राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के गठन को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार का जवाब अब तक न आने पर सर्वोच्च न्यायालय ने असंतोष जताया है। न्यायालय ने आज केंद्र सरकार पर 7500 रुपए का सांकेतिक जुर्माना लगाया। न्यायालय ने जिस मामले में यह जुर्माना लगाया है, उसे वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल किया है। याचिका में हर राज्य में आबादी के हिसाब से अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने 1992 के नेशनल माइनॉरिटी कमीशन एक्ट और 2004 के नेशनल माइनॉरिटी कमीशन एजुकेशन इंस्टिट्यूशन एक्ट को चुनौती दी है।
#SupremeCourt imposes Rs 7500 cost on the #UnionGovernment for not responding to plea seeking minority status for Hindus in 6 states & 2 UT’s based on 2011 census.
The plea seeks state-wise population as basis to determine minority status.
— Live Adalat (@LiveAdalat) January 31, 2022
याचिकाकर्ता का कहना है कि, कई राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। लद्दाख में हिंदू आबादी 1 प्रतिशत है। मिज़ोरम में 2.75 प्रतिशत, लक्ष्यदीप में 2.77 प्रतिशत, कश्मीर में 4 प्रतिशत, नागालैंड में 8.74 प्रतिशत, मेघालय में 11.52 प्रतिशत, अरुणाचल में 29.24 प्रतिशत, पंजाब में 38.49 और मणिपुर में 41.29 प्रतिशत हिंदू आबादी है। लेकिन फिर भी सरकारी योजनाओं को लागू करते समय उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए तय कोई लाभ नहीं मिलता।
याचिका में 2002 के टीएमए पई बनाम कर्नाटक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया गया है। तब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किसी इलाके में जो लोग संख्या में कम हैं उन्हें संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अपने धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए स्कूल, कॉलेज खोलने का हक है। उपाध्याय का कहना है कि जिस तरह पूरे देश में अल्पसंख्यक चर्च संचालित स्कूल या मदरसा खोलते हैं, वैसी इजाज़त हिंदुओं को भी 9 राज्यों में मिलनी चाहिए। इन विद्यालयों को विशेष सरकारी संरक्षण मिलना चाहिए।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग को चुनौती देने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने 28 अगस्त 2020 को नोटिस जारी किया था। पिछले साल फरवरी में अल्पसंख्यक आयोग के गठन को चुनौती पर भी सरकार से जवाब मांगा था। इस साल 7 जनवरी को न्यायालय ने सरकार को जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका दिया था।
स्रोत : एबीपी