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‘मस्जिदों पर लगे भोपुओं पर न्यायालय का आदेश क्यों लागू नहीं है ?’ इस विषय पर विशेष संवाद !

अवैध भोंपू हटाने का न्यायालय का आदेश होते हुए उसका पालन न करनेवाले पुलिसकर्मियों पर कठोर कार्यवाही करें ! – श्री. संतोष पाचलग, याचिकाकर्ता

अवैध भोपुओं के विरुद्ध हमारे द्वारा प्रविष्ट जनहित याचिका के कारण मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के सभी धार्मिक स्थलों पर लगे हुए अवैध भोंपू हटाने का स्पष्ट आदेश वर्ष 2016 में दिया है, तब भी मुंबई और महाराष्ट्र पुलिस ने उस पर अमल नहीं किया । इसलिए वर्ष 2018 में हमने उसके विरुद्ध मुंबई उच्च न्यायालय में पुनः आदेश की अवहेलना करनेवाली याचिका प्रविष्ट की । सूचना के अधिकारों के अंतर्गत महाराष्ट्र की पुलिस से अवैध भोंपू और ध्वनिवर्धक यंत्रों से संबंध में जानकारी मंगवाई थी, तब केवल 40 प्रतिशत लोगों ने जानकारी दी । शेष पुलिसकर्मियों ने जानकारी देने में टालमटोल की । 40 प्रतिशत में से 2 हजार 904 ध्वनिवर्धक अवैध हैं तथा उनमेंसे 1766 भोंपू मस्जिदों और मदरसों में लगे हुए हैं । मुंबई में उनकी संख्या लगभग 900 से अधिक है । वास्तविक रूप से यह संख्या तीन गुना हो सकती है । कोरोना काल में यह याचिका नहीं चली; परंतु जनता को न्याय देने के लिए यह अवहेलना याचिका शीघ्रातिशीघ्र चलाकर नियमों का भंग करनेवाले और न्यायालय के आदेश का पालन न करनेवाले पुलिसकर्मियों पर कठोर कार्यवाही की जाए, ऐसी मांग नई मुंबई के याचिकाकर्ता श्री. संतोष पाचलग ने की है । वे हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘मस्जिदों पर लगे  भोपुओं पर न्यायालय का आदेश लागू क्यों नहीं ?’, इस विशेष ऑनलाइन विशेष संवाद में बोल रहे थे ।

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता गौरव गोयल ने कहा कि, मस्जिदों पर लगे अवैध  भोपुओं  के विरोध में न्यायालय ने कार्यवाही के आदेश देने पर उनपर अमल करना आवश्यक था; परंतु वैसा न होने के कारण यह न्यायालय का अपमान हुआ है । जिस स्थान पर अवैध  भोपुओं  के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की गई है, उनके विरुद्ध अब न्यायालय को कार्यवाही करनी चाहिए । मस्जिदों पर लगे हुए  भोपुओं  के कारण बडी मात्रा में ध्वनिप्रदूषण हो रहा है । इनके कारण नागरिकों के साथ ही विद्यार्थीवर्ग को भी इसका कष्ट हो रहा है ।

हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता श्री. नरेंद्र सुर्वे ने कहा कि, मुसलमानों में वहाबी, सुन्नी, शिया, सलाफी आदि अनेक जातियां हैं तथा वे एक दूसरे की मस्जिदों में नहीं जाते । इसलिए एक अजान समाप्त होने पर दूसरे की प्रारंभ होती है । इसलिए पांच बार नहीं अपितु 25 से अधिक बार दिन में अधिक समय तक अवैध अजान गैर मुस्लिम जनता को नाहक सुननी पडती है । यह बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर अन्याय है । उसमें ‘हमारा अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ है !’ यह कहना अन्य धर्मियों की भावनाएं आहत करने के समान है । मुसलमानों की चापलूसी करने के लिए राजनीतिक नेता अवैध भोपुओं की समस्या का समाधान नहीं करते ।

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