‘तेलुगु भाषादिवस महोत्सव’ के उपलक्ष्य में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘भाषा के माध्यम से संस्कृति की रक्षा’ विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन
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भाग्यनगर (आंध्र प्रदेश) : वैश्विकीकरण के लिए अंग्रेजी आनी चाहिए, ऐसा अधिकांश लोगों को लगता है; परंतु यह सच नहीं है । विश्व के ८० देशों में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है । ‘केओएफ् ग्लोबलाइजेशन’ की सूची के अनुसार (वर्ष २०१८) पहले ५० देशों में से ४८ देशों में तो मातृभाषा में ही व्यवहार चलता है । मातृभाषा में शिक्षा दी गई, तो ही व्यक्तित्य का विकास हो सकता है, इसकी ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए । मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चे अच्छे प्रकार से पढ सकते हैं और उसके कारण उनकी शिक्षा की फलोत्पत्ति भी अच्छी रहती है । अंग्रेजी माध्यम से सिखानेवाले शिक्षक भले कितने भी अच्छे क्यों न हों; परंतु यदि छात्रों को ही अंग्रेजी समझ में नहीं आती हो, तो इस शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है । इतिहासकर्ता श्री. रंजीत वडियाला ने ऐसा प्रतिपादित किया । ‘तेलुगु भाषादिवस महोत्सव’ के उपलक्ष्य में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘भाषा के माध्यम से संस्कृति की रक्षा’ विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया था । इस परिचर्चा में समाजसेवी श्री. बी.के.एस्.आर्. अय्यंगार, ‘भगवद् गीता फाऊंडेशन’ के संस्थापक श्री. लक्कावल वेंकट गंगाधर शास्त्री एवं हिन्दू जनजागृति समिति के आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना समन्वयक श्री. चेतन गाडी ने भाग लिया । इस अवसर पर समाजसेवी श्री. बी.के.एस्. आर्. अय्यंगार ने ‘तेलुगु भाषा का इतिहास एवं उसका वैभव’ विषय पर जानकारी दी ।
तेलुगु भाषा मृतप्राय होती जा रही है ! – लक्कावल वेंकट गंगाधर शास्त्री, संस्थापक, भगवद्गीता फाऊंडेशन
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तेलुगु भाषा मृतप्राय होती जा रही है । हम तेलुगु भाषा की रक्षा करने में असफल सिद्ध हुए हैं । हम तेलुगु भी बोलते हैं, तब उसमें २ से ३ शब्द अंग्रेजी होते हैं, यह हमारी स्थिति है ।
हिन्दू राष्ट्र में ही मातृभाषा की रक्षा संभव ! – चेतन गाडी, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति
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स्वभाषाभिमान से राष्ट्राभिमान बढता है । आज लोगों में भाषाभिमान के अभाव से राष्ट्राभिमान का भी अभाव है । भारत धर्मनिरपेक्ष देश होने के कारण मातृभाषा को राजाश्रय नहीं मिलता । अंग्रेजी भाषा के अत्यधिक उपयोग के कारण हम आज भी अंग्रेजों के दास बने हुए हैं । अंग्रेजी भाषा के कारण भारत में विदेशी संस्कृति बडी मात्रा में प्रचलित है । केवल हिन्दू राष्ट्र में ही मातृभाषा की रक्षा संभव है, अतः भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना आवश्यक है ।