यदि कांग्रेस हिंदुओं का विशाल दल निर्माण करती, तो विभाजन नहीं होता ! – उदय माहुरकर
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सय्यद अहमद ने वर्ष 1883 से भारत के विभाजन और भारत पर इस्लाम की सत्ता स्थापित्त करने के विषय में निरंतर वक्तव्य किए । मुस्लिम लीग ने भी पूरे देश में अधिवेशन लेकर सिद्धता चालू की थी । ‘भारत का विभाजन होगा’ यह वीर सावरकर ने 7 वर्ष पहले ही सार्वजनिक रूप से बताया था; परंतु कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं ने उसे अस्वीकार कर उसकी अनदेखी की । मुस्लिम लीग द्वारा हिंसाचार आरंभ करने पर कांग्रेस ने उसका विरोध न करते हुए मुसलमानों का तुष्टिकरण आरंभ रखा । वीर सावरकर के बताए अनुसार यदि कांग्रेस और हिन्दुओं ने हिन्दुओं का विशाल दल बनाया होता, विरोधी पक्ष तैयार किया होता, तो निश्चित ही भारत का विभाजन नहीं होता, ऐसा प्रतिपादन ‘वीर सावरकर : द मैन हु कुड हैव प्रिवेन्टेड पार्टिशन’ इस पुस्तक के लेखक तथा भारत के सूचना आयुक्त श्री. उदय माहुरकर ने किया । हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘वीर सावरकर की बदनामी का षड्यंत्र’ इस ‘ऑनलाइन विशेष संवाद’ में वे बोल रहे थे ।
श्री. माहुरकर ने आगे कहा कि, जिन लोगों की विचारधारा देश के विभाजन पर आधारित है । ऐसे वामपंथी और कांग्रेसवाले सावरकर को बदनाम करने के षड्यंत्र रचते रहते हैं; क्योंकि सावरकर के विचार आचरण में लाएं, तो इस देश की हिन्दू शक्ति संगठित हो जाएगी और इस देश के टुकडे करना संभव नहीं होगा । इसलिए उन्हें निरंतर विरोध किया जा रहा है । ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ के अध्यक्ष श्री. रणजीत सावरकर ने कहा कि गांधी की हत्या 30 जनवरी को न होती, तो उस दिन कांग्रेस भंग होनेवाली थी । यदि तब कांग्रेस भंग हो जाती, तो नेहरू को सत्ता से दूर रहना पडता । तब हिन्दू महासभा दूसरे बडे दल के रूप में सामने आता; परंतु प्रमाण (सबूत) के अभाव में सावरकर को गांधी हत्या में उलझाकर उनका राजकीय अस्तित्व नष्ट किया गया । गांधी हत्या का खरा लाभ किसे हुआ ?, इसका विचार करना आवश्यक है ।
‘हिन्दू जनजागृति समिति’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने कहा कि सावरकर ने क्षमा मांगी इसलिए उनकी बदनामी करनेवाले नए वामपंथी लोग इतिहास का अध्ययन नहीं करते । भारत में कम्युनिस्ट पक्ष की स्थापना करनेवाले कॉ. डांगे कारावास से मुक्ति हेतु ब्रिटिशों को लिखी गई दया याचिका में कहते हैं ‘…मैंने ब्रिटिशों से गद्दारी नहीं की और भविष्य में कभी गद्दारी करुंगा भी नहीं । मैं आपका सेवाधारी हूं ।’ वास्तव में साम्यवादियों को ही लज्जा आनी चाहिए । सावरकर द्वारा की गई याचिका के कारण सैकडों भारतीय राजबंदी मुक्त हुए । बैरिस्टर की शिक्षा पूर्ण करने पर प्रमाणपत्र लेने के लिए ‘मैं ब्रिटिश शासन से एकरूप रहूंगा’ यह प्रतिज्ञा लेने की शर्त अस्वीकार करते हुए सावरकर ने बैरिस्टर प्रमाणपत्र अस्वीकार किया । इससे उनकी देशनिष्ठा दिखाई देती है; परंतु अनेक कांग्रेसी नेताओं के पास बैरिस्टर का प्रमाणपत्र था । उनसे कांग्रेसी प्रश्न क्यों नहीं पूछतें ? क्रांतिकार्य सिखने के लिए कम्युनिस्टों के नेता लेनीन 3 दिन ‘इंडिया हाऊस’ में वीर सावरकर के आश्रय में थे । सावरकर का देशकार्य देखने पर मुंबई के कम्युनिस्ट नेताओं ने उनका भव्य सम्मान किया था, यह आज के वामपंथी विचारक क्यों नहीं बताते ?