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समाज के महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में धर्मकर्तव्य का निर्वहन करने हेतु डॉक्टर्स क्रियाशील बनें – मनोज खाडये

हिन्दूसंगठन एवं धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दू जनजागृति समिति

हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित विशेष ऑनलाइन परिचर्चा में २०० से भी अधिक डॉक्टरों का सहभाग

कोल्हापुर : पृथ्वी पर रहनेवाले मनुष्य को तीसरा विश्‍वयुद्ध भले ही नहीं चाहिए हो; परंतु वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति यही दर्शाती है कि तीसरा विश्‍वयुद्ध होकर रहेगा । संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा किए गए युद्धाभ्यास का निष्कर्ष यही है कि रुस-युक्रेन संघर्ष से बहुत शीघ्र तीसरा विश्‍वयुद्ध आरंभ हो सकता है । पहला और दूसरा विश्‍वयुद्ध खिलौनों के साथ खेलने जैसा लगे, इस प्रकार से महाभीषण विश्‍वयुद्ध अब अटल है । साथ ही संपूर्ण विश्‍व में धर्माचरण के अभाव के कारण अधर्म मच गया है । अतः आनेवाले समय में समाज के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में अपने धर्मकर्तव्य का भान रखकर डॉक्टर्स क्रियाशील बनें, इसके लिए ही इस परिचर्चा का आयोजन किया गया है । भगवान श्रीकृष्ण के ‘मेरे भक्त का कभी भी नाश नहीं होगा’, इस वचन का स्मरण रखकर स्वयं साधना कर उनका भक्त बनने हेतु प्रयास करना ही आनेवाले भीषण आपातकाल से पार लगने का एकमात्र उपाय है । हिन्दू जनजागृति समिति के गुजरात राज्य, पश्‍चिम महाराष्ट्र एवं कोंकण विभाग समन्वयक श्री. मनोज खाडये ने ऐसा प्रतिपादित किया । पश्‍चिम महाराष्ट्र, कोंकण एवं गोवा के डॉक्टरों के लिए ‘रोगियों की सेवा एवं साधना से आनंद कैसे प्राप्त करना चाहिए ?’ विषय पर आयोजित की गई ऑनलाइन परिचर्चा में वे ऐसा बोल रहे थे । इस परिचर्चा में २०० से भी आधुनिक वैद्य, आयुर्वेदिक वैद्य एवं होमिओपैथी वैद्य ऑनलाइन पद्धति से जुडे थे । सनातन संस्था की आधुनिक वैद्य ज्योति काळे ने भी इस परिचर्चा में जुडे डॉक्टरों का मार्गदर्शन किया ।

साधना करने से जीवन तनावमुक्त बनकर प्रत्येक प्रसंग में आनंदित रहना संभव होता है ! – आधुनिक वैद्य ज्योति काळे, सनातन संस्था

आज के समय में कोरोना महामारी के कारण समाज को कठिन प्रसंगों का सामना करना पड रहा है, साथ ही डॉक्टरों को भी शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक तनाव का सामना करना पड रहा है । आजकल डॉक्टरों के लिए स्वयं स्थिर रहकर रोगियों, उनके परिजनों और स्वयं के परिवारजनों की चिंता करने जैसी कसरत करनी पड रही है । अपने जीवन में घटित होनेवाले प्रत्येक प्रसंग में आनंदित रहने के लिए केवल साधना ही एकमात्र उपाय है । हमारे जीवन के ८० प्रतिशत दुखों का मूल कारण आध्यात्मिक है । इसके लिए नामजप करना, स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया अपनाकर अष्टांग साधना करना ही एकमात्र प्रभावशाली उपाय है । उसके कारण डॉक्टरों के जीवन में निहित तनाव दूर होकर प्रत्येक कठिन प्रसंग में आनंदित एवं तनावमुक्त रह पाना उनके लिए संभव हो जाएगा ।

डॉक्टरों के अभिप्राय एवं अनुभव

१. डॉ. गोरख मंद्रुपकर, सांगली : आजकल बढती आधुनिकता के कारण धार्मिक बातों की उपेक्षा हो रही है । व्याख्यान में डॉ. ज्योति काळे द्वारा रखे गए विषय से मैं सहमत हूं । समाज के एक महत्त्वपूर्ण घटक के नाते मुझे राष्ट्र एवं धर्म कार्य करना अच्छा लगेगा ।

२. डॉ. प्रवीण कोळी, बावची, सांगली : मैं विगत २३ वर्षों से चिकित्सकीय व्यवसाय में कार्यरत हूं । जबसे मुझे नामजप का महत्त्व समझ में आया है, तब से मैं नामजप कर रहा हूं । कुछ दिन पूर्व मेरे एक संबंधी को कोरोना का संक्रमण होने से उन्हें चिकित्सालय में ऑक्सिजन पर रखा गया था । उनका स्वास्थ्य निरंतर बिगड रहा था । वे भगवान पर विश्‍वास नहीं करते थे; परंतु कोरोनाकाल में आध्यात्मिक बल बढाने हेतु सनातन संस्था द्वारा बताया गया नामजप उन्हें बताने पर उन्होंने वह नामजप आरंभ किया । नामजप आरंभ करने के दूसरे ही दिन उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा ।

३. डॉ. ज्ञानेश्‍वर पाटिल : आजकल मैं प्रतिदिन ३ घंटे नामजप कर रहा हूं । इसके आगे कौनसा नामजप करना चाहिए, इसके संदर्भ में मेरा मार्गदर्शन करें । मुझमें निहित दोष एवं अहं दूर करने हेतु स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया अपनाने हेतु मेरा मार्गदर्शन करें ।

४. डॉ. अरविंद संकपाळ, इचलकरंजी (जनपद कोल्हापुर) : इससे पूर्व मुझे नामजप का महत्त्व समझ आने पर मैने नामजप करना आरंभ किया । तब से मेरी रक्तचाप एवं तनाव को न्यून करने की गोलियां अल्प हो गई हैं । नामजप के कारण मेरा मनोबल बढ गया है ।

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