हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक-सदस्य (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णीजी की संभाजीनगर के पुलिस आयुक्त को ज्ञापन प्रस्तुति
संभाजीनगर : पहले महाराष्ट्र सरकार ने कागद की लुगदी से श्री गणेशमूर्तियां बनाने की अनुमति देनेवाला अध्यादेश निकाला था; परंतु हिन्दू जनजागृति समिति ने पुणे के राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण से इन गणेशमूर्तियों का नदियों, समुद्र अथवा अन्य बहते पानी में विसर्जन करने से बडी मात्रा में जलप्रदूषण होने का ध्यान दिलाया । उसके उपरांत प्राधिकरण ने महाराष्ट्र सरकार के इस अध्यादेश पर असीमित अवधि के लिए रोक लगाई है । हरित प्राधिकरण का आदेश सभी पर बंधनकारक है । अतः कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली श्री गणेशमूर्तियों की निर्मिति और बिक्री पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए, साथ ही ऐसी गणेशमूर्तियां बनानेवाले मूर्तिकारों, बिक्रेताओं और दुकानदारों के विरुद्ध प्राथमिकी पंजीकृत की जाए, इस मांग को लेकर हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक-सदस्य तथा उच्च न्यायालय के अधिवक्ता (पू.) सुरेश कुलकर्णीजी ने यहां के पुलिस आयुक्त को ज्ञापन प्रस्तुत किया है । (ऐसी मांग करनी ही क्यों पडती है ? सरकार को इसे स्वयं ही करना अपेक्षित है ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात)
इस ज्ञापन में कहा गया है कि महाराष्ट्र सरकार ने तथाकथित आधुनिकतावादी गिरोह को संतुष्ट करने हेतु ३ मई को एक अध्यादेश निकालकर कागद की लुगदी से गणेशमूर्तियां बनाने की अनुमति दी । स्कंदपुराण में गणेशमूर्ति कैसी होनी चाहिए, इस संबंध में विस्तार से शास्त्र बताया गया है । इसके साथ ही सार्वजनिक स्थानों अथवा घर में गणेशमूर्ति की प्रतिष्ठापना करते समय श्रद्धालुओं में ‘हमारे यहां साक्षात् श्री गणेश ही पधारे हैं’, यह भाव और श्रद्धा होती है । राज्य सरकार ने कागद की लुगदी से मूर्ति से प्रदूषण नहीं होता, इसका कभी परीक्षण नहीं किया और बिना किसी विचारविमर्श से ही सरकार की ओर से उक्त अध्यादेश निकाला गया था । राष्ट्रीय हरिक प्राधिकरण ने हाल ही में इस अध्यादेश पर असीमित समय के लिए रोक लगा दी है । अतः कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों की बिक्री पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए, साथ ही ऐसी मूर्तियां बनानेवाले मूर्तिकारों, बिक्रेताओं और दुकानदारों के विरुद्ध प्राथमिकी पंजीकृत की जाए । इसके साथ ही ऐसी मूर्तियों के निर्माता एवं उनकी बिक्री करनेवाला प्रतिष्ठान एमेजॉन के विरुद्ध भी कानूनी कार्यवाही की जाए ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात