‘हिन्दुत्व ही विश्वबंधुत्व का खरा आधार’ विषय पर आयोजित विशेष संवाद !
128 वर्ष पूर्व 9/11 को अमेरिका के शिकागो में हुई वैश्विक धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंदजी ने दिखाया कि हिन्दू संस्कृति विश्वबंधुत्व का संदेश देती है । उसी अमेरिका में 20 वर्ष पूर्व 9/11 के आतंकवादी आक्रमण से यह सिद्ध हुआ कि अन्य संस्कृति विश्व विध्वंस का संदेश देती है । यह दो संस्कृतियों का भेद है । आज हम देख रहे है कि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं के साथ किस प्रकार का आचरण किया जा रहा है । विश्व में 85 आतंकवादी संगठन हैं । उनमें प्रधान इस्लामी, ईसाई और कम्युनिस्ट विचारधारा के संगठन हैं । इनमें एक भी हिन्दू संगठन नहीं है । विश्व की चौथी सबसे बडी जनसंख्या हिन्दुओं की है । कश्मीर से साडेचार लाख हिन्दुओं को विस्थापित करने पर भी उनमें से एक भी व्यक्ति आतंकवादी नहीं बना; क्योंकि हिन्दू सहिष्णु हैं । हिंदुओं ने कभी किसी के गले पर तलवार रखकर और हाथ में धर्मग्रंथ लेकर धर्मविस्तार नहीं किया । ‘संघर्ष नहीं, सहयोग चाहिए’, ‘नाश नहीं, स्वीकार चाहिए’, ‘विवाद नहीं, संवाद चाहिए’, इन त्रिसूत्रों के आधार पर हिन्दू धर्म विश्वबंधुत्व की प्रेरणा देता है, ऐसा प्रतिपादन सुप्रसिद्ध लेखक और प्रवचनकार डॉ. सच्चिदानंद शेवडे ने किया । हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘हिन्दुत्व ही विश्वबंधुत्व का खरा आधार’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन ‘विशेष संवाद’ में वे बोल रहे थे ।
डॉ. शेवडे ने आगे कहा कि, हिन्दू धर्म विश्वबंधुत्व का आचरण करता है और उसी की सीख देता है । तब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू धर्म के विरोध में ‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ परिषद आयोजित की जा रही है । उसमें सहभागी किसी भी वक्ता का हिन्दू धर्म संबंधी अध्ययन नहीं है । सभी वामपंथी विचारों के वक्ता सहभागी हुए हैं । इनमें भारत से आयेशा किदवई, आनंद पटवर्धन, बानु सुब्रह्मण्यम, मोहम्मद जुनैद, मीना कंदास्वामी, नेहा दीक्षित इत्यादि सहभागी हुए हैं । ऐसी परिषद वे हिन्दुओं के विरोध में ले सकते हैं । इससे हिन्दू सहिष्णु हैं, यही सिद्ध होता है । अन्य धर्मियों के विरोध में ऐसी परिषद लेने का साहस वामपंथियों में है क्या ? उसका क्या परिणाम होता है, यह ‘चार्ली हेब्दो’ द्वारा सामने आया है । इस हिन्दू विरोधी परिषद के कारण उल्टा हिन्दू समाज ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठित हो रहा है । वामपंथियों को केवल विवाद निर्माण करने की आदत है । उन्हें विवाद का निवारण करना नहीं आता । इसलिए उनके रशिया जैसे बडे देश के टुकडे-टुकडे हो गए हैं । अनेकों की आवाज दबानेवाले चीन के भी कल टुकडे-टुकडे होने की संभावना है । अन्यों को वैचारिकता और लोकतंत्र का उपदेश देनेवाले वामपंथियों के देश में कहां लोकतंत्र है ? सदैव हिटलर का उदाहरण देनेवाले वामपंथी यह क्यों नहीं बताते कि हिटलर की तुलना में वामपंथी विचारधारा के स्टैलिन ने अधिक लोगों को मारा है । स्टैलिन ने 2 करोड लोगों को मारा; तो माओ ने 3 करोड चीनी लोगों को मारा है । यह सत्य लोगों को ज्ञात होना चाहिए, ऐसा भी डॉ. शेवडे ने कहा ।