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…तो सावित्री नदी में बहे 40 से अधिक लोगों की मृत्यु का जिम्मेदार कौन ? – हिन्दू जनजागृति समिति का प्रश्‍न

‘सावित्री नदी दुर्घटना’ प्रकरण में जांच आयोग द्वारा सभी को ‘क्लीन चीट’ देने का विवादास्पद प्रकरण !

अलिबाग (जि. रायगड) में प्रेस कांफ्रेंस बाये ओर से हिन्दू जनजागृति समिति के मुंबई, ठाणे एवं रायगड समन्वयक श्री. सागर चोपदार, हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी (बिच मे ) और हिन्दू जनजागृति समिति की श्रीमती विशाखा आठवले

2 अगस्त 2016 को हुई तीव्र वर्षा में रायगड जिले की सावित्री नदी पर बना पुल बह गया । जिसमें 2 बस और 1 चार पहिया वाहन बह जाने से लगभग 40 से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु हुई । इस प्रकरण में प्रशासन की गंभीर चूक सुस्पष्ट दिखाई देते हुए भी जांच आयोग ने सभी आरोपियों को ‘क्लीन चिट’ दी है । यह दोषियों की रक्षा करने जैसा है, इसलिए इसे ‘क्लीन चिट’ नहीं, अपितु ‘चीटींग क्लीन’ कहना चाहिए । जिनका जीवन उद्ध्वस्त हुआ ऐसे दुर्घटनाग्रस्तों पर यह ब्योरा अन्याय है । एक संवेदनशील घटना की जांच करने हेतु नियुक्त किया गया आयोग ही यदि दोषियों की रक्षा कर असंवेदनशीलता दिखा रहा हो, तो सावित्री नदी में बहे 4० से अधिक लोगों की मृत्यु का जिम्मेदार कौन है? ऐसा प्रखर प्रश्‍न हिन्दू जनजागृति समिति के मुंबई प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी ने किया ।

सावित्री नदी दुर्घटना के 5 वर्ष पूर्ण होने पर भी दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, इस विषय में आवाज उठाने के लिए अलिबाग (रायगड) आयोजित की गई पत्रकार परिषद में वे बोल रहे थे । इस परिषद में आयोग के इस ब्योरे की विशेषज्ञों से पुन: जांच करवाई जाए और इस दुर्घटना हेतु उत्तरदायी लोगों पर कठोर कार्यवाही की जाए, ऐसी मांग भी डॉ. धुरी ने की ।

तत्कालीन सरकार द्वारा 5 वर्ष पूर्व हुई इस दुर्घटना की न्यायालयीन जांच हेतु उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शाह की अध्यक्षता में स्थापित किए गए एक सदस्यीय आयोग ने 30 नवंबर 2017 को ब्योरा प्रस्तुत किया । इस विषय में आयोग द्वारा उपेक्षित गंभीर सूत्र हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।

1. सावित्री नदी पर बनाया गया पुल खतरे की स्थिति में होते हुए भी उस विषय में पुल पर किसी भी प्रकार का सूचनाफलक अथवा बाढ का स्तर दिखानेवाला ‘इंडिकेटर’ नहीं लगाया गया था ।

2. पुलिस और राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण का उस स्थान पर पहरा देने का दायित्व था, तब बाढ की स्थिति में वहां पहरा नहीं था । दुर्घटना के कुछ समय उपरांत पुलिस घटनास्थल पर पहुंची ।

3. पुलिस अधिकारी श्री. सास्ते और राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण के अधिकारी श्री. गायकवाड ने दुर्घटनास्थल पर उस संध्याकाल पुल पर पहरा देने की साक्ष (गवाही) आयोग को दी है; परंतु जब बाढ के पानी में वृद्धि हो रही थी, उस समय भी उन्होंने रात को पहरे का नियोजन क्यों नहीं किया ? अथवा वरिष्ठों को सूचित क्यों नहीं किया ? इस पर आयोग ने कोई आपत्ति क्यों नहीं उठाई ?

4. दुर्घटना की रात पुल पार करनेवाले नागरिक तथा तत्कालीन उपपुलिस निरीक्षक एस.एम. ठाकुर द्वारा दिए कथन में बताया गया कि पुल के दोनों ओर फलक नहीं थे । इसके विपरीत राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि फलक लगा था और उसके लिए ठेकेदार को देयक (बिल) भी दिया गया था । इस विरोधाभास की आयोग ने उपेक्षा की ।

5. पुल गिरने की आशंका से एक नागरिक ने तत्काल 100 क्रमांक पर सूचित करने का प्रयास किया; परंतु दूरभाष नहीं उठाया गया । इसलिए अन्य माध्यमों से पुलिस को सूचित करना पडा । यह विलंब न हुआ होता, तो संभवत: यह दुर्घटना टल जाती ।

6. शिवसेना के स्थानीय विधायक श्री. भरतशेठ गोगावले ने पुल की सुरक्षा पर विधीमंडल में प्रश्‍न उपस्थित किया, उस समय हुई चर्चा में यह पुल यातायात हेतु बंद करने का सुझाव दिया गया था । उस पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई ?

7. वर्ष 2012-2016 की कालावधि में पुल की प्रतिवर्ष 2 बार जांच होना अपेक्षित होते हुए भी एक बार ही की गई । जांच उपअभियंता, कार्यकारी अधिकारी और ‘सुपरीटेंडिंग’ अभियंता इन तीन वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा एकत्रित जांच की जाए, ऐसे मापदंड होते हुए भी वैसी जांच एक बार भी क्यों नहीं की गई ?

8. वर्ष 2005 में राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण के तत्कालीन कार्यकारी अभियंताओं   द्वारा सावित्री पुल के विषय में सुझाए गए सुधारों के अनुसार वर्ष 2006-07 में कार्यवाही की गई, ऐसा राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों ने आयोग को बताया था । वास्तव में यह सुधार वर्ष 2007-08 के रजिस्टर में भी पाए गए हैं । यह ढिलाई है या भ्रष्टाचार ?

9. पुल का निर्माण कार्य मजबूत रहे, इसलिए पुल पर पौधे-वनस्पति काटकर उन पर रासायनिक प्रक्रिया करने का दायित्व होते हुए भी राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण ने यह नहीं किया ।

आयोग की फलोत्पत्ति क्या है ?

उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति, उनकी सहायता हेतु सचिव और स्वीय सहायक, साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति, उनका वेतन, भत्ता, कार्यालयीन खर्च इन पर लाखों रुपए का खर्च करके भी आयोग ने इन सभी गंभीर सूत्रों पर कोई आक्षेप नहीं लिया । आयोग के वेतन और कार्यालयीन खर्च में लगभग 24 लाख रुपए से भी अधिक व्यय हुए हैं । उसमें भी ब्योरा प्रस्तुत करने के लिए आयोग के पास 6 मास की कालावधि शेष होने पर 2 बार समयसीमा में 3 माह की वृद्धि की गई । इतने लंबे समय बाद आयोग द्वारा प्रस्तुत ब्योरा पीडितों को न्याय देनेवाला होगा, ऐसी आशा थी; परंतु आयोग द्वारा सुझाई गई उपाययोजनाएं अत्यंत प्राथमिक स्तर की है, उदा. पुल पर फलक लगाएं, पुल पर उगी वनस्पति हटाएं, खतरे का स्तर दिखानेवाला रंग लगाएं इत्यादि । यह सूचनाएं सामान्य व्यक्ति भी सुझा सकता था । उसके लिए आयोग की क्या आवश्यकता थी ? ऐसा प्रश्‍न पूछकर डॉ. धुरी ने जांच आयोग की पोल खोली ।

क्या अन्य दुर्घटना होने पर क्षतिग्रस्त पुलों को सुधारा जाएगा ?

जुलाई 2020 में देश के महालेखापाल के अनुसार पुलों की देखभाल का नियोजन नहीं है । अगस्त 2016 में शासकीय आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र के 2 हजार 635 पुलों में सुधार की आवश्यकता थी । वर्ष 2020 तक इनमें से केवल 363 पुलों को सुधारा गया । रायगड जिले के नागोठणे, रोहा, रेवदंडा, खारपाडा इत्यादि पुलों पर अभी भी कोई भी फलक नहीं है, न ही प्रकाश व्यवस्था है । रोहा, नागोठणे स्थित पुल का जीर्णोद्धार आवश्यक है । सावित्री पुल की दुर्घटना के उपरांत आयोग द्वारा पुलों के सुधार हेतु दिए गए सुझावों पर 4 वर्ष उपरांत भी कार्यवाही नहीं की गई है । इसलिए ऐसा आयोग स्थापित कर उनके सुझाव ठंडे बस्ते में डालना, जनता के साथ विश्वासघात है । सावित्री नदी पर हुई दुर्घटना के समान भविष्य में कोई भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित होने पर पुन: ‘आयोग स्थापित’ करना और उस पर लाखों रुपए का खर्च कर ब्योरे में दोषियों को ‘क्लीन चिट’ देने की प्रक्रिया क्या राज्य के लिए उचित होगी ? इसका विचार किया जाना चाहिए । वर्तमान आपदाओं की पृष्ठभूमि पर यह लापरवाही स्वीकार्य नहीं है, ऐसी स्पष्ट भूमिका डॉ. धुरी ने प्रस्तुत की ।

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