अनावश्यक जांच-परीक्षण, औषधियों के माध्यम से रोगियों की लूट !
स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉक्टर और चिकित्सालय आवश्यक न होते हुए भी रोगियों की हतबलता का अनुचित लाभ उठाकर चिकित्सीय जांच-परीक्षण करने के लिए बताते हैं । विशिष्ट औषधियां लेने के लिए विशिष्ट ‘मेडिकल स्टोर’ में भेजा जाता है । इन माध्यमों से प्रतिशत में मिलनेवाली घूस (रिश्वत) ‘कमिशन’ के रूप में स्वीकारी जाती है; ऐसी ‘कट प्रैक्टिस’ राज्य में बडी मात्रा में चल रही है । इन अनुचित प्रकारों के विरोध में कानून बनाने के लिए 27 जुलाई 2017 को शासन ने विशेषज्ञों की समिति स्थापित की थी । इस समिति ने कानून का स्वरूप बनाकर दिया; परंतु अगले पांच वर्ष उस पर कोई भी कार्यवाही नहीं हुई । कोरोना काल में तो डॉक्टर, पैथोलॉजी लैब और चिकित्सालयों ने बडी मात्रा में रोगियों को लूटा । यह प्रकरण अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण डॉक्टरों की ‘कट प्रैक्टिस’ का ‘ऑपरेशन’ महाराष्ट्र शासन कब करेगा, ऐसा प्रश्न हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने किया ।
इस विषय में हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने मुख्यमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री, स्वास्थ्य सचिव, चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ मंत्री तथा विभाग के सचिव को विस्तृत निवेदन भेजा है । निवृत्त पुलिस महासंचालक प्रवीण दीक्षित, डॉ. अविनाश तुपे, डॉ. संजय ओक, डॉ. अभय चौधरी इत्यादि की समिति द्वारा बनाया ‘महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ कट प्रैक्टिस कानून 2017’ का स्वरूप (मसौदा) 29 सितंबर 2017 को चिकित्सा शिक्षा संचालकों ने संचालनालय के जालस्थल (वेबसाईट) पर लोगों के ‘आक्षेप एवं सूचना’ मंगवाने के लिए रखा था । इस संदर्भ में सूचना के अधिकार अंतर्गत पूछने पर ‘कानून का स्वरूप (मसौदा) विशेषज्ञ समिति ने अभी तक हमें नहीं दिया है । उसी प्रकार इस कानून संबंधी पूरी फाइल चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ मंत्री के पास 18 मई 2021 को भेजी है’, ऐसा उत्तर 23 अगस्त 2021 को देते हुए चिकित्सा शिक्षा और औषधीय पदार्थ विभाग ने अपना पल्ला झाड लिया है । संक्षेप में पांच वर्ष इस प्रक्रिया को कौन-सा लकवा मार गया था, यह ‘कट प्रैक्टिस’ करनेवालों को ही पता होगा, ऐसा अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने इस निवेदन में कहा है ।
अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने आगे कहा कि समिति द्वारा जालस्थल (वेबसाईट) पर प्रकाशित कानून के स्वरूप में भी अनेक त्रुटियां है, जिससे यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह कानून ‘कट प्रैक्टिस’ रोकने के लिए है अथवा उसे अधिकृत करने के लिए तथा चोर रास्तों का महामार्ग बनाने के लिए है ? इस कानून में केवल छोटी मछलियों को पकडने की व्यवस्था है; परंतु औषधि उत्पादक प्रतिष्ठान और चिकित्सालय अर्थात बडी मछलियों को छोड दिया गया है । साथ ही इस प्रकरण में परिवाद (शिकायत) झूठा होने पर अथवा डॉक्टरों की बदनामी होने पर प्रथम चरण में ही परिवाद करनेवाले रोगी से हानि भरपाई लेने की व्यवस्था की गई है । ऐसा किसी भी कानून में नहीं होता । इसलिए यह ‘चोर छोडकर संन्यासी को फांसी’ देने जैसा है । यह सभी बदलना चाहिए, इस हेतु हम अधिवक्ता शासन की सहायता करने के लिए तैयार हैं, ऐसा भी अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने कहा ।