वाराणसी : दैनिक जागरण व गंगा महासभा की ओर से शुक्रवार को तीन दिवसीय संस्कृति संसद हुई। अखिल भारतीय संत समिति व श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित विचार मंथन गोष्ठी में देश-दुनिया के विद्वान जुटे। भारतीयता के धरातल पर राष्ट्रवादी वैचारिकी के साथ आबद्ध यह आयोजन भारतीय संस्कृति के चिंतक व दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेन्द्र मोहन को समर्पित किया है। संस्कृति संसद का शुभारंभ सुबह दस बजे जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र समेत देश-दुनिया के संत-महंतों ने किया। पहले दिन तीन सत्रों में सनातन हिंदू धर्म के अनुत्तरित प्रश्न, भारत की प्राचीनतम अखंडित संस्कृति की वैश्विक छाप एवं वर्तमान परिदृश्य और भारतीय युवा जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार पर विचार मंथन किया गया।
शुभारंभ करने वालों में जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजराजेश्वराचार्य महाराज, श्रीकाशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. प्रो. रामयत्न शुक्ल, अध्यक्ष गंगा महासभा प्रेमस्वरूप पाठक, अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक महंत ज्ञानदेव सिंह, अखिल भारतीय संत समिति अध्यक्ष आचार्य अविचल दास, राज्य सभा सदस्य रुपा गांगुली, दैनिक जागरण के उत्तर प्रदेश राज्य संपादक दैनिक जागरण ने दीप प्रज्वलन किया।
उद्घाटन सत्र
हिन्दू संस्कृति के आधार पर भारत पुनः अखण्ड होगा ! – अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक स्वामी ज्ञानदेव सिंह
संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक स्वामी ज्ञानदेव सिंह ने कहा कि हिन्दू संस्कृति के आधार पर पुनः भारत अखण्ड होगा। उन्होंने यह विचार वाराणसी में अखिल भारतीय संत समिति एवं काशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में गंगा महासभा द्वारा नगर निगम वाराणसी स्थित रुद्राक्ष सभागार में आयोजित तीन दिवसीय संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वेद भारतीय संस्कृति का मूल है तथा वेदों का मूल संस्कृति एवं संस्कृत है। उन्होंने कहा कि माता ही हमारी प्रथम गुरु है इसीलिए हमें यह शिक्षा दी जाती है मातृ देवो भवः, अतिथि देवो भवः, आचार्य देवो भवः, हमारे लिए यह सभी महत्वपूर्ण है। उन्होंने सभी संप्रदायों के मूल भेद और सभी संस्कृति के वेदों को बताया तथा अंत में कहा कि भारत अखंड था और हिन्दू संस्कृति के आधार पर ही पुनः अखण्ड होगा।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि शासन को चलाने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है। कहा कि आज विधर्मियों द्वारा हमारी संस्कृति पर अत्याचार किए जा रहे हैं। इसके जवाब में युवाओं को संतों के साथ जुड़ना चाहिए। संतों के प्रयासों से अंग्रेजों के द्वारा गुलाम बनने के बाद भी हमारी परम्परा और संस्कृति जीवित रही।
आएसएस के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. इंद्रेश कुमार ने कहा कि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो सभी को समेटने की क्षमता रखता है। भारत ने कोविड काल के दौरान वैक्सीन वितरण कर सब को बचाया और पाकिस्तान को हमारे सैनिकों ने देश से प्रेम करना और देश के लिए मरना सिखाया। हम अपनी सुरक्षा, अपने देश की सुरक्षा पर विदेशों पर निर्भर ना होकर आत्मनिर्भर बने हैं। हम अपने त्योहार को आज चीनी वस्तुओं से नहीं मना रहे हैं। राम मंदिर निर्माण बिना किसी बाधा के शुरू कर दिया गया बिना किसी दंगे के ३७० हटाया गया। हमारी धार्मिक पुस्तक रामायण सिखाती है हमारा धर्म हमेशा सभी की उन्नति की बात करता है, कभी किसी को अपमानित नहीं करता है। यह सब वर्तमान शासन से ही सम्भव हो सकता है।
विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक दिनेश चन्द्र ने कहा कि राष्ट्र की आत्मा संस्कृति जैसे आधारभूत विषय को इस मंच के माध्यम से आगे बढ़ाने के लिए संत समिति जो काम कर रही है वह निश्चित रूप से उपयुक्त है। आज किसी भी राष्ट्र को खत्म करना हो तो उसकी संस्कृति को बदल देने से वहां का समाज खत्म हो जाता है। विदेशी आक्रांताओं से राष्ट्र को बचाने लिए हमारे महापुरुषों ने काफी संघर्ष किया है। वे समाज में जागरण का कार्य करते रहे। उन्होंने कहा कि १९४७ में इस अखण्ड भारत के विभाजन को स्वीकार कर लिया गया यह पीढ़ा आज भी चुभती रहती है। ऐसे आयोजनों से यह राष्ट्र फिर से अखण्ड होगा। आज पूरा विश्व भारत के लोगों को हिन्दू ही मानता है। जब विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई थी तब भी समाज की व्यवस्थाओं को वैâसे स्थापित किया जाए इस पर चर्चा होती थी। यहां का मूल निवासी हिन्दू कितना भी कमजोर हो लेकिन संत समाज का आदर करता ही है। विदेशों में लगभग सात करोड़ हिन्दू रहते हैं उनकी जो समस्याएं हैं उनको संत समाज ही सुलझा सकता है। हर युग में कोई आचार संहिता का निर्माण विद्वतजनों द्वारा होता रहा परन्तु विदेशी आक्रांताओं के कारण यह कमजोर होता गया। पूज्य संत आज फिर से एक आचार संहिता का निर्माण करें। वेदों के प्रश्नोपनिषद की चर्चा करते हुए दिनेश चन्द्र ने कहा कि बहुत से देश ऐसे हैं जहां धर्म पर सवाल करना पाबंद है परन्तु हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं। हमारी संस्कृति में सिखाया गया है हम किसी पर अत्याचार न करें परन्तु हम पर कोई अत्याचार करे तो उन्हें छोड़ना भी नहीं है। हमारे यहां पर्दाप्रथा, बालविवाह, दहेजप्रथा नहीं थी। पुरुष-महिला सबको समान अधिकार था। हमारे बच्चों को संस्कार की शिक्षा देने की आवश्यकता है। विश्व के उद्धार के लिए ही तमाम प्रताणनाएं सहकर भी हमारे ऋषि-मुनियों ने सभी का उद्धार किया। सभी धर्मों को समान कहना उचित नहीं है। हमारा हिन्दू धर्म सभी धर्मों के सम्मान की बात कहता है।
श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री रामयत्न शुक्ल ने कहा कि कहा कि इस संस्कृति संसद का आयोजन बहुआयामी विषयों को लेकर किया जा रहा है। हमारे धर्मशास्त्री विद्वान ग्रंथों की त्रुटियों पर काम कर रहे हैं। वर्ण व्यवस्था की समरसता के लिए किया गया है। हमारे ग्रंथों में ऐसी कोई बात नहीं की गई है समाज में ऊंच-नीच की मानसिकता स्थापित हो। इस संस्कृति संसद में धर्म और संस्कृति से जुड़ी अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब दिया जाएगा। प्रश्नों के उत्तर को गंगा महासभा, अखिल भारतीय संत समिति और श्रीकाशी विद्वत परिषद एक प्रस्ताव की तरह प्रकाशित किया जाएगा। हमारे संतजनों के निर्देशन में भारत की अखण्डता और राष्ट्र की सम्प्रभुता को बनाए रखना है। इसके लिए हमारा संगठन युवाओं के साथ मिलकर काम करेगा ताकि समाज की एकरुपता बनी रहे।
गंगा महासभा और अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि संस्कृति संसद के इस मंच की आवश्यकता क्यों पड़ी, विदेशों से आज वक्तागण यहां क्यों आए, हम आज इस पर चर्चा करेंगे। संस्कृति संसद की उपाध्येयता इन बातों के लिए नहीं है कि हम काशी में इसका आयोजन कर रहे हैं। महाराज जी ने सनातन धर्म का उपहास और अपमान करने वालों को बताया कि हमारे धर्म, ग्रंथ और वेद के अतिरिक्त उपनिषद और शास्त्र को संवाद के लिए बेहतरीन मार्ग हैं। उन्होंने इसमें पूछने और बताने की प्रक्रिया को हमारे संस्कृति का संवाद शास्त्र बताया। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के बाद सनातन धर्म के सारे मार्ग खुल जाएंगे। स्वामी जी ने कहा कि इस कार्यक्रम में शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति की मर्यादित सीमा में प्रश्न भी पूछ सकते हैं। उन्होंने बताया कि देश में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार श्रीनगर के सारे मंदिर स्वतंत्र हुए, अयोध्या के लोगो के संकल्प पूरे हुए। युवा पीढ़ी भी इस संस्कृति महोत्सव से जुड़ी हुई है। युवा संत अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। इस सरकार ने विश्वनाथ कॉरिडोर के माध्यम से गंगा और शिव के बीच की बाधा को मिटा दिया है।
भारतीय संस्कृति की प्राचीन परम्परा की चर्चा करते हुए आयोजन समिति के संरक्षक और धर्मार्थ कार्य व संस्कृति राज्यमंत्री नीलकण्ठ तिवारी ने कहा कि हमारी संस्कृति में सभी देवी-देवता विराजमान है। कहा कि १०७ वर्ष पुरानी मूर्ति जो कनाडा में रखी हुई थी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से वह भारत आ गई। हजारों करोड़ की परियोजनाएं हमारी संस्कृति और परम्परा को मजबूत बनाने के लिए ही चल रही हैं। संतों के आर्शीवाद और नेतृत्व में आज राम मन्दिर का निर्माण हो रहा है। दो सौ से ज्यादा आध्यात्मिक स्थलों का विकास किया जा रहा है। वाल्मीकि धाम का विकास हो रहा है, लक्ष्मण झूला चल चुका है, चित्रवूâट आज पहले जैसा नहीं रहा है। पूजन-पाठ के लिए आज नदियों के किनारे पक्के घाट बन चुके हैं। प्रयागराज कुम्भ में पिछली बार २४ करोड़ से ज्यादा लोग आ चुके हैं लेकिन जरा भी दिक्कते नहीं हुर्इं। विंध्यधाम सहित काशी में विश्वनाथ धाम धाम, माँ गंगा के निर्मलीकरण सहित विभिन्न आध्यात्मिक स्थलों पर वेंâद्र और प्रदेश सरकार विकास कार्य चला रही है। यह सब कार्य हमारी संस्कृति को विश्वविख्यात करने के लिए है।
गंगा महासभा के संगठन महामंत्री गोविन्द शर्मा ने संचालन करते हुए कहा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता की कुर्सी से हटाने के लिए और हिन्दू धर्म पर प्रहार करते हुए अमेरिका के व्यापारी जॉर्ज सोरोस ने एक बिलियन डॉलर का पंâड बनाया है। आज पूरे विश्व में हिन्दूजन निवास करते हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए यहां पर चर्चा होगी।
माँ गंगा, पंडित महामना मदनमोहन मालवीय, स्वर्गीय जीडी अग्रवाल और दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान सम्पादक नरेन्द्र मोहन जी के चित्र पर माल्यापर्ण व गणेश वंदन से हुआ। मंच पर मुख्य अतिथि परमपूज्य शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज, परमपूज्य जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी राजराजेश्वराचार्य जी महाराज, श्री महंत स्वामी ज्ञानदेव सिंह जी, अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष आचार्य अविचलदास जी, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री महन्त रवीन्द्र पुरी जी, अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती जी, श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी, राज्यसभा सांसद श्रीमती रूपा गांगुली, आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. इन्द्रेश कुमार, धर्मार्थ एवं संस्कृति मंत्री नीलकण्ठ तिवारी, श्रीकाशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल, विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री दिनेश चन्द्र, गंगा महासभा के अध्यक्ष श्री प्रेमस्वरूप पाठक, दैनिक जागरण के संपादक आशुतोष शुक्ल की उपस्थिति रही। इस तीन दिवसीय संस्कृति संसद में देश के १८ राज्यों से आए प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
हिन्दू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार (प्रथम सत्र)
संस्कृति संसद के ‘सनातन हिन्दू धर्म के अनुत्तरित प्रश्न’ विषयक प्रथम सत्र के अध्यक्ष एवं जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती ने कहा कि हिन्दू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार है। स्त्री एवं पुरुष दोनों एक ही परमेश्वर के दो भाग हैं इसका उल्लेख मनुस्मृति में है। उन्होंने कहा कि स्त्री विभिन्न रूपों में पूजनीय है। यह मान्यता सिर्पâ हिन्दू संस्कृति में है। उन्होंने यह विचार हिन्दू संस्कृति में नारियों की विषम स्थिति सम्बंधी प्रश्न के उत्तर में कहा।
प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान समय में विद्वानों एवं सन्तों को हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए विदेशों की यात्राएं करनी चाहिए। यह विचार उन्होंने सन्तों के समुद्र पारगमन की रोक के संदर्भ में कही। उन्होंने कहा कि समुद्र पारगमन पर रोक सुरक्षा की दृष्टि से थी क्योंकि उस समय यात्रा नौका से होती थी, जो सुरक्षित नहीं थी। वर्तमान तकनीकि युग में यह प्रतिबंद उचित नहीं है। अगले वक्ता प्रो. रामनारायण द्विवेदी, महामंत्री काशी विद्वत परिषद ने कहा कि बिना महिलाओं के कोई यज्ञ नहीं होती ऐसी हिन्दू धर्म की व्यवस्था है इसलिए महिला उपेक्षा का आरोप धर्ममान्य नहीं है। प्रो. वाचस्पति त्रिपाठी ने कहा कि हिन्दू संस्कृति में नारी अपमान का आरोप विरोधियों का कुप्रचार है। नारी उपनयन के रूप में विवाह को मान्यता है। विवाह के उपरान्त कुल संचालन ही उसकी दीक्षा एवं जीवनचर्या का भाग है। महिलाओं को पुरुषों से प्रमुख स्थान दिया गया है। इसीलिए कृष्ण के पहले राधा, राम के पहले सीता, शिव के पहले पार्वती का उच्चारण होता है। इस तरह के अनेकों उदाहरण हैं जो महिला सम्मान को प्रदर्शित करते हैं। इस सत्र का संचालन गंगा महासभा के गोविन्द शर्मा, राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) ने किया।
हिन्दू संस्कृति है विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति (द्वितीय सत्र)
भारत की प्राचीनतम अखण्डित संस्कृति की वैश्विक छाप एवं वर्तमान परिदृश्य विषयक संस्कृति संसद के दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता योगानन्द शास्त्री (पोलैण्ड) ने कहा कि पोलैण्ड के आसपास लगभग एक हजार क्षेत्र ऐसे हैं जहां की संस्कृति प्राचीनकाल में हिन्दुत्व की थी। उन्होंने यह विचार संस्कृति संसद के दूसरे सत्र में वाराणसी नगर निगम परिसर स्थित रुद्राक्ष सभागार में आयोजित तीन दिवसीय संस्कृति संसद में व्यक्त किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनाए जाने के प्रश्न के उत्तर में कहा कि यह संस्कृति निःस्वार्थ भाव को बढ़ावा देती है इसलिए आकर्षित होना स्वभाविक है। उन्होंने कहा कि पोलैण्ड में पोलैण्ड टाइम्स, संस्कृति से जुड़े हुए पुस्तकों का प्रकाशन एवं प्रसार करती है।
योगाचार्य दिव्यप्रभा (ब्रिटेन) ने हिन्दू धर्म के खिलाफ हो रहे कुप्रचार के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दू धर्म संस्कृति एक प्रकाश की भांति है जो अपनी रोशनी चारों ओर पैâला रही है उसको आरोपों के द्वारा छिपाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि हिन्दू सदा हिंसा से दूर रहता है। वास्तव में हर व्यक्ति दुःख से मुक्त होना चाहता है और सुख-शांति चाहता है। यह मार्ग हिन्दू धर्म बताता है। इस सत्र का संचालन दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अनन्त विजय ने किया।
युवा समस्याओं का समाधान श्रेष्ठ संस्कारों से (तृतीय सत्र)
संस्कृति संसद के तृतीय सत्र ‘भारतीय युवा; जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार’ के मुख्य वक्ता लद्दाख के लोकसभा सांसद जमयांग सेिंरग नामग्याल ने कहा कि भारतीयता की भावना भारतीय संस्कृति से उत्पन्न होती है। भारतीय संस्कृति के द्वारा आत्मसाहस पैदा होता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याएं हैं। इसे समाप्त करने के लिए युवकों को आगे आना चाहिए। काशी महत्वपूर्ण केन्द्र है। यहां से युवकों को प्रेरित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि मजबूत संस्कार से ही नकारात्मकता दूर होगी और संस्कृति बचेगी।
राज्यसभा सांसद एवं संस्कृति संसद के आयोजन समिति की अध्यक्ष रुपा गांगुली ने कहा कि हिन्दू संस्कृति कभी भी हिंसक एवं हमलावर नहीं रही। वर्तमान समय में हिन्दू संस्कृति पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं, उससे सजगतापूर्वक संघर्ष की जरूरत है।
स्वामी कृष्णानंद ने कहा कि हम बुराइयों से संघर्ष करने से पीछे हट रहे हैं। विश्व मे सर्वाधिक युवाओं वाला देश भारत है और यहां युवकों में नैतिक आचरण के लिए सांस्कृतिक जागरण आवश्यक है। यह संस्कृति संसद आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का प्रथम आधार परिवार है।
दैनिक जागरण के उत्तर प्रदेश संपादक आशुतोष शुक्ल ने कहा की गीता का पहला शब्द धर्म है, जबकि अंतिम शब्द मम: है, जिसका अर्थ है मेरा धर्म। अगर आप अपने कार्य के साथ वफादार नही हैं तो आप अधर्मी हैं। अगर हम संस्कृति को अगली पीढ़ी के पास स्थानांतरित नही करेंगे तो आने वाली पीढ़ी कैसे हमारे संस्कारों को समझ पाएगी। आगे उन्होंने कहा कि मोबाइल ने युवकों की भाषा बिगाड़ दी है जिससे कि पिछले १५-२० वर्षों में भाषायी गिरावट आई है। आगामी पीढ़ी को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें संस्कृति का ज्ञान उन्हें अवश्यक देना चाहिए।
समान नागरिक संहिता है भारतीय संविधान की आत्मा (समानान्तर सत्र)
स्कूलों में पढ़ाया जाए कानून, बच्चे भी समझ सकें अपने अधिकार, जान सकें धाराएं – अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय
‘एक देश एक विधान, हमारा देश हमारे कानून’ विषय पर समानांतर सत्र को संबोधित करते हुए अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि देश को विकास के लिए समान नागरिक संहिता आवश्यक है। समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान की आत्मा है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, १९६१ में बनाया गया पुलिस ऐक्ट, १८७२ में बनाया गया एविडेंस एक्ट और १९०८ में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड सहित सभी कानून बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू हैं। पुर्तगालियों द्वारा १८६७ में बनाया गया पुर्तगाल सिविल कोड भी गोवा के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू है लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद बनाया गया आर्टिकल ४४ अर्थात समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कभी भी गंभीर प्रयास नहीं किया गया और एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया। अब तक १२५ बार संविधान में संशोधन किया जा चुका है और ५ बार तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी पलट दिया गया लेकिन ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का एक मसौदा भी नहीं तैयार किया गया, परिणाम स्वरूप इससे होने वाले लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। समान नागरिक संहिता शुरू से भाजपा के मैनिफेस्टो में है इसलिए भाजपा समर्थक इसका समर्थन करते हैं और भाजपा विरोधी इसका विरोध करते हैं लेकिन सच्चाई तो यह है कि समान नागरिक संहिता के लाभ के बारे में न तो इसके अधिकांश समर्थकों को पता है और न तो इसके विरोधियों को, इसीलिए समान नागरिक संहिता का एक ड्राफ्ट तत्काल बनाना नितांत आवश्यक है। कहा कि वर्तमान समय में अलग- अलग धर्म के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीन भावना व्याप्त है इसलिए सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से हीन भावना से मुक्ति मिलेगी। कहा कि ‘एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी पर समान रूप से लागू होगी और बाझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ एक समान रूप से मिलेगा चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई। विवाह-विच्छेद का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा. विशेष परिस्थितियों में मौखिक तरीके से विवाह विच्छेद की अनुमति भी सभी को होगी चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई। पैतृक संपति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को एक समान अधिकार प्राप्त होगा चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई और संपति को लेकर धर्म जाति क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी। अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमे में उलझना पड़ता है। सबके लिए एक नागरिक संहिता होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा। जब तक भारतीय नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तब तक भारत को सेक्युलर कहना सेक्युलर शब्द को गाली देना है।