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बांग्लादेश के ISKCON मंदिर में मुस्लिम भीड ने किया बर्बर हमला

बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों ने सैकड़ों (500) की भीड़ में जमा होकर इस्कॉन मंदिर में हमला बोला और वहाँ लगे दुर्गा पंडाल को नष्ट करते हुए दो साधुओं की हत्या कर दी। इस दौरान कई श्रद्धालुओं पर भी हमला हुआ और काफी तोड़फोड़ मची। पीड़ादायक बात ये है कि भारत के अंदर पश्चिम बंगाल का इस्कॉन मंदिर ने रमजान के दौरान मुस्लिमों को इफ्तार करवाया था और आज बांग्लादेश में उसी इस्कॉन मंदिर पर वहाँ के मुस्लिम हमला बोल रहे हैं।

5 साल पहले की मीडिया रिपोर्ट्स यदि देखें तो पता चलता है कि कितने आदर के साथ इन मुस्लिमों को पश्चिम बंगाल के इस्कॉन मंदिर में इफ्तार कराया गया था। करीब 165 मुस्लिम बाइज्जत कुर्सी पर बैठे थे और खुद हिंदु कार्यकर्ताओं ने उनके लिए टेबल सजाई थी।

मेज में रखी प्लेटों में फल, फ्रूट, स्नैक, मिठाई, जूस के ग्लास, शरबत सब सजे थे। आवभगत के बाद उन्हें चंद्रोदय मंदिर, मायापुर जो कि उत्तरी कोलकाता से 130 किमी दूर है, वहाँ परिसर में ही नमाज पढ़ने को भी जगह दी गई थी। मुस्लिम नेता सैफुल इस्लाम ने इतना आदर सम्मान पाकर कहा था कि ‘हरे कृष्णा समूह’ द्वारा इतनी इज्जत पाकर स्थानीय मुस्लिम हैरान हैं और इस चीज ने उनके दिलों में घर कर लिया है।

उस समय की रिपोर्टों के अनुसार सैफुल ने कहा था, “हमने कभी ऐसे इफ्तार के बारे में नहीं सुना था जिसे गैर मुस्लिमों द्वारा आयोजित किया गया हो। आस पड़ोस के मुस्लिमों की प्रतिक्रिया बहुत भावपूर्ण थी कि 160 मुस्लिम मंदिर में आए जबकि मंदिर को लग रहा था कि बस 75 लोग ही वहाँ आएँगे।”

मुस्लिम व्यापारी रेजुल शेख ने भी कहा था कि ये बर्ताव उल्लेखनीय है क्योंकि पूर्वी भारत के धार्मिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में ऐसा कभी नहीं हुआ था। कई बार कुछ गैर मुस्लिम इफ्तारी को अपने मुस्लिम दोस्तों, पड़ोसियों और मस्जिदों में भेजते थे लेकिन ऐसा आयोजन कभी नहीं किया जाता था जैसे इस्कॉन ने किया।

शेख ने यह जानकारी भी दी थी कि इस्कॉन मंदिर के बीच परिसर में यह आयोजन हुआ था। वहीं इस्कॉन के तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी ने कहा था कि उनके द्वारा यह आयोजन इस्कॉन की 50वीं सालगिरह पर आयोजित हुआ। दास ने इस दौरान अपने मंदिर को अन्य हिंदू मंदिरों से अलग दिखाते हुए कहा था कि जहाँ कई हिंदू मंदिरों में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित होता है वहीं इस्कॉन में उन्हें फ्री एक्सेस है।

दास ने बताया था कि कई मुस्लिम मंदिर की दैनिक गतिविधियों में पार्ट लेते हैं और जरूरी सामान पहुँचाते हैं। उनमें कई को निर्माण के लिए काम दिया जाता है और बाकियों को वो काम दिए जाते हैं जिसमें वो निपुण होते हैं। साल 2016 की इस रिपोर्ट में अधिकारी ने कहा था, “हम अपनी 50वीं सालगिरह पर मुस्लिमों के लिए अच्छा व्यवहार चाहते हैं। इसके लिए इफ्तार आयोजन से बेहतर कुछ नहीं होता।” यूसीए न्यूज के मुताबिक कई लोगों ने इस आयोजन की सराहना की थी। सरयूकुंड रामजानकी मंदिर के पुरोहित ने भी इस कदम की तारीफ की थी और आशा जताई थी कि इससे साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ेगा।

हालाँकि, आज 5 साल बाद स्थिति अपेक्षाओं के बिलकुल विपरीत है बंगाल के इस्कॉन में जहाँ इफ्तार करके हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का उदाहरण पेश किया गया था। आज उसी इस्कॉन के एक मंदिर में कट्टरपंथियों ने लूटपाट मचाकर वहाँ के साधुओं को मौत के घाट उतार दिया। हालात ये है कि इस्कॉन के उपाध्यक्षभारत सरकार से अपील कर रहे हैं कि वो इस मामले में आवाज उठाएँ। इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण भी इस घटना को 1946 के नोआखली दंगों से जोड़ रहे हैं।

हालाँकि, आज 5 साल बाद स्थिति अपेक्षाओं के बिलकुल विपरीत है। पश्चिम बंगाल के इस्कॉन में इफ्तार करके हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का उदाहरण पेश किया गया था। लेकिन बांग्लादेश के इस्कॉन मंदिर में कट्टरपंथियों ने लूटपाट मचाकर वहाँ के साधुओं को मौत के घाट उतार दिया। हालात ये है कि इस्कॉन के उपाध्यक्ष भारत सरकार से अपील कर रहे हैं कि वो इस मामले में आवाज उठाएँ। इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण भी इस घटना को 1946 के नोआखली दंगों से जोड़ रहे हैं।

संदर्भ : OpIndia

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