगत
१. शामल जाधव, पुणे : इस वर्ग के कारण शौर्यजागृति हुई । आरंभ में और अंत में लिए गए नामजप के कारण चैतन्य और आनंद मिला । इस वर्ग से व्यायाम सिखनेसहित आध्यात्मिक दिशा भी मिली ।
२. युवराज, गोवा : व्यायामप्रकार करते समय चैतन्य मिलकर शरीर में निहित कष्टदायक शक्तियां शरीर से बाहर निकल रही हैं, ऐसा प्रतीत हुआ । वर्ग में बताया जा रहा शौर्यप्रसंग सुनते समय ‘यह प्रसंग मानो मेरे सामने घटित हो रहा है’, ऐसा लग रहा था । व्यायामप्रकार करते समय पसीना निकल रहा था; परंतु भगवान का स्मरण करने पर शांत लग रहा है । इस वर्ग से स्वयं में क्षात्रतेज और ब्राह्मतेज बढता है ।
३. सुजाता पाटिल, चिंचवड, पुणे : वर्ग समाप्त हो जाने के उपरांत अब घर के काम करने से मन ऊब नहीं जाता । शौर्यप्रसंग सुनते समय चैतन्य मिलने का प्रतीत हुआ । उस प्रसंग में बताए अनुसार ‘स्वयं में भी क्षात्रतेज उत्पन्न होना चाहिए’, ऐसा लगता है ।
४. देवीप्रसाद, गोवा : जब वर्ग चल रहा था, तब मैं कोरोना से संक्रमित था; परंतु उस स्थिति में भी वर्ग से जुडने से लेकर स्वयं में बहुत सकारात्मकता प्रतीत हुई, साथ ही बहुत आनंद और उत्साह उत्पन्न हुआ ।
५. संजना कुराडे, कोल्हापुर : वर्ग के कारण स्वयं में आत्मविश्वास उत्पन्न होकर शौर्यजागृति हुई । व्याख्यान सुनने के उपरांत समष्टि सेवा और अधिक अच्छी करने का मन का निश्चय हुआ । अब भवानीमाता द्वारा दी गई विभूति सर्वत्र बिखराकर स्वरक्षा प्रशिक्षण के माध्यम से युवक-युवतियों को तैयार करने की मन में इच्छा हो रही है ।
६. वनी छत्रे, गोवा : बलोपासनावर्ग से स्वभावदोष न्यून होने की अनुभूति हुई, साथ ही आध्यात्मिक कष्ट घटकर मन को साधना का महत्त्व प्रतीत हुआ । वर्ग से जुडते हुए आरंभ में मुझे अच्छा नहीं लगत रहा था; परंतु सद्गुरु (कु.) स्वातीदीदीजी का मार्गदर्शन सुनने के उपरांत अच्छा लगा ।
७. आकांक्षा घाडगे, पुणे : बलोपासना वर्ग से बहुत शौर्यजागृति हुई । अब मैने स्वयंतक सीमित न रहकर हिन्दू धर्म की ज्योति हाथ में पकडकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होनेतक न रुकने का निश्चय किया है ।