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हिन्दुओं को देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर पूजा का अधिकार देने की मांग न्यायालय ने अस्वीकार की !

  • कुतुबमिनार परिसर में, २७ हिन्दू एवं जैन मंदिरों को गिराकर मस्जिद बनाने का प्रकरण !
  • ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप १९९१’ कानून के आधार पर मांग अस्वीकार की !
  • अतीत में की गई चूकें, वर्तमान और भविष्य की शांति भंग होने का आधार नहीं बन सकतीं ! – साकेत न्यायालय
कुतुबमीनार परिसर में २७ हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया था !

नई देहली : यहां के साकेत न्यायालय ने, ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप १९९१’ कानून के आधार पर, देहली के कुतुबमिनार में २७ हिन्दू और जैन मंदिरों में पूजा का अधिकार मांगनेवाली याचिका अस्वीकार की। इस पर हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन ने इस निर्णय को देहली उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है।

इस कानून के अनुसार, “स्वतंत्रता-पूर्व काल में, भारत में धार्मिक स्थलों की जो स्थिति थी, वह स्थाई रखी जाए”, ऐसा कहा गया है। इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाएगा। केवल श्रीराम जन्मभूमि का प्रकरण ही इसके लिए अपवाद था !

१. न्यायालय ने कहा, कि अतीत में की गई चूकें, वर्तमान और भविष्य में शांति भंग करने का आधार नहीं बन सकतीं। यदि सरकार ने किसी भी स्थल को स्मारक के रूप में घोषित किया, तो लोग वहां धार्मिक कृत्य करने की अनुमति नहीं मांग सकते !

२. पिछले वर्ष प्रविष्ट की गई इस याचिका में कहा गया था, कि कुतुबमिनार के परिसर में हिन्दूओं और जैनों के २७ मंदिर हैं ; इसलिए, वहां पूजा करने की अनुमति दी जाए। यहां जैन तीर्थंकर ऋषभदेव, साथ ही, भगवान विष्णु ये प्रमुख मंदिर थे। इसके साथ ही, श्रीगणेश, भगवान शिव, श्री पार्वतीदेवी, श्री हनुमान आदि देवताओं के भी मंदिर थे। इन मंदिरों को गिराकर, वहां मस्जिद बनाई गई है। यहां पुनः देवताओं की मूर्तियों की स्थापना कर, हिन्दुओं को वहां पूजा का अधिकार दिया जाए।

स्त्रोत : अमर उजाला

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