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‘सुराज्य निर्माण में अधिवक्ताओं का योगदान !’ इस विषय पर ऑनलाइन संवाद !

हिन्दू त्योहारों का दुष्प्रचार कर अन्य पंथियों को अच्छा दिखाना, यह वैचारिक आतंकवाद है ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

गणेशोत्सव आने पर जलप्रदूषण होता है, दीपावली में फटाके फोडे तो वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता है, ऐसा व्यापक दुष्प्रचार कर हिन्दुओं के श्रद्धास्थानों को कलंकित किया जाता है, जिससे हिन्दुओं में अपने धर्म के प्रति हीनभावना निर्माण हो । जो भी अच्छा है, वह केवल ईसाई-मुसलमान पंथीयों का ही है, यह दिखाने के लिए सभी प्रयास किए जा रहें हैं । यह एक वैचारिक आतंकवाद है । मस्जिदों पर लगे भोंपुओं पर चर्चा नहीं होती; परन्तु हिन्दुओं के त्योहार आने पर ध्वनिप्रदूषण की चर्चा होने लगती है । यह भी वैचारिक आतंकवाद ही है, ऐसा सटीक प्रतिपादन हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने किया । वे ‘हिन्दू विधिज्ञ परिषद’ की 9 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित ‘सुराज्य निर्माण में अधिवक्ताओं का योगदान !’ इस विषय पर ‘सनातन संवाद’ इस ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे । इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण समिति के जालस्थल Hindujagruti.org, यू-ट्यूब और ट्विटर द्वारा 2645 लोगों ने देखा ।

अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने आगे कहा कि, मालेगांव बमविस्फोट का नाम आने पर हमें साध्वी प्रज्ञासिंह के नाम का स्मरण होता है; परन्तु वर्ष 2008 के विस्फोट के पहले वर्ष 2006 के मालेगांव विस्फोट के सभी आरोपी मुसलमान थे । ‘उन्हें पाकिस्तान ने प्रशिक्षित किया’, ऐसा आरोपपत्र एटीएस ने न्यायालय में प्रस्तुत किया था । ‘सीबीआइ’ ने भी यही बताया; परंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार को यह अच्छा न लगने पर उन्होंने ‘एनआइए’ को जांच सौंपकर सभी मुसलमान आरोपीयों को निर्दोष बताकर हिन्दुओं को आरोपी बनाया । इसीकी पुनरावृत्ति दाभोळकर अभियोग में हुई । पहले नागोरी और खंडेलवाल की पिस्तौल से हत्या हुई, इसलिए उन्हें बंदी बनाया; तदुपरांत वे नहीं, तो अकोलकर और विनय पवार के नाम बताए गए और राज्य में उनके पोस्टर्स लगाएं गए । बाद में वे भी नहीं, तो शरद कळसकर और सचिन अंदुरे हत्यारे है, ऐसा बताया जाने लगा । किसी सॉफ्टवेयर के नए-नए ‘वर्जन’ आते है, यह तो सुना था; किन्तु एक ही अभियोग के नए-नए ‘वर्जन’ कैसे हो सकते हैं ?, ऐसा प्रश्‍न उन्होंने उपस्थित किया ।

इस समय हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक सदस्य पू. अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णीजी ने कहा कि, हिन्दू कार्यकर्ताओं को झूठे अभियोगों में फंसाने में केवल पुलिस और प्रशासन ही नहीं, अपितु नेता भी सहभागी होते हैं । नंदूरबार जिले के कुछ हिन्दू कार्यकर्ताओं को पुलिस और प्रशासन ने अनुचित पद्धति से तडीपार किया था । तब हमने वह तडीपार रहित करवाकर पुलिस से 10 हजार रूपए का दंड वसूल किया । हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संगठक अधिवक्ता नीलेश सांगोलकर ने मंदिर सरकारीकरण के कारण हुए घोटाले कैसे उजागर किए, यह बताते हुए मस्जिदों के भोंपुओं के कारण होनेवाले ध्वनिप्रदूषण के विषय में सूचना के अधिकार तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का आधार पर परिवाद (शिकायत) करना चाहिए, ऐसा आवाहन किया । इस समय ‘भारत को जो वैभवशाली सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर प्राप्त हुई है, वह नई संवैधानिक भाषा में समाज तक पहुंचाना चाहिए’, ऐसा मत सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता आर. व्यंकटरमणी ने व्यक्त किया ।

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