वैशाख कृष्ण १३, कलियुग वर्ष ५११५
ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश स्थित) में पुरी पीठके शंकराचार्य स्वामी निश्चनलानंदजी सरस्वतीके मार्गदर्शनानुसार साधना तथा राष्ट्ररक्षणके विषयपर आयोजित शिविरमें संत तथा धर्माभिमानियोंका आवाहन !
ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश) : संस्कार, नैतिक मूल्य, धर्माचरण, धर्माभिमान नष्ट होनेके कारण आज समाज, राष्ट्र तथा धर्मपर विविध माध्यमोंसे अघात हो रहे हैं । केवल दंडविधान करना पर्याप्त नहीं होगा, अपितु उसे रोकने हेतु हम सबको इकट्ठा एवं संकल्पबद्ध होकर सनातन परंपराके धर्माचार्योंके नेतृत्वमें संगठित होकर कार्य करना पडेगा, पुरी पीठके शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वतीके मार्गदर्शनानुसार ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश) में आयोजित साधना तथा राष्ट्ररक्षण शिविरमें संत एवं धर्माभिमानियों द्वारा ऐसा आवाहन किया गया ।
२५ अप्रैल से २८ अप्रैलतक ओंकारेश्वर स्थित अन्नपूर्णा आश्रममें शिविरका आयोजन किया गया था । इसमें भारत, मलेशिया, बांगलादेश, श्रीलंका आदि देशोंसे संतोंके साथ विविध संगठनोंके प्रतिनिधि उपस्थित थे । हिंदू जनजागृति समितिके राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे सम्मिलित हुए थे ।
शिविरमें प्रस्तुत किए गए महत्त्वपूर्ण सूत्र….
पिछले १०० वर्षोंमें ११ बार भारतका विभाजन !
१. ख्रिस्ताब्द १९११ से २०११ इन १०० वर्षोंमें ११ बार भारतका विभाजन हुआ । ख्रिस्ताब्द १९११ में अंग्रेजोंने श्रीलंकाको भारतसे अलग किया । ख्रिस्ताब्द १९३५ में म्यानमार हमसे अलग हुआ । १९४७ में पाकिस्तान विभाजित हुआ । ख्रिस्ताब्द १९५० में तिब्बत चीनमें गया । पं. नेहरूके कारण ख्रिस्ताब्द १९५४ में तथा ख्रिस्ताब्द १९६२ में ६४ सहस्त्र चौ. किलोमीटर क्षेत्र चीनके नियंत्रणमें गया । ख्रिस्ताब्द १९६३ में अंदमान-निकोबारका कुछ क्षेत्र म्यानमार देशको दिया गया । ख्रिस्ताब्द १९७२ में इंदिरा गांधीने कच्च थिबूद्वीप श्रीलंकाको दिया । ख्रिस्ताब्द १९८२-१९८३ में चीनने अरुणाचल प्रदेशके भू-भागपर अतिक्रमण किया । ख्रिस्ताब्द १९९२ में नरसिंहरावने ३ बीघा क्षेत्र बांगलादेशको दिया । इस प्रकार मतोंके हेतु भारत विभाजित हुआ है । पाकव्याप्त कश्मीर भारतका भूभाग होते हुए भी अक्साई चीन पाकिस्तानने चीनको किराएपर दिया है । ये सारी घटनाएं कांग्रेस प्रशासनके कार्यकालमें घटी हैं ।
२. आज ४-५ वर्षोंकी लडकियोंपर लैंगिक अत्याचार करके उनकी हत्या करनेके दृष्कृत्य हो रहे हैं । २८ वर्षसे नीचेके ४३ प्रतिशत बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं । इन बच्चोंका मनोबल किसने तोडा ? उनका आत्मविस्वास क्यों समाप्त हुआ ? क्या सबका नैतिक उत्तरदायित्व लेने हेतु कोई सिद्ध है ? ये घटनाएं केवल दंडविधान करनेसे नहीं रुकेंगी । इस हेतु सनातन परंपराके धर्माचार्योंका नेतृत्व तथा आशीर्वादके आधारपर सबको संगठित होना चाहिए ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात