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धर्मांधों के तुष्टीकरण के लिए कल्याण के दुर्गाडी किले पर मंदिर की वास्तु का निर्णय होकर भी वहां नमाज की अनुमति

  • तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा हिन्दुओं के उत्सव पर रोक और आधे किले पर हिन्दुओं को प्रवेशबंदी !

  • ईदगाह का विषय न्यायप्रविष्ट होते हुए भी वहां जानेवाले मार्ग का ‘ईदगाह मार्ग’ नामकरण !

दुर्गाडी किले पर श्री दुर्गादेवी का मंदिर

ठाणे : कल्याण स्थित शिवकालीन दुर्गाडी किले पर छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित श्री दुर्गादेवी का मंदिर और उसके पीछे धर्मांधों द्वारा दावा किया जा रहा ईदगाह है । वर्ष १९६८ में कल्याण के कुछ धर्मांधों ने यहां का श्री दुर्गादेवी का मंदिर मस्जिद होने का दावा किया । इस विषय में वर्ष १९७० में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने ठाणे के तत्कालीन जिलाधिकारी को जांच के आदेश दिए । जांच के उपरांत जिलाधिकारी ने दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मंदिर ही होने का निर्णय दिया; परंतु धर्मांधों के लिए वर्ष में २ बार मंदिर की पिछली बाजू में नमाज पढने की अनुमति दी । अब नमाजपठन होने के कारण उस अवधि में पुलिस प्रशासन किले पर उत्सव मनाने से हिन्दुओं को ही रोक रहे हैं, साथ ही किले के आधे क्षेत्र पर हिन्दुओं को प्रवेशबंदी भी की गई है । (मंदिर होते हुए भी उसकी बाजू में नमाज पढने की अनुमति दी जाना, तो केवल मुसलमानों के तुष्टीकरण का यह प्रकार तत्कालीन प्रशासन ने सरकार के निर्देश पर ही किया होगा, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात)

विधानसभा में हुए प्रश्नोत्तर से दुर्गाडी किले में मंदिर ही होने का स्पष्ट

तत्कालीन विधायक ग.भा. कानिटकर ने विधानपरिषद में ‘क्या श्री दुर्गादेवी का मंदिर मस्जिद है ?’, यह प्रश्न उठाया था । उस पर २२ मार्च १९७३ को तत्कालीन राजस्वमंत्री भाऊसाहेब वर्तक ने दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मंदिर होने का स्पष्ट किया था और इस वास्तु को देवालय के रूप में उपयोग करने की हिन्दू समाज की परंपरा होने की बात बताई थी । वर्तक के इस उत्तर से सरकार की भूमिका स्पष्ट हुई थी ।

दुर्गाडी किले पर की वास्तु मंदिर होने का जिलाधिकारी का निर्णय अस्वीकार होने से धर्मांधों ने उसके विरुद्ध कल्याण जिला न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । उसमें उन्होंने मंदिर की पिछली बाजू में स्थित का स्थान ईदगाह होने का भी दावा किया । विशेष बात यह कि ईदगाह की दीवार की दोनों बाजुओं को मिनार (मनोरे) होते हैं, साथ ही वहां उपस्थित मुसलमानों को संबोधित करने के लिए मौलवी को (इस्लाम के धार्मिक नेता) को खडे रहने के लिए स्थान बनाया हुआ होता है । ऐसा यहां कुछ भी नहीं है । दुर्गाडी किले पर पहले से चले आ रहे हिन्दुओं के उत्सव के छायाचित्र भी हिन्दुओं ने न्यायालय को प्रस्तुत किए हैं; परंतु पिछले ४८ वर्ष उपरांत भी यह दावा न्यायालय में लंबित है । (इस किले पर ईदगाह होने का कोई ठोस प्रमाण न होते हुए भी, साथ ही किले पर केवल हिन्दुओं के ही उत्सव मनाए जाने के सभी प्रमाण प्रस्तुत कर भी इतने वर्षाेंतक अभियोग का लंबित रहना, तो यह याचिकाकर्ताओं के साथ हो रहा अन्याय ही है ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात)

विषय न्यायप्रविष्ट होते हुए भी धर्मांधों द्वारा किले के बाजू के मार्ग का ‘ईदगाह मार्ग’ नामकरण !

दुर्गाडी किले पर की यह दीवार ईदगाह है अथवा नहीं ?, यह एक न्यायप्रविष्ट विषय होते हुए भी दुर्गाडी किले की बाजू के मार्ग का नामकरण ईदगाह मार्ग किया गया है । स्थानीय पार्षद मोहम्मद तानकी के नाम का वैसा फलक भी मार्ग की बाजू में लगाया गया है । (कोई प्रकरण न्यायप्रविष्ट होते हुए भी मार्ग का नामकरण ईदगाह मार्ग करना, तो धर्मांधों की उद्दंडता है । सर्वदलीय सरकारों द्वारा अभीतक किए गए तुष्टीकरण का ही यह परिणाम है ! धर्मांधों से डरकर कोई उन पर कार्यवाही करने का साहस नहीं दिखाता, यही सत्य है ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात)

मंदिर के संदर्भ में ठोस ऐतिहासिक प्रमाण होते हुए भी धर्मांधों का वहां मस्जिद होने का दावा !

दुर्गाडी किले पर स्थित श्री दुर्गादेवी मंदिर के शिवकाल से लेकर ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं । वर्ष १६८९ में मातबरखान द्वारा कल्याण जीत लेने के पत्र में दुर्गाडी किला जीतने का भी उल्लेख है । वर्ष १७१९ में रामचंद्र जोशी ने मुघलों से दुर्गाडी किला पुनः जीत लिया । वर्ष १७४९ में कल्याण के सुभेदार वासुदेव जोशी ने दुर्गाडी किले पर दुर्गादेवी का उत्सव किए जाने का उल्लेख है । पेशवाओं के इतिहास में दुर्गाडी किले पर पूजा के लिए वेदमूर्ति महादेव गोडबोले की नियुक्ति किए जाने का भी उल्लेख है । ऐसे कई संदर्भ होते हुए भी, साथ ही वहां मंदिर की वास्तु स्पष्टता से दिखाई देते हुए भी धर्मांधों ने यह मंदिर मस्जिद होने का दावा किया । इससे हिन्दुओं की धार्मिक स्थलों और किलों पर दावा कर उन्हें हडप लेने की धर्मांधों की मंशा दिखाई देती है ।

धर्मांधों के दावे को लेकर सर्वदलदीय सरकार की ओर से हिन्दुओं को घेरने का कृत्य !

वर्ष १९६८ में कल्याण के धर्मांधों ने दुर्गाडी किले पर अधिकार जताया, तब उसका कोई आधार न होते हुए भी पुलिस प्रशासन ने मंदिर में उत्सव मनाने पर प्रतिबंध लगा दिए, जो अभीतक जारी हैं । आज के समय में मंदिर की पिछली दीवार के स्थान पर बकरी ईद और रमजान ईद के दिन धर्मांध किले पर नमाज पढने के लिए आते हैं, उस समय हिन्दुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता । तब मंदिर के पुजारी को भी पुलिस मंदिर में नहीं जाने देती । मंदिर की घंटा भी बांध दी जाती है । पिछले ४० से अधिक वर्षाें से इस दीवारवाले किले के आधे क्षेत्र में हिन्दुओं को प्रवेशबंदी की गई है । (हिन्दुओं ने किसी मस्जिद पर दावा किया होता, तो पुलिस हिन्दुओं को वहां प्रवेश भी नहीं करने देती । यहां इस बात का कोई आधार न होते हुए भी धर्मांध हिन्दुओं के धार्मिक स्थल पर अपना अधिकार जता रहे हैं और सरकार एवं पुलिस उन्हें रोकने के स्थान पर हिन्दुओं पर प्रतिबंध लगा रहे हैं । इससे राजनेताओं और पुलिस प्रशासन का मुसलमानप्रेम ही दिखाई देता है । देश में बहुसंख्यक जनसंख्यावाले समुदाय को इस प्रकार से दुय्यमता का व्यवहार केवल भारत में ही मिलता है, इसे ध्यान में लीजिए ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात)

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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