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हिंदू धर्म बचाने पाकिस्तान से भाग कर आए दिल्ली, ईसाई संगठन कर रहा इनके साथ धर्मांतरण का खेल

पाकिस्तान में कट्टरपंथियों से त्रस्त आकर भारत में शरण लेने वाले हिंदू शरणार्थी आज भी ठोकरें खाने को मजबूर हैं। दिल्ली के मजनू के टीले पर बने शरणार्थी कैंप की तो हालत ऐसी है कि यदि ग्राउंड पर जाकर पता किया जाए तो मालूम होता है कि उन्हें खाने-पीने के भी लाले पड़े हुए हैं, गर्मी और या सर्दी उनके पास बिजली की सुविधा भी नहीं है। अब इन सब मूलभूत परेशानियों के अलावा एक जो विकट संकट उनके सामने आया है वो ईसाई मिशनरियों और एनजीओ का है। ये संस्थान खाने-पीने की चीजें देने आती हैं लेकिन बदले में चाहती हैं अंगूठा और लोगों की सारी जानकारी। अगर इन्हें ये न मिले तो ये सारा सामान वापिस ले जाती हैं।

न्यूज इंडिया के ऑपरेशन अंगूठा में इस पूरे खेल का पर्दाफाश हुआ है। गौरव मिश्रा की रिपोर्ट में शरणार्थी कैंप के पास सालों से मंदिर की देखरेख करने वाली उर्मिला रानी के हवाले से कहा गया कि अब तक तीन हिंदू शर्णार्थियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया है। वह बताती हैं कि यहां पर मिशनरी संस्थाओं का आना-जाना था। ऐसे में उन लोगों ने इस पर रोक लगाई लेकिन बाद में मिशनरियाँ अलग नाम से वहां सक्रिय हो गईं।

मंदिर के संतों का भी कहना यही है कि गरीब, मजबूर पाकिस्तानी हिंदुओं पर धर्म परिवर्तन का बहुत दबाव है। यदि वह इससे साफ मना करते हैं तो उनकी रोटी का इंतजाम मुश्किल हो जाएगा। इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि कैंप में रहने वाले शरणार्थी जो अपना धर्म बचाने के लिए भारत आए उन्हें यहां आकर रामलीला आयोजन करने से मना कर दिया जाता है। लेकिन मिशनरियाँ उन्हें क्रिसमस सेलीब्रेट करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

अलग-अलग एनजीओ इन हिंदू शर्णार्थियों के नाम पर फंड बटोरती हैं। लेकिन इन पैसों से इन लोगों के उत्थान के लिए क्या किया जाता है, ये ग्राउंड पर दिखना बाकी है। वहां रहने वाले अब भी छोटी-छोटी चीजों के लिए तरसते हैं। रिपोर्ट का दावा है कि पहले कोरोना महामारी में सरकार द्वारा नजरअंदाज किए जाने से इन हिंदू शर्णार्थियों को प्रताड़ना से गुजरना पड़ा और अब उन्हें बिन अंगूठा लगवाए खाना भी नहीं दिया जाता। डर है कि साइलेंट कन्वर्जन का गंदा खेल हो सकता है।

हिंदुओं का कहना है कि मदद के नाम पर जिस संदिग्ध तरीके से अंगूठा लेकर डाटा कलेक्शन पर जोर दिया जाता है, वह साफ बताता है कि संस्थाओं की मंशा कुछ और है। स्थानीय, तमाम मुद्दों से परेशान होकर कहते है कि अपने हालातों पर और परेशानियों पर वह दिल्ली सरकार से गुहार लगा चुके हैं लेकिन हालात अब तक सुधरते नहीं दिख रहे। उन्हें आज भी बिजली, खाने-पीने की परेशानी बनी ही हुई है।

संदर्भ : OpIndia

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