२० हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के १०० से अधिक हिन्दुत्वनिष्ठ हुए सम्मिलित
वामपंथी शिक्षापद्धति के कारण आज की पीढी मुघलों को ही अपना आदर्श मान रही है ! – जगजीततन पांडेय, महामंत्री, अखिल भारतीय धर्मसंघ शिक्षा मंडल
वाराणसी : भारत में पाखंडी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं का दमन किया जा रहा है । हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा न मिलने से उनकी आनेवाली पीढी धर्म के अभिमान से वंचित रह गई है । वामपंथियों द्वारा बनाई गई शिक्षापद्धति के कारण आज की पीढी मुघलों को ही अपना आदर्श मान रही है; इसलिए अब सभी को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रयासशील होने की आवश्यकता है, ऐसा प्रतिपादन अखिल भारतीय धर्मसंघ शिक्षा मंडल के महामंत्री श्री. जगजीतन पांडेय ने किया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से वाराणसी के आशापुर के अर्चना गार्डन में ३ अप्रैल को ‘प्रांतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ संपन्न हुआ, उसमें वे ऐसा बोल रहे थे । इस अधिवेशन में २० हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के १०० से अधिक हिन्दुत्वनिष्ठों ने भाग लिया ।
इस अधिवेशन का उद्घाटन अखिल भारतीय धर्मसंघ शिक्षा मंडल के महामंत्री श्री. जगजीतन पांडेय; भारत सेवाश्रम संघ, वाराणसी के स्वामी ब्रह्ममयानंदजी; रामनगर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन, वाराणसी के अध्यक्ष श्री. देव भट्टाचार्य और हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक संत पू. नीलेश सिंगबाळजी के करकमलों से दीपप्रज्वलन से हुआ ।
हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताओं और सनातन संस्था के साधकों की प्रशंसा करते हुए रामनगर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन, वाराणसी के अध्यक्ष श्री. देव भट्टाचार्य ने कहा कि साधकों के आचार-विचार और वेशभूषा संपूर्णतः भारतीय संस्कृति के अनुसार है । उनके मुख पर शांति, शालीनता और अद्भूत तेज है ।
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कोई मत नहीं, अपितु व्रत होना चाहिए ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक संत, हिन्दू जनजागृति समिति
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कोई मत नहीं, अपितु व्रत बनना चाहिए । राष्ट्र एवं धर्म के संकटग्रस्त होने पर धर्म के पक्ष में खडे रहना हम सभी का दायित्व है । वर्ष २०२५ के उपरांत सत्वगुणी हिन्दुओं द्वारा भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी; इसलिए अब सभी संगठनों को एकत्रित होकर कार्य करने की आवश्यकता है ।
इस अवसर पर स्वामी ब्रह्ममयानंदजी ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र के लिए ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज का ज्ञान होना आवश्यक है । इसके लिए हमें प्रतिवाद और प्रत्युत्तर की नीति अपनानी पडेगी ।