सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के संयुक्त आयोजन में संपन्न विशेष संवाद ‘पितृपक्ष एवं श्राद्धविधि : शंकाएं एवं समाधान’ के माध्यम से महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन !
जळगांव (महाराष्ट्र) : हिन्दू धर्म में ईश्वरप्राप्ति हेतु देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण इन ४ ऋणों को चुकाने के लिए कहा गया है । इनमें का पितृऋण चुकाने हेतु पूर्वजों की मुक्ति के लिए प्रयास करने आवश्यक होते हैं । श्राद्ध करना पूर्वजों की मुक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है । जिनके लिए संभव है, वे पितृपक्ष में पुरोहितों के द्वारा श्राद्धविधि करें; परंतु जैं कोरोना के कारण पुरोहित अथवा श्राद्धविधि की सामग्री के अभाव में श्राद्ध करना संभव नहीं हुआ, तो आपद्धर्म के रूप में संकल्पपूर्वक आमश्राद्ध, हिरण्यश्राद्ध अथवा गोग्रास अर्पण करना चाहिए । साथ ही पूर्वजों को अगली गति प्राप्त हो और अतृप्त पूर्वजों से कष्ट न हों; इसके लिए नियमितरूप से साधना करना भी आवश्यक है । इसके लिए श्राद्ध विधि के साथ ही पितृपक्ष में अधिकाधिक समय, साथ ही अन्य समय में प्रतिदिन न्यूनतम १ से २ घंटे सभी को ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप करना चाहिए । सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने यह मार्गदर्शन किया । आज के समय चल रहे पितृपक्ष के उपलक्ष्य में सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा संयुक्तरूप से आयोजित ‘पितृपक्ष एवं श्राद्धविध : शंकाएं एवं समाधान’ विषय पर आयोजित विशेष संवाद में वे ऐसा बोल रहे थे ।
सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने आगे कहा कि,
१. हिन्दुओं में निहित धर्मशिक्षा के अभाव, पाश्चात्त्यों का अंधानुकरण और हिन्दू धर्म को हीन मानने की वृत्ति के कारण श्राद्धविधि की उपेक्षा की जाती है; परंतु आज भी अनेक पाश्चात्त्य देश के सहस्रों लाग भारत के तीर्थस्थानों को आकर पूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने हते श्रद्धापूर्वक श्राद्धविधि करते हैं ।
२. जिन्होंने प्रथम श्राद्धविधि किया, वे मनू एवं राजा भगीरथ द्वारा पूर्वजों की मुक्ति हेतु कठोर तपस्या, साथ ही त्रेतायुग के प्रभु श्रीराम के काल से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में भी श्राद्धविधि किए जाने के उल्लेख मिलते हैं । अतः तथाकथित आधुनिकतावादियों के किसी भी प्रकार के दुष्प्रचार के झांसे में न आकर कोरोना महामारी के इस काल में अपनी क्षमता के अनुरूप पितृऋण चुकाने हेतु श्रद्धापूर्वक श्राद्धविधि कीजिए ।
३. श्राद्धविधि न करने से हमारे पूर्वज अतृप्त रहते हैं, जिससे दोष उत्पन्न हो जाते हैं । पूर्वजों को मर्त्य लोक से आगे बढने हेतु श्राद्ध विधि के कारण ऊर्जा मिलती है । मृत्यु के उपरांत भी श्राद्धविधि का विधान बतानेवाला हिन्दू धर्म विश्व का एकमात्र धर्म है ।
४. आज के समय में समाज में धर्मशिक्षा के अभाव से श्राद्ध करने के स्थान पर सामाजिक संस्थाओं अथवा अनाथालयों को चंदा देने की अनुचित संकल्पनाओं का प्रचार किया जाता है; परंतु ऐसा करना अनुचित है । धार्मिक कृत्यों का तो धर्मशास्त्र के अनुसार ही किया जाना आवश्यक है और उसके अनुसार कृत्य करने से ही पितृऋण चुकाया जा सकता है ।