फादर स्टेन स्वामी का हाल ही में निधन हुआ है । फादर स्टेन स्वामी पर देश के प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदी की हत्या के षड्यंत्र में सहभागी होने के आरोप था । इसलिए उन्हें ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण’ ने (‘एनआईए’ ने) बंदी बनाया था । उन पर नक्सलवादियों को सहायता और गैरकानूनी कृत्य करने के गंभीर अपराध प्रविष्ट थे । उनके निधन पर अनेकों ने शोक व्यक्त किया है । कुछ बडे नेताओं ने राष्ट्रपति को भी पत्र लिखे हैं । वास्तव में फादर स्टेन स्वामी को व्यवस्थित चिकित्सा उपचार मिल रहे थे । उसके साथ ही उन्हें चर्चप्रणित निजि चिकित्सालय में रखने की विशेष छूट भी उच्च न्यायालय ने दी थी । तब भी यदि इस पर राजनीति हो रही हो, तो वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है । वास्तव में कारागृह के अन्य कैदियों के स्वास्थ्य का सूत्र विचार में आता है । फादर स्टेन स्वामी के समान अन्य कितने कैदियों के प्रश्नों की ओर ये तथाकथित आधुनिकतावादी, सेक्युलर और नेता ध्यान देते हैं ? आर्थर रोड कारागृह के नालासोपारा अभियोग में आरोपी सुधन्वा गोंधळेकर और गणेश मिस्कीन को उपचार मिलने के लिए आवेदन दिया गया है । उनकी ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता ? ऐसे प्रकरणों में तथाकथित आधुनिकतावादी और सेक्युलर लोग मौन क्यों रहते हैं ? इन कैदियों को भी फादर स्टेन स्वामी के समान उपचार लेने की छूट मिलनी चाहिए, ऐसी मांग हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने की है ।
आर्थर रोड कारागृह के नालासोपारा अभियोग में आरोपी सुधन्वा गोंधळेकर की दोनों ओर की दाढों में कीडा लग गया है तथा उन्हें उपचार भी नहीं मिलते । जब तक उपचार नहीं मिलते, तब तक वे भोजन भी नहीं कर पाते । विगत दो महीनों से ऐसी स्थिति है । दूसरी ओर एक और आरोपी गणेश मिस्किन वेरिकोज वेन्स से पीडित हैं । न्यायालय में आवेदन देकर भी उन्हें अभी तक उपचार नहीं मिले हैं । फादर स्टेन की मृत्यु पर शोक व्यक्त करनेवाले क्या ऐसे कैदियों की समस्याएं सुलझाने के लिए आगे आएंगे ? अथवा यह केवल मृत्यु पर होनेवाली राजनीति है ? प्रत्यक्ष में यह तंत्र कब जागकर न्याय करनेवाला है ? ऐसा प्रश्न हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने उपस्थित किया है ।
कैदियों को व्यवस्थित उपचार मिलने चाहिए और उनके अभियोगों पर शीघ्र निर्णय होना चाहिए । गत छह वर्ष से दाभोळकर हत्या के अभियोग में कारागृह में रखे गए निर्दोष डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे का दुःख फादर स्टेन स्वामी के दुःख से कम नहीं है । इस ओर भी ध्यान दिया जाए, ऐसी हमारी भावना है, यह हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने कहा है ।