नई दिल्ली : हम सभी जानते हैं कि राइट ब्रदर्स ने साल 1903 में हवाई जहाज का आविष्कार किया था। उन्होंने बाकायदा खुद इस हवाई जहाज में बैठकर दुनिया का पहला हवाई सफर कर के दिखाया था।
इससे पहले लोग हवाई सफर को दूर की कौड़ी अथवा असंभव मानते थे। लेकिन राइट ब्रदर के इस आविष्कार ने एविएशन इंडस्ट्री की नींव रखी।
लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि राइट ब्रदर्स से सात साल पहले ही यानि कि साल 1895 में शिवकर बापूजी तलपड़े नामक एक भारतीय नागरिक ने मुंबई की चौपाटी के नजदीक लोगों को हवाई उड़ान भर कर दिखा दी थी।
तलपड़े ने इसके लिए प्राचीन भारतीय संत भारद्वाज के बनाए हवाई जहाज की डिजाइन की मदद ली थी। बताया जाता है कि लगभग 125 साल पहले की गई उनकी यह उड़ान सफल रही थी।
भारतीय संत जानते थे विमान बनाना
4 जनवरी को 102वीं प्राचीन भारतीय विज्ञान अधिवेशन में प्रस्तुत किए जाने वाले अनेक पत्रों में एविएशन पर भी एक पत्र होगा।
इस अधिवेशन में यह पत्र प्रस्तुत करने वाले कैप्टेन आनंद बोदास और अमेया जाधव के मुताबिक प्राचीन संस्कृत साहित्य में फ्लाइंग मशीन या विमान के बारे में संपूरण विवरण दिया गया है।
ऎसे काफी लिखित सबूत मिले हैं जिनसे यह साफ जाहिर होता है कि प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक-संत अगस्त्य और भारद्वाज ने ईसा पूर्व ही विमान बनाने की तकनीक का विकास कर लिया था।
पायलट के लिए सूट का आविष्कार
विमानन पर एक पत्र में यह बताया गया है कि संत भारद्वाज ने पायलट के लिए वायरस प्रूफ, वॉटर प्रूफ और शॉक प्रूफ सूट का भी जिक्र किया है। उन्होंने पर्यावरण में 25 तरह के वायरस होने का भी उल्लेख किया जो कि मानव शरीर व अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
प्राचीन भारत में किए जाते थे जटिल ऑपरेशन
4 जनवरी को होने वाले इस अधिवेशन का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर करेंगे और भोपाल की कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के उप कुलपति इसकी अध्यक्षता करेंगे।
आयुर्वेदाचार्य अश्विन सावंत अपने पेश किए जाने वाले पत्र में ऋग वेद का हवाला देते हुए बताएंगे कि किस तरह प्राचीन भारत में 6000 ईसा पूर्व इंसानी शरीर के जटिल से जटिल ऑपरेशन किए जाते थे।
इन ऑपरेशन में प्लास्टिक सरजरी, आंखो की सर्जरी, बच्चेदानी से जिंदा या मरा बच्चा निकालना जैसे अति जटिल शल्य क्रियाएं शामिल हैं।
सभी पत्रों में सबूत के तौर पर इन प्राचीन साहित्यों का हवाला दिया जाएगा।
ऑपरेशन के प्राचीन औजारों की प्रदर्शनी
इस अधिवेशन में शल्य क्रियाओं में इस्तेमाल किए जाने वाले प्राचीन औजारों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी।
यह औजार विख्यात प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक संत सुश्रुतु इस्तेमाल किया करते थे। हर खास ऑपरेशन के लिए खास तरह के औजार का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे कि पैर से कांटा निकालने के लिए भी एक खास औजार हुआ करता था।
सुश्रुतु ने कहा था कि इंसान की लाश तीन दिन पानी में रहकर फूल जाती है जिसके बाद उसके अंदर के सभी अंग-प्रत्यंग, नसों व नाडियों को आसानी से देख कर उनको पढ़ा जा सकता है।
इस पत्र में शल्य क्रियाओं में काम आने वाले 20 तरह के तीखे और 101 भौंदे औजारों का जिक्र किया जाएगा।
स्त्रोत : पत्रिका