सुव्यवस्थापन के नाम पर किए जा रहे ‘मंदिर सरकारीकरण’ का भांडाफोड !
‘व्यवस्थापन अच्छे से होना चाहिए’, ‘श्रद्धालुआें को अडचन हो रही थी’, ‘अनुचित कार्य हो रहे थे’ इत्यादि अनेक कारण देकर महाराष्ट्र शासन ने केवल राज्य के हिंदुओं के अनेक बडे मंदिर स्वयं के नियंत्रण में लिए । वर्ष 2015 में तुळजापुर का श्री तुळजाभवानी मंदिर और वर्ष 2018 में शनिशिंगणापुर का श्री शनि मंदिर शासकीय नियंत्रण में लिया गया; परंतु वर्ष 2016 से अब तक इन दो मंदिरों का महाराष्ट्र शासन के विधि और न्याय विभाग ने एक बार भी अवलोकन नहीं किया, न वहां के व्यवस्थापन की जांच की । इसलिए ‘सुव्यवस्थापन’ तो छोडिए ; विगत पांच वर्षों में सरकार ने तुळजापुर और शनिशिंगणापुर की ओर एक बार देखा भी नहीं; ये कैसा सरकारी नियंत्रण है ?, ऐसा प्रश्न हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने पूछा ।
सुव्यवस्थापन के नाम पर किए जा रहे ‘मंदिर सरकारीकरण’ का भांडाफोड !
तुळजापुर और शनिशिंगणापुर देवस्थानों की ओर सरकार ने ५ वर्ष देखा ही नहीं ! – हिन्दू विधिज्ञ परिषद @ssvirendra @abpmajhatv @zee24taasnews @mataonline @LoksattaLive #FreeHinduTemples pic.twitter.com/np34wHO3Zw
— HinduJagrutiOrg (@HinduJagrutiOrg) October 30, 2021
सूचना के अधिकार अंतर्गत मांगी गई जानकारी में उपरोक्त आश्चर्यजनक जानकारी सामने आई है । सूचना के अधिकार अंतर्गत निम्न प्रश्न महाराष्ट्र शासन के विधि और न्याय विभाग से पूछा गया था । उसमें वर्ष 2016 से विभाग ने मंदिर का कितनी बार अवलोकन किया ?, विभाग द्वारा दी गई सूचनाएं, विभाग द्वारा तैयार किया गया ब्योरा, विभाग की सूचनाओं के आधार पर मंदिरों का अनुपालन ब्योरा, मंदिरों का लेखा परीक्षण ब्योरा और उस पर किए गए आक्षेपों का निराकरण की प्रति इत्यादि की मांग की गई थी; परंतु इन सभी का उत्तर शासन ने ‘‘शून्य’’ दिया है । मूलत: धर्मनिरपेक्ष शासन द्वारा मंदिरों का व्यवस्थापन अपने नियंत्रण में लेना ही सबसे बडा और क्रूर विनोद है । हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से संबंधित स्थान को धर्मनिरपेक्ष शासन नियंत्रण में कैसे ले सकता है ? इस ज्वलंत और स्थाई रूप से निरंतर प्रस्तुत किए गए महत्त्वपूर्ण मुद्दे की अनदेखी की, तो भी व्यवहारिक स्तर पर शासन पूर्णत: असफल रहा है, यही स्पष्ट होता है ।
श्री तुळजाभवानी मंदिर में हजारों करोडों का सिंहासनपेटी घोटाला, 267 एकड भूमि घोटाला इत्यादि अनुचित कार्यों के बारे में अपराध अन्वेषण संस्थाआें को जांच सौंपी गई थी । वर्ष 2017 में उसका ब्योरा गृह विभाग को प्रस्तुत किए जाने पर भी अडचनें निर्माण करनेवालों के कारण वह ब्योरा जनता के सामने नहीं आया । वहीं दूसरी ओर शनिशिंगणापुर के मंदिरों के राजनीतिज्ञ हस्तक्षेप अथवा मंदिर की निधि से राजकीय नेताओं का महत्त्व बतानेवाले विज्ञापनों का खर्च अथवा तत्सम आरोप लगाए गए थे । उनका आगे क्या हुआ ? कानून के प्रावधानों के अनुसार शासन के नियंत्रण में मंदिर आने पर, शासकीय लेखापरीक्षण भी लागू होता है । शासकीय लेखा परीक्षण का ब्योरा विधि और न्याय विभाग को भेजा जाता है । वहां उसका विवेचन होना और आवश्यक कार्यवाही होना अपेक्षित है; परंतु प्राप्त हुए उत्तर से कुछ भी होता हुआ दिखाई नहीं देता । एक ओर शासन स्वयं के उद्योग ठीक से नहीं चला पा रहा, इसलिए उनमें निरंतर हानि हो रही है । उद्योगों को बेचना पड रहा है । ऐसा होते हुए भी किस मुंह से शासन ‘हम मंदिरों का व्यवस्थापन करेंगे’ ऐसी आशा भक्तों को दे रहा है ? वास्तव में इन विषयों पर हिन्दुओं को शासन से तथा संबंधित अधिकारियों से कठोरता से उत्तर मांगना चाहिए, ऐसा स्पष्ट मत अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने प्रस्तुत किया ।