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चिपळूण (जनपद रत्नागिरी, महाराष्ट्र) में सभी श्री गणेशमूर्तियों का बहते पानी में विसर्जन !

चिपळून नगरपरिषद प्रशासन ने इस वर्ष विसर्जन हेतु श्री गणेशमूर्तियां एकत्रित नहीं कीं !

▪ केवल एक ही स्थान पर बनाया तात्कालिन तालाब

▪ तात्कालिन तालाब में एक भी श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन नहीं किया गया

▪ हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों, हिन्दू जनजागृति समिति एवं धर्मप्रेमी नागरिकों द्वारा संगठितरूप से किए गए विरोध का परिणाम !

प्रतिकात्मक छायाचित्र

चिपळूण : यहां के गणेशोत्सव के ५वें दिन श्री गणेशमूर्तियों और गौरी का वशिष्ठी नदीक्षेत्र के बहते पानी में विसर्जन किया गया । पिछले वर्ष यहां की नगरपरिषद की ओर से श्री गणेशमूर्तियां एकत्रित करने हेतु कचरे की गाडियों का उपयोग किया गया था, जिसका हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों, हिन्दू जनजागृति समिति और धर्मप्रेमी नागरिकों ने तीव्र विरोध किया था । तब हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने ‘श्री गणेशमूर्तियों का बहते पानी में विसर्जन करना गणेशभक्तों का अधिकार होने से इस प्रकार से श्री गणेशमूर्तियां एकत्रित करना धर्मविरोधी है’, ऐसा बताकर उद्बोधन किया था । इस वर्ष भी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने श्री गणेश विसर्जन से पूर्व ही नगरपरिषद प्रशासन को श्री गणेशमूर्तियां एकत्रित न करने हेतु ज्ञापन प्रस्तुत कर सतर्क किया था । इसके फलस्वरूप इस वर्ष प्रशासन ने विसर्जन हेतु श्री गणेशमूर्तियों को जमा कर न लेने का निर्णय लिया था और उसके अनुसार उन्होंने श्री गणेशमूर्तियां नहीं लीं ।

एकमात्र तात्कालीन तालाब में एक भी श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन नहीं हुआ !

शासन के आदेश के कारण नगरपरिषद प्रशासन ने केवल एक स्थान पर एक बाजू में एक छोटासा तात्कालिन तालाब बनाया था; परंतु उन्होंने किसी श्रद्धालु पर उस तात्कालिन तालाब में श्री गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने की जबरदस्ती नहीं की और प्रतिवर्ष की भांति ध्वनियंत्र से तात्कालिन तालाब में मूर्तिविसर्जन करने का आवाहन भी नहीं किया । उसके कारण सभी हिन्दुओं ने धर्मशास्त्र के अनुसार श्री गणेशमूर्तियों का बहते पानी में विसर्जन किया । (कोंकण क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक पद्धति से बहता हुआ पानी होते हुए भी और बहते पानी में ही श्री गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने की परंपरा होते हुए भी प्रशासन तात्कालिन तालाब का हठ क्यों करता है ? ऐसे तात्कालिन तालाब तैयार करने के लिए होनेवाला व्यय (खर्च) यह निर्णय लेनेवाले प्रशासनिक अधिकारियों से ही वसूला जाना चाहिए ! – संपादक)

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