शिक्षा से अब तक दूर से आदिवासियों में जैसे-जैसे शिक्षा की रौशनी फैल रही है, वे अपने समाज के प्रति होने वाले षडयंत्रों को पहचानने लगे हैं। उन्हें अहसास होने लगा कि उन्हें सुविधाओं और धन का लालच सिर्फ उनके धर्म को परिवर्तित कराने के उद्देश्य दिया जा रहा है। जैसे-जैसे धर्मांतरित आदिवासी समाज में जागृति आ रही है, वे अपने जड़ों की और लौटने लगे हैं ।
झारखंड जैसे आदिवासी बहुल वाले राज्यों में धर्मांतरण का खेल पूरी गंभीरता के साथ खेला जा रहा है। धर्मांतरण कराने वाले इन गिरोहों के चक्कर में भोले-भाले आदिवासी फंस जाते हैं। राज्य के मझगांव में भी तीन साल पहले कुछ परिवारों ने ईसाई धर्म अपना लिया था। अब ये परिवार पूरे रीति-रिवाज के साथ अपने धर्म में वापस आ गए हैं।
सरना समाजके इन परिवारों को धर्मांतरण के बाद से ही घरवापसी कराने के प्रयास किया जा रहा था। आदिवासी समाज युवा महासभा इन परिवारों को सरना धर्म में वापसी कराने का लगातार प्रयास कर रही थी। महासभा का कहना है कि यह बदलाव लोगों में अपने धर्म के प्रति प्रेम और चेतना के कारण हो रहा है।
नवभारत टाइम्स के अनुसार, पश्चिमी सिंहभूम जिले के मझगांव थाना क्षेत्र के तेतरिया पंचायत के सिरासाई मंगापाट गांव के 3 परिवारों के 14 सदस्य ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे। इनमें से 9 लोगों ने घरवापसी कर ली है, जबकि 5 अब लोग अभी ईसाई धर्म को मान रहे हैं।
सरना धर्म में वापस आने वाले श्रीकांत बांकिरा, उनकी पत्नी, दो बेटी और एक बेटा शामिल हैं। वहीं, दूसरे परिवार के जामुन सिंह कुलडीह, उनकी पत्नी और एक बेटे ने घरवापसी की। तीसरे परिवार से सिर्फ 55 साल के घनश्याम कुलडीह ने घरवापसी की है, जबकि उनकी पत्नी, बेटा एवं बहू और दो पोतियों ने अभी घरवापसी नहीं की है।
आदिवासी समाज युवा महासभा दिउरी (प्रमुख) नरेश पिंगुवा, सह उप-प्रमुख गोवर्धन पिंगुवा ने गाँव के देशाउली का शुद्धिकरण किया गया। कमेटी का कहना है कि धर्म को छोड़कर अन्य धर्मों में गए लागों का स्वागत है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से उनके पूर्वज रहे, वही उनकी भी जीवनचर्या है।
स्रोत : Opindia