दिल्ली की साकेत न्यायालय ने बुधवार को कुतुब मीनार से जुडा फैसला सुनाया है। न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को कुतुब मीनार में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हटाने से रोक दिया है। याचिका में परिसर में बिखरी मूर्तियों की स्थापना, पूजा और कब्जा की मांग गई थी।
मांग थी – ‘दोबारा स्थापना हो, पूजा का अधिकार मिले’
याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने अपनी दलील में कहा था कि, मस्जिद परिसर में भगवान गणेश की दो मूर्तियां जमीन पर पड़ी हैं। इन्हें ASI के सुझाव से उलट परिसर में ही सही जगह पर रखा जाना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया था कि, परिसर में जैन तीर्थंकर, भगवान विष्णु, भगवान गणेश, भगवान शिव, देवी गौरी, हनुमान जी सहित कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। जिनमें से कई को मुगलों ने तोड दिया गया था।
पिछले साल दायर हुई थी याचिका
इस मामले में एक याचिका 9 दिसंबर को दिल्ली की एक दीवानी न्यायालय में लगाई गई थी। जिसमें कहा गया था कि, कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को तोडकर उनके अवशेषों से मस्जिद का निर्माण करवाया था, इसलिए परिसर में बिखरी मूर्तियों को दोबारा स्थापित कर पूजा की अनुमति दी जाए।
हालांकि, जज ने याचिका रद्द करते हुए कहा था कि अतीत की गलतियों के कारण वर्तमान में शांति भंग नहीं की जा सकती। जिसके बाद इसे लेकर साकेत न्यायालय में अपील की गई थी।
विष्णु स्तंभ बताने का दावा भी खारिज हुआ
पिछले दिनों भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधिकारी बीआर मणि ने विश्व हिंदू परिषद के एक दावे को खारिज कर दिया था, जिसमें यह कहा जा रहा था कि कुतुब मीनार मूल रूप से विष्णु स्तंभ था। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर परिसर में किसी तरह की छेडछाड की जाती है तो उसे 1993 में यूनेस्को से मिला विश्व धरोहर का दर्जा छिन जाएगा।
हालांकि मणि ने कहा था कि, मंदिरों को तोडकर ही उनके अवशेषों से मस्जिद बनाई गई थी। लेकिन अब इन मंदिरों को दोबारा बनाने की मांग करना सही नहीं है।
पुजारियों ने भी किया दावा
कुतुब मीनार के नजदीक बने योगमाया मंदिर के पुजारी भी इस बात से सहमती दर्शाते हुए कहा है कि, मीनार के अंदर भगवान गणेश की पूजा सालों से होती आ रही थी। साल 2000 तक वे मंदिर में होने वाली आरती में शामिल होते रहे हैं। इनकी भी मांग मंदिर को दोबारा स्थापित करने की है।
स्रोत : भास्कर