माघ कृष्ण पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११६
पहले पेरिस में चार्ली हेब्दो के दफ्तर पर आतंकी हमला, फिर प्रतिक्रिया में मस्जिदों पर हमले। फ्रांस का माहौल बिगड़ता जा रहा है। ‘इस्लामोफोबिया’ का खतरा इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि इस देश की जनसंख्या में एक बड़ा हिस्सा मुस्लिमों का है। हमलों से फ्रांस और यूरोप में रह रहे मुस्लिम परिवारों में डर बैठ गया है कि कहीं उनके लिए स्थितियां और न बिगड़ जाएं, खासकर तब जब हालात पहले से खराब हैं। 9/11 के बाद जिस तरह अमेरिका और ब्रिटेन में भी मुस्लिम समुदाय को खासा संघर्ष करना पड़ा था और आज भी करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए मुस्लिमों की आशंका गलत नहीं कही जा सकती। हालत ये तक बन गई कि मुस्लिम युवाओं को पायलट ट्रेनिंग से दूर रखा जाने लगा, आज भी उन्हें बमुश्किल वीज़ा मिलता है। हालात तकरीबन उसी ओर जा रहे हैं।
यूरोप में बढ़ रही मुस्लिम आबादी
सबसे ज्यादा मुस्लिम फ्रांस में ही बसते हैं। यहां हर दस में से एक व्यक्ति मुस्लिम है, जबकि पूरे यूरोप का हर दूसरा व्यक्ति। इनमें से ज्यादातर उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका के उन देशों से आए हैं, जहां पहले कभी फ्रांस का शासन था। यहां की मस्जिदों में हर हफ्ते चर्च ऑफ इंग्लैंड से ज्यादा भीड़ होती है। दूसरी ओर, यूरोप में भी मुस्लिमों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। यूरोप के ज्यादातर देशों में इनकी जनसंख्या में बीते कुछ सालों में खासी तेजी देखी गई है।
यूरोप में धीरे-धीरे पनपते ‘इस्लामोफोबिया’ पर यह रिपोर्ट पेश कर रहा है, जिससे आप जान पाएंगे कि मुस्लिम समुदाय यहां बढ़ तो रहा है, लेकिन पनप नहीं पा रहा। आज भी यूरोपीय देशों, खासकर फ्रांस में मुस्लिमों के साथ भेदभाव होता है और उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं है। इन हालात में ये हमले यूरोप में संघर्ष कर रहे मुस्लिम समुदाय के लिए हालात बद से बदतर कर सकते हैं।
2030 तक यूरोप में होंगे 5 करोड़ 80 लाख मुस्लिम
1990 में यूरोप 2 करोड़ 96 लाख मुस्लिमों वाला महादेश था। अगले 20 साल में यानी 2010 तक यह जनसंख्या बढ़कर 4 करोड़ 41 लाख हो गई। Pew research Region & Public Life Project की रिपोर्ट कहती है, 2030 तक यूरोप में मुस्लिमों की आबादी बढ़कर 5 करोड़ 80 लाख तक पहुंच जाएगी।
आज यूरोप की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों का 6 फीसदी हिस्सा है, जो 1990 में महज 4.1 फीसदी था। आज आबादी 8 फीसदी तक पहुंच गई है। हालांकि, दुनिया के मुकाबले यूरोप में काफी कम मुस्लिम हैं। Pew के अनुसार, 2030 तक दुनिया की मुस्लिम आबादी का 3 फीसदी से कम हिस्सा यूरोप में गुजर-बसर करेगा। 2010 में यह आंकड़ा 2.7 फीसदी का था।
इन देशों में बढ़ेगी आबादी
यूरोप में रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम पूर्वी यूरोप में बसते हैं लेकिन अगले 20 सालों में इनकी बढ़ती जनसंख्या यूके, फ्रांस, इटली, जर्मनी और पूरे यूरोप में फैल जाएगी।
एमनेस्टी ने भी कहा था-मुस्लिमों से होता है भेदभाव
2012 में मानवाधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने भी अपनी रिपोर्ट में माना था कि जो मुसलमान सार्वजनिक तौर पर अपने धर्म के प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं, उनके खिलाफ यूरोप में भेदभाव किया जाता है। रिपोर्ट में संगठन का कहना था कि पारंपरिक वेशभूषा में रहना मुसलमानों की शिक्षा और उनके लिए व्यवसाय के अवसर कम करता है। रिपोर्ट में बेल्जियम, फ्रांस, नीदरलैंड और स्पेन में मुसलमान महिलाओं के नकाब पहनने पर और वर्ष 2009 में स्विट्जरलैंड में मीनारों पर लगाई गई रोक का उल्लेख किया गया।
बुर्के पर प्रतिबंध
कई यूरोपीय देशों में मुसलमान महिलाओं के बुर्का पहनने पर पाबंदी की आलोचना करते हुए ‘एमनेस्टी’ ने इन सरकारों को मुसलमानों के प्रति बने पूर्वाग्रहों और अवधारणाओं के बारे में सही जानकारी प्रसारित करने की अपील की थी, जिसे कोई खास तवज्जो नहीं दी गई।
एमनेस्टी के विशेषज्ञ मार्को पेरोलिनी का कहना है, “धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक या पोशाक पहनना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हिस्सा हैं और ये अधिकार सबको मिलने चाहिए। उनके मुताबिक, ”नकाब पर पाबंदी को सुरक्षा कारणों से सही नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि ये किसी सुरक्षा जांच का हिस्सा न हो।”
मुसलमानों से दूर रहते हैं बहुसंख्यक ईसाई
फ्रांस में मुस्लिम परिवारों की तीसरी पीढ़ी से भी भेदभाव की खबरें अक्सर आती रहती हैं। मुस्लिम बच्चों से स्कूल में ठीक बर्ताव नहीं किया जाता और यही हाल मुस्लिम कर्मचारियों का भी है। बहुसंख्यक ईसाई मानते हैं कि मुस्लिम उनमें घुल-मिलकर धीरे-धीरे उनके देश पर कब्जा कर लेंगे।
सिर्फ संघर्ष कर रहे हैं मुस्लिम
यूरोप में मुसलमानों को कई तरह के संघर्ष करने पड़ रहे हैं। उनके पास न तो स्थायी घर हैं और न ही नौकरी। जो काम उन्हें मिलता भी है, उसमें भी उन्हें कम मजदूरी मिलती है। EUMC की एक विस्तृत रिपोर्ट ‘Muslims in the European union: disrimination and islamophobia’ के मुताबिक, मजदूरी और बेहतर रोजगार अवसरों के मामले में यूरोपीय मुस्लिम खासी परेशानी झेल रहे हैं। बेरोजगारी के आंकड़ों में भी बड़ा अंतर है। इसके अलावा, कई तरह की परिस्थितियां यहां रह रहे मुस्लिमों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं। फ्रेंच मीडिया भी समय-समय रिपोर्ट प्रकाशित करता रहा है कि मॉस्को में अस्थायी झोपड़ियों में रह रहे मुस्लिम स्थायी निवास के इंतजार में है।
गुरुवार को फ्रांस के मुस्लिम फेडरेशन के 20 इमामों ने चार्ली हेब्दे के दफ्तर पहुंचकर मारे गए लोगों को अपनी ओर से श्रद्धांजलि दी थी। मॉस्को के उपनगर ड्रेंसी के इमाम हसन चालघौमी ने इस मौके पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की और मुस्लिम समुदाय की ओर से हमले की निंदा की। हालांकि, उनकी एक कोशिश हमले के बाद मुस्लिमों में बैठे डर को कम करने की भी थी, लेकिन हालात अभी सामान्य नहीं हुए हैं। यूरोप खासकर फ्रांस में रहने वाले मुस्लिम अपने कल के लिए सशंकित हैं।
मुस्लिम परिवार मानते हैं- डरे हुए हैं, मुश्किलें बढ़ेंगी
चार्ली हेब्दे के दफ्तर पर हुए हमले और प्रतिक्रिया में मस्जिदों पर किए गए हमले से फ्रांस के मुस्लिम खौफज़दा हैं। वे स्वीकार करते हैं कि इससे हालात बिगड़ेंगे। वे अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर डरे हुए हैं। पेरिस के पोर्टे डे ला विलेटे स्थित रिंग रोड में दोपहर की नमाज अता करने आए युवक अली ‘गार्जियन’ से कहते हैं, “लोग अब मुस्लिमों से नफरत करेंगे। उन लोगों ने सभी मुस्लिमों के लिए दिक्कतें पैदा कर दी हैं। हम सामान्य लोग हैं, अपने काम पर जाना चाहते हैं, लेकिन हालात एकदम से बदल गए हैं। हम उनकी तरह नहीं है।” अली पेरिस सिटी हॉल में काम करते हैं।
– ‘इस तरह पत्रकारों पर हमला करना सही नहीं है। इससे हमारे लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। हम इस देश को प्यार करते हैं, हम उनके जैसे नहीं हैं, लेकिन ऐसे हमले हमें फ्रेंच लोगों के सामने उनके जैसा बना देते हैं।’-नौरुद्दीन, टैक्सी ड्राइवर, पेरिस
– ‘अगर हमला करने वालों को लगता है कि इस तरह लोग मुस्लिमों से नफरत करना बंद कर देंगे, तो वे गलत हैं। मेरा इस्लाम ऐसा नहीं है। वह आधुनिक है, विकासशील है और ऐसे किसी भी हमले को समर्थन नहीं करता।’– मोहम्मद अकलीत (37), पेरिस
लोग कहने लगे हैं- मुस्लिमों से नफरत करना सही है
इसी तरह 22 साल के फाइनेंस स्टूडेंट राशिद मोहम्मद कहते हैं, “हमले के बारे में पता चलने पर पहले तो मुझे काफी दुख हुआ था, लेकिन जब ये पता चला कि हमलावर मुस्लिम थे, तो मैं डर गया।” राशिद के मुताबिक, ”अब हालात और बदतर हो जाएंगे। फ्रेंच लोगों में हमारे प्रति घृणा बढ़ेगी और गुस्सा भी। लोग अब कहने लगे हैं मुस्लिमों से नफरत करना सही है, क्योंकि वे जाहिर तौर पर पागल होते हैं।”
अब हम भी अपराधी हो गए
पेरिस में मानवाधिकार कार्यकर्ता सामिया हथरुउबी (29) कहती हैं, “कई मुस्लिम संगठनों ने हमले की निंदा की है। जिन लोगों ने 12 लोगों को मारा है और इसे इस्लाम से जोड़ा है, कहने की जरूरत नहीं है कि उन्होंने हमें कहां पहुंचा दिया।” सामिया कहती हैं, “मैं फ्रेंच हूं, मैं यहां बड़ी हुई हूं, यहीं पढ़ी हूं, लेकिन अब मैं भी जैसे दूसरों की तरह अपराधी बन गई हूं।”
स्त्रोत : भास्कर