हिन्दू जनजागृति समिति का राज्य के किलों की रक्षा के लिए अभियान
सिंधुदुर्गनगरी – छत्रपति शिवाजी महाराजी के पराक्रम का साक्षी राष्ट्रीय स्मारक विजयदुर्ग किला महाराष्ट्र का गौरव है; परंतु छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र में इस किले की अत्यंत दुर्दशा हो गई है । अनेक स्थानों पर टूट-फूट होने के कारण विजयदुर्ग किला देखनेवाले दुर्गप्रेमियों की गरदन शर्म से झुक जाती है । किले के संरक्षण एवं संवर्धन का दायित्व रखनेवाले पुरातत्त्व विभाग का निकम्मापन अत्यंत रोषजनक है । राज्य के दुर्ग हमारी ऐतिहासिक धरोहर हैं । हिन्दू जनजागृति समिति ने राज्य के दुर्गों के संवर्धन हेतु अभियान चलाया है । विजयदुर्ग किले के संवर्धन हेतु प्रशासन तत्काल कार्यवाही करे; अन्यथा हिन्दू जनजागृति समिति, शिवप्रेमी एवं दुर्गप्रेमी 29 दिसंबर को राज्यव्यापी आंदोलन शुरू होगा, ऐसी चेतावनी समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगड राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट ने यहां हुई पत्रकार परिषद में दी । इस समय समिति के सिंधुदुर्ग जिला समन्वयक श्री. संदेश गावड़े व सौ. अस्मिता सोवानी मौजूद थे ।
श्री. घनवट ने आगे कहा, छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सेनानियों के पराक्रम का साक्षी सिंधुदुर्ग के जलदुर्गों में से एक दुर्ग है विजयदुर्ग किला । छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य में किलों का अनन्य महत्त्व था । ये किले वर्तमान पीढी को प्रेरणा देते हैं; परंतु इनकी उचित देखभाल न होने के कारण टूट-फूट हो रही है । इसे हमारी यह ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने की आशंका उत्पन्न हुई है ।
किले की दुर्दशा : किले की पहली तटबंदी (सीमा) अनेक स्थानों से ध्वस्त हो गई है । महाद्वार के सामने की दूसरी तटबंदी भी ध्वस्त हो गई है । एक वर्ष से अधिक समय बीत जानेपर भी उसका सुधार-कार्य नहीं हुआ है । उसका अवलोकन करने के लिए राजनीतिक दलों के नेता, जनप्रतिनिधि अनेक बार आए हैं । पुरातत्त्व विभाग ने भी अनेक आश्वासन दिए; परंतु अभी तक ये तटबंदी का काम नहीं किया गया । किले के महाद्वार पर दरवाजे ही नहीं है । इस तटबंदी पर एक वर्ष पहले गिरा वटवृक्ष उसी स्थिति में है । वटवृक्ष गिरने के तटबंदी टूट गई है । किले का परिसर देखें, तो अनेक स्थानों पर पौधों की जडें बुरुज (निरीक्षण-स्थान) एवं तटबंदी में घुस गई हैं तथा वे गिरने की स्थिति में हैं । दर्या बुरुज की तटबंदी का निचला भाग समुद्री जल के कारण भीतर तक खोलखला हो चुका है तथा बुरुज के ध्वस्त होने का संकट निर्माण हुआ है । धुळपांका तहखाने (सुरंग) बंद होने की स्थिति में है । भुयार का मार्ग खोल दें, तो शिवकालीन इतिहास की अनेक बातें समझ में आने की संभावना है ।
यह किला जीतने पर निशाणकाठी टेकडी पर छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपने हाथों से पवित्र भगवा ध्वज फहराया था । आज यहां भगवा ध्वज न लगाते हुए चक्रवात की सूचना देनेवाला यंत्र (बावटा) लगाया जाता है । छत्रपती शिवाजी महाराज के किले पर भगवा ध्वज लगाने में अवरोध कौन उत्पन्न कर रहा है? छत्रपती शिवाजी महाराज की आराध्य देवी श्री भवानी माता की मूर्ति से युक्त मंदिर किले पर क्यों नहीं है ? ऐसा प्रश्न श्री. घनवट ने उपस्थित किया ।
हिंदू विधान परिषद की श्रीमती अस्मिता सोवनी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (एनआईओ) के शोध के अनुसार, विजयदुर्ग किले से 3 किमी की दूरी पर समुद्र में एक पत्थर की दीवार खड़ी की गई है। इसे संरक्षित करने, शोध करने और प्रदर्शित करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में मराठा अरमार के गोदी हैं। इसका वापर मराठी युद्धपोतों की मरम्मत के लिए किया जाता था। इस पर भी शोध और पोषण करने की जरूरत है।
विजयदुर्ग किले के संरक्षण तथा संवर्धन की दृष्टि से हमारी निम्मलिखित मांगें हैं –
१. किला विजयदुर्ग का संपूर्ण अवलोकन संबंधित शासकीय अधिकारियों, किले से संबंधित विशेषज्ञ व्यक्तियों, स्थानीय ग्रामीण इनकी सहायता से कर उसका ब्योरा तत्काल दिया जाए ।
२. विजयदुर्ग किले के सुधार-कार्य, संवर्धन तथा देखभाल के लिए तत्काल शासकीय अनुदान उपलब्ध कराया जाए तथा उसका काम विशेषज्ञ व्यक्तियों के मार्गदर्शन में विशेषज्ञ व्यक्तियों द्वारा तत्काल आरंभ किया जाए ।
३. विजयदुर्ग के निकट वाघोटन खाडी के मुख से सटी सागर की संरक्षक दीवार तथा आरमार की गोदी का संरक्षण तथा संवर्धन किया जाए ।
४. विजयदुर्ग किले के विषय में अभी तक जिन शासकीय अथवा निजी संस्थाओं ने शोधकार्य किया है, उनके शोधकार्य को व्यापक प्रसिद्धि दी जाए ।
५. विजयदुर्ग से संबंधित युद्धों तथा स्थानों के इतिहास का समावेश पाठ्यपुस्तकों में भी किया जाए ।
६. सिंधुदुर्ग जिले के जालस्थल पर तथा राज्य शासन के जालस्थल पर (वेबसाइट पर) विजयदुर्ग किले का इतिहास रोचक पद्धति से छायाचित्रों सहित प्रसिद्ध किया जाए ।
७. किले से संबंधित शिवकालीन वस्तुओं का वस्तुसंग्रहालय (म्यूजियम) किले पर बनाया जाए ।
८. विजयदुर्ग किला और आसपास के क्षेत्र का अध्ययन तथा निरीक्षण ‘नेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी’ नामक गोवास्थित शासकीय संस्था ने वर्ष १९९८ में किया था । इस समय उन्हें कुछ महत्त्वपूर्ण बातें पता चलीं । उन्होंने वे प्रसिद्ध भी की हैं । इस शोधकार्य को आधारभूत मानकर नई तकनीक की सहायता से आगे का शोधकार्य किया जाए ।
वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र में उनके दुर्ग तथा किलों की दुर्दशा खेदजनक है । विजयदुर्ग किले का सुधार-कार्य तत्काल आरंभ न किया गया, तो शिवप्रेमियों तथा दुर्गप्रेमियों को आंदोलन का मार्ग चुनना पडेगा, ऐसी चेतावनी भी श्री. घनवट ने दी ।