हिंदू मंदिरों की संपत्ति का इस्तेमल पूजा-पाठ से हटकर अन्य कार्यों के लिए होता देख मद्रास हाई कोर्ट की मदुरई बेंच ने अपनी नाराजगी जाहिर की है। जस्टिस टीएस शिवांगन्नम और जस्टिस एस अनंथी की पीठ ने संबंधित केस पर सुनवाई करते हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग की आलोचना की।
पीठ ने कहा कि विभाग द्वारा मंदिर की संपत्ति पर व्यापारिक गतिविधियों को अनुमति मिलने से वहाँ चल रहीं दुकानें यदि शॉपिंग मॉल नहीं बनीं तो शॉपिंग सेंटर तो बन ही गई हैं। पीठ ने आदेश में कहा,
“प्रशासन ने विभिन्न मंदिरों की विरासत मूल्यों की कदर किए बिना मंदिर के परिसर और उनके प्रांगण व बरामदों को व्यापारिक गतिविधियों के लिए लीज पर दे दिया, जहाँ ऐसी चीजों का धंधा हो रहा है जिसका मंदिर या पूजा पाठ से कोई लेना-देना नहीं है। ये दुकानें वस्तुत: शॉपिंग सेंटर बन चुकी हैं अगर शॉपिंग मॉल नहीं बनीं।
कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि लोगों को मदुरई मीनाक्षी अम्मान मंदिर के बाहर हुई आगजनी की घटना देखने के बाद भी सबक नहीं मिला है, जहाँ एक दुकान में लगी आग से अन्य 30 दुकानें नष्ट हो गई थीं। कोर्ट ने कहा कि इस दयनीय स्थिति के लिए केवल हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग (एचआर एंड सीई विभाग) को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए है बल्कि इसके लिए वह ठेकेदार भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने बिना पर्याप्त फंड के मंदिरों को छोड़ा।
कोर्ट ने टिप्पणी की, कि उनकी राय में कई लोग हैं जिनकी वजह से मंदिर को फंड की कमी हो रही है, पुजारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा और अन्य रीति रिवाज भी फंड की कमी के चलते नहीं हो पा रहे। कोर्ट ने कहा कि ये पट्टेदार/ठेकेदार वो मुख्य लोग हैं जिन्हें इन हालातों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। कोर्ट ने बताया कि अदालत में कई ऐसे मामले हैं जहाँ इन ठेकेदारों ने इस संबंध में दावा किया है कि वे किराए या लाइसेंस शुल्क के रूप में एक मामूली राशि का भुगतान करके मंदिर की संपत्ति में अनिश्चित काल तक बने रहने के हकदार हैं।
उल्लेखनीय है कि मद्रास हाईकोर्ट की बेंच ने अपनी टिप्पणी के सुरेश द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए की। ये याचिका कन्याकुमारी के आदिकेशव मंदिर में होने वाली पूजा के संबंध में थी। सुरेश, धर्म सेना नामक संगठन के उपाध्यक्ष हैं जो चाहता है कि मंदिर में पूजा और अनुष्ठान करने के लिए विशेष मठ हो। हालाँकि न्यायाधीशों ने इस पर कहा कि अदालत इस पर फैसला नहीं कर सकती और उन्हें उचित मंच से संपर्क करने का निर्देश दिया।
संदर्भ : OpIndia