जो राष्ट्र अपना इतिहास भूल जाता है, उस राष्ट्र का भविष्ट अंधकारमय होता है, इस सिद्धांत का विस्मरण होकर आज कई भारतीय अपनी गौरवशाली परंपरा भूलते जा रहे हैं । दुर्भाग्यवश आज हमारे देवी-देवताएं, संत-महात्मा, राष्ट्रपुरुष और क्रांतिकारी आज की भावी पीढी के आदर्श बनने के स्थान पर मादक पदार्थ सेवन करनेवाले, साथ ही अश्लील फिल्मों में काम करनेवाले अभिनेता-अभिनेत्री इत्यादि आदर्श बनने लगे हैं । हाल ही में ड्रगसेवन प्रकरण में गिरफ्तार एक अभिनेता के लडके को जमानत मिलने के उपरांत जिस प्रकार से उसके घरतक उसकी शोभायात्रा निकाली गई, उसके कारागार में होने के समय उसका दिनक्रम कैसा था; इसकी प्रसारमाध्यमों ने भर-भरकर जानकारी दी । फिल्मी अभिनेताओं-अभिनेत्रियों ने जिस प्रकार उसे अपना समर्थन दिया, उसे देखकर आज हमारा देश किस दिशा में जा रहा है, उसके प्रति चिंता लगने लगती है । आज के राजनेताओं और प्रसारमाध्यमों को लोकमान्य तिलकजी ने स्वराज्यप्राप्ति हेतु ब्रिटिशों की अन्यायकारी नीति के विरोध में चलाई गई लेखनी और केवल राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर की गई राजनीति ध्यान में लेनी चाहिए । विदेश में राष्ट्रीय व्यक्तित्वों को सम्मान का स्थान और जनता से आदरभाव मिलता है और विशेषरूप से उनके स्मृतिस्थलों को संजोया जाता है । एक समय में विश्व पर राज करनेवाले ब्रिटेन ने वहां के राजतंत्र को हटाकर लोकतांत्रिक पद्धति का स्वीकार किया; परंतु आज भी ब्रिटिशों के जीवन में उनकी रानी और राजा का स्थान तनिक भी न्यून नहीं हुआ है । दुर्भाग्यवश इस विषय में भारत में राष्ट्रपुरुषों और क्रांतिकारियों की उपेक्षा ही होती हुई दिखाई देती है । इलिए लोकमान्य तिलकजी का जन्मस्थान आज उपेक्षित है । यह जन्मस्थान महाराष्ट्र शासन के पुरातत्व विभाग, रत्नागिरी के अधीन है । रत्नागिरी में ऊर्दू भवन बनाने की घोषणा की जाती है; परंतु वर्षाें से इसी शहर में स्थित लोकमान्य तिलकजी के जन्मस्थान की दुःस्थिति के संदर्भ में सरकार को कोई आस्था ही नहीं है । कोरोना काल के कारण रत्नागिरी का लोकमान्य तिलकजी का बंद जन्मस्थान महाराष्ट्र शासन के आदेश पर १३ नवंबर २०२१ से पर्यटकों के पुनः खुल गया है । यहां हम लोकमान्य तिलकजी की जन्मभूमि की हुई दुःस्थिति की जानकारी दे रहे हैं ।
१. जन्मस्थान के ऐतिहासिक वास्तु के छत की दुःस्थिति
स्वतंत्रतापूर्व काल में जिस प्रकार से पुराने घर थे, उसी प्रकार जन्मस्थान की छत पुराने खपडों से ढंका हुआ था; परंतु तूफानी हवा, वर्षा और वानरों के उत्पात के कारण ये खपडे टूटकर उससे वर्षा का पानी जन्मस्थान की वास्तु में जाने लगा । स्थानीय सूत्रों से यह जानकारी मिली कि इस पर उपाय के रूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने इस छत पर टिन लगाकर उस पर ये पुराने खपडे रख दिए; परंतु आज जन्मस्थान के छत पर लगाए गए पुराने खपडे टूट चुके हैं और वो वैसे ही टूटे हुए स्थिति में रखे गए हैं । छत के कुछ भाग में स्थित खपडों को निकाला गया है । वहां के टिन खुल कर उनमें जंग लग गया है और वो सड रहे हैं । स्मारक के पिछले भाग की छत पर स्थित खपडों पर घास बढी है । समय रहते ही इसकी ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो वर्षाऋतु में पानी का रिसाव होकर यह ऐतिहासिक वास्तु और इस वास्तु में जतन की गई तिलकजी की अनमोल धरोहर के खराब होने का भय है ।
२. रंग उड चुकी जन्मस्थान की वास्तु
जन्मस्थान की वास्तु का रंगकाम नहीं किया गया है, उससे दीवार पर शैवाल उग गया है, तो कुछ स्थानों पर दीवार में दरारें आई हैं ।
३. जन्मस्थान का जंग चढा हुआ फलक
पुरातत्त्व विभाग द्वारा जन्मस्थान के प्रवेशद्वार पर लगाए गए फलक में जंग चढ गया है और उसे ठीक से पढना नहीं आता । दूसरे फलक पर पेड की शाखा आने से फलक संपूर्णरूप से पढा नहीं जा सकता । वास्तु की उपेक्षा तो हो ही रही है, परंतु पुरातत्त्व विभाग को न्यूनतम खराब हो चुके फलक को हटाकर वहां नया फलक लगाना चाहिए, यह स्थानीय नागरिकों की अपेक्षा है ।
४. लोकमान्य तिलकजी की मूर्ति और मेघडंबरी की दुःस्थिति
जन्मस्थान के प्रवेशद्वार के पास स्थित मेघडंबरी में लोकमान्य तिलकजी की पूर्णाकृति मूर्ति है । इस मूर्ति के कुछ स्थानों में रंग उड गया है और वहां के रंग की पपडी निकली है । मूर्ति की धातु का भाग कुछ स्थानों पर सडने जैसा हुआ है । मेघडंबरी के स्तंभों में लगाई गई फर्श में दरारें पड गई हैं और उन्हें भरा नहीं गया है । मेघडंबरी के उपर की अर्धवृत्ताकार छत का रंग उड गया है । मेघडंबरी के उद्घाटन का फलक खराब हो चुका है और उसे ठीक से पढा नहीं जा सकता । स्थानीय नागरिक यह मत व्यक्त कर रहे हैं कि केवल उद्घाटन कर फलक लगाने और संबंधित वास्तु खराब होनेतक उसकी ओर मुडकर भी नहीं देखना, यह नेताओं की और अधिकारी वर्ग की पुरानी आदत है ।
५. शिल्पाकृति की दुःस्थिति
मेघडंबरी के पीछे लोकमान्य तिलकजी के जीवन के कुछ प्रसंग दर्शानेवाली शिल्पाकृति जिस लोहे की एंगल पर लगा दी गई है, उसका वेल्डिंग टूट जाने से यह शिल्पाकृति टूटकर नीचे गिरी और यह टूटी हुई शिल्पाकृति को स्मारक की संरक्षक दीवार को लगाकर रखी गई है और वह खराब हो चुकी है । शिल्पाकृति का टूटा हुआ भाग अन्यत्र कहीं रखा गया है, यह ज्ञात हुआ । शिल्पाकृति पर पेड की शाखाएं आने से वह ठीक से दिखाई नहीं देती । लोकमान्य तिलकजी के जीवन के प्रसंगों पर आधारित चित्रित की गई शिल्पाकृति की यदि ऐसी स्थिति हो, तो कुल मिलाकर लोकमान्यजी के जन्मस्थान का जतन किस प्रकार किया जा रहा होगा, यह पाठकों की समझ में आ सकेगा ।
६. अपर्याप्त कर्मचारीवर्ग और जन्मस्थान की जानकारी देने की व्यवस्था का अभाव
स्थानीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्मारक का अवलोकन करने हेतु संपूर्ण देश से पर्यटक और विद्यालय-महाविद्यालयों के छात्र आते हैं । वे स्मारक की जानकारी पुस्तक मांगते हैं; परंतु स्मारक के स्थान पर ऐसी पुस्तिका रखी नहीं गई है । इससे पूर्व जन्मस्थान की जानकारी देने हेतु कर्मचारीवर्ग का अभाव दिखाई देता था । यह जन्मस्थान की भूमि लगभग १ एकर है । इतनी बडी भूमि और जन्मस्थान की वास्तु की देखभाल के लिए पहले २ पहरेदार थे; परंतु वर्तमान में केवल एक ही पहरेदार है । इसी एकमात्र पहरेदार को जन्मस्थान की साफसफाई, पर्यटकों के लिए बनाए गए स्वच्छतागृहों की साफसफाई, पेडों की देखभाल, वाटिका का रखरखाव, पर्यटकों को जन्मस्थान की जानकारी देना इत्यादि काम करना पडता है ।
७. जन्मस्थान के पिछले भाग के परिसर की दुःस्थिति
स्थानीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस स्मारक का परिसर लगभग १ एकर का है, जिसमें आम, नारियल और अन्य वृक्ष हैं तथा परिसर में स्वच्छता का अभाव है । एक स्थान पर जन्मस्थान की संरक्षक दीवार का बाहर का एक बडा वृक्ष इस संरक्षक दीवार पर टीका हुआ है । इस वृक्ष के भार से यह संरक्षक दीवार कभी भी गिर सकती है, यह स्थिति है । जन्मस्थान की पिछली बाजू में स्थित आम के टूटे हुए वृक्ष का शेष तना वैसा ही रखा गया है । परिसर में गिरे हुए वृक्ष, लकडी की सामग्री, ईंटे, खपडे आदि अस्तव्यस्त पडे हुए हैं । पर्यटकों के लिए नया स्वच्छतागृह बनाया गया है; परंतु टूटने की कगार पर स्थित पुराना स्वच्छतागृह उसी स्थिति में रखा गया है ।
८. पर्यटकों के लिए पेयजल की व्यवस्था उपेक्षित
जन्मस्थान की पिछली बाजू में स्थित कुएं पर लगाए गए २ पंपों में से एक खराब स्थिति में है । कुएं की स्वच्छता नहीं की जाती । इस कुएं में भाठ जमा हुआ है । यहां पेयजल का संग्रह करने की व्यवस्था नहीं है । एक चंदादार द्वारा भेंट किया गया कूलर कई वर्षाें से बंद है । उसके कारण पर्यटकों के लिए पेयजल की व्यवस्था उपेक्षित है ।
९. अनियमितताएं टालने हेतु सीसीटीवी कैमरे लगाने की आवश्यकता
जन्मस्थान का अवलोकन करने आए पर्यटकों में से कुछ पर्यटकों को जन्मस्थान की पिछली बाजू में स्थित बेंचों पर बैठकर मदिरापान करते हुए पकडा गया था । देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित करनेवाले व्यक्तित्व का अनादर करनेवाले ऐसी कुप्रवृत्तियों को दंडित करने की दृष्टि से और कुल मिलाकर इस ऐतिहासिक वास्तु की रक्षा होने की दृष्टि से यहां सीसीटीवी कैमरे लगाने की व्यवस्था की जानी चाहिए,, यह स्थानीय लोगों की मांग है ।
१०. वाहनतल (पार्किंग) की व्यवस्था और उसके लिए फलक न होना
इस जन्मस्थल का अवलोकन करने हेतु संपूर्ण देश से अनेक नागरिक और छात्र आते रहते हैं । तब उन्हें वाहन का पार्किंग करने में समस्या आती है और उससे यातायात प्रभावित होता है । इसके लिए स्वतंत्ररूप से वाहनतल की व्यवस्था की जाए और जन्मस्थान के प्रवेशद्वार के बाहर उस आशय का फलक लगाया जाए, ऐसी मांग स्थानीय लोग कर रहे हैं ।
११. प्रवेशद्वार के पास का जंग चढकर टूटा हुआ लोहे का ग्रील
जन्मस्थान के प्रवेशद्वार के पास का लोहे का ग्रील जंग चढकर टूट गया है । टूटे हुए भाग पर लकडी की पट्टियां बांध दी गई है, ऐसा दिखाई दे रहा है ।
जन्मस्थान के सुधार के दृष्टि से स्थानीय लोगों से की गई कुछ सूचनाएं
१. जन्मस्थान के रखरखाव के लिए और अन्य कामों के लिए पर्याप्त कर्मचारीवर्ग रखा जाए ।
२. जन्मस्थान में लोकमान्य तिलकजी के विषय में जानकारी देनेवाले मराठी फलक हैं । इस स्थान का अवलोकन करने के लिए संपूर्ण देश से अनेक बहुभाषी नागरिक और छात्र आते हैं । उनके लिए भाषा का प्रश्न आता है; इसके लिए यहां हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में भी फलक लगाए जाएं ।
३. जन्मस्थान की वास्तु पुरानी होने से उसके लिए उपयोग किए गए खंबों, बांस, रेजे और बॉटमपट्टियों की लकडी में खराबी आने की संभावना है; इसलिए उन्हें बदला जाए अथवा उनमें सुधार किए जाएं ।
४. जन्मस्थान में प्रवेश करने के द्वार की दोनों बाजुओं में लकडी के रेजे हैं । दो रेजों में जो दूरी है, वहां से बिल्लीया और सांप अंदर घुस सकते हैं; इसलिए रेजों की अंदर की बाजु से खुलनेवाली और बंद होनेवाली लोहे की झडपें (शटर) लगाए जाएं ।
५. लोकमान्य तिलकजी का कार्य दर्शानेवाला जीवनपट (डॉक्युमेंटरी) दिखाने की व्यवस्था की जाए । इसके साथ ही वहां पर जानकारी पुस्तिका, लोकमान्यजी द्वारा लिखित ग्रंथों की चुनिंदा प्रतियां, छायाचित्र इत्यादि सामग्री रखी जाए । जन्मस्थान की स्मृतियों के रूप में पर्यटक उन्हें खरीद सकेंगे और उससे पुरातत्व विभाग को आय भी होगी ।
६. वास्तु की बाहर की स्थिति को ध्यान में लेते हुए वास्तु के अंदर दीवार का रंग उड जाने की संभावना है; इसलिए उसे रंगाया जाए ।
७. वास्तु के अंदर स्थित जानकारी फलकों की जांच कर आवश्यक फलक (जीर्ण हो चुके और जिन पर अंकित अक्षर दिखाई न दे रहे हों) बदलकर उस स्थान पर उसी लेखन और चित्रों के नए फलक लगाए जाए ।
८. पूर्व में भूमि लीपी जाती थीं । इस जन्मस्थल को पूर्व में अवलोकन किए हुए लोग बताते हैं कि वास्तु के अंदर कोबा किया गया है और उस पर गोबर से लीपा हुआ था । वास्तु की पुरानी स्थिति टिकी रहे; इसके लिए वास्तु की भूमि को नियमितरूप से गोबर से लीपी जाए ।
९. राज्य शासन की ओर से जन्मस्थान के नवीनीकरण हेतु ४.५ करोड रुपए की धनराशि का प्रबंध किए जाने के समाचार प्रकाशित हुए थे । यह पारित धनराशि केवल कागद पर न रहकर उस राशि का उचित विनियोग कर उससे लोकमान्य तिलकजी के त्वरित संरक्षण और संवर्धन किया जाए ।
१०. जन्मस्थान के प्रवेशद्वार के पास की वास्तु कई वर्षाें से वैसी ही विनाउपयोग पडी हुई है । वहां लोकमान्य तिलकजी के ग्रंथों का ग्रंथालय बनाया जाए, जिससे पर्यटकों को लोकमान्यजी के विषय में विस्तृत जानकारी मिलेगी और उन्हें अध्ययन करना भी संभव होगा ।
११. लोकमान्य तिलकजी का यह जन्मस्थान वर्तमान में महाराष्ट्र शासन के पुरातत्व विभाग के अधीन है । इस जन्मस्थान को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए ।
१२. लोकमान्य तिलकजी को भारतरत्न पुरस्कार घोषित हो ।
जिन लोकमान्य तिलकजी ने स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु अपना जीवन समर्पित किया और बंदीवास झेला, उनके जन्मस्थान की यह दुःस्थिति को देखते हुए हमारे राष्ट्रपुरुषों और क्रांतिकारियों के जाज्ज्वल्य इतिहास का जतन करने की दृष्टि से कदम उठाने हेतु राज्यकर्ताओं का मस्तिष्क कब अपने स्थान पर आएगा, यह प्रश्न अनेक लोगों के मन में उठ रहा है । राष्ट्र की भावी पीढी को अर्थात राष्ट्र को विजिगिषु बनाना हो, तो लोकमान्य तिलकजी जैसे महान स्वतंत्रतासेनानायकों के स्मृतिस्थलों का प्राणों से भी अधिक जतन करना समय की मांग है !