अध्यात्म के अगले स्तर प्राप्त करने से साधना के वास्तविक आनंद का अनुभव होता है ! – पू. अशोक पात्रीकरजी
यवतमाळ : विद्यालयीन जीवन में हमें पहली, दूसरी, तीसरी; इस प्रकार के शिक्षा की अगली-अगली कक्षाएं पार करते हुए आगे बढना होता है । उसी प्रकार से अध्यात्म में भी नामजप, सत्संग, सत्सेवा, त्याग, प्रीति, स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन, साथ ही भावजागृति; इस प्रकार से अगले-अगले स्तर पार करते जाने से हमें साधना में विद्यमान आनंद का निश्चितरूप से अनुभव हो पाता है । नामजप की नींव पर ही साधना की इमारत खडी रहनेवाली है । इसलिए नामजप साधना की नींव है तथा वह सशक्त होनी चाहिए, ऐसा बहुमूल्य मार्गदर्शन सनातन के धर्मप्रचारक पू. अशोक पात्रीकरजी ने किया । यहां से वडगांव के चिंतामणि देवालय में संपन्न हिन्दू राष्ट्र संगठक कार्यशाला को संबोधित करते हुए वे ऐसा बेल रहे थे । ६६ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त सनातन की साधिका श्रीमती सुनंदा हरणे ने ‘गुरुकृपायोग के अनुसार साधना’ विषय पर, तो हिन्दू जनजागृति समिति के विदर्भ समन्वयक श्री. श्रीकांत पिसोळकर ने ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापने की मूलभूत संकल्पना’ विषय पर मार्गदर्शन किया । इस कार्यशाला में आदर्श पद्धति से संपर्क कैसे करना चाहिए ?, सुराज्य अभियान, सामाजिक प्रसारमाध्यमों, प्राथमिक चिकित्सा; साथ ही आध्यात्मिक उपायों के महत्त्व आदि के विषय में जानकारी दी गई ।
अभिप्राय
१. कार्यशाला में उपस्थित सभी में भगवान का अस्तित्व प्रतीत हो रहा था । – श्री. स्वप्नील वाटकर, पारडी, तहसील घाटंजी (यवतमाळ)
२. हिन्दू राष्ट्र के कार्य में मैं तन, मन और धन के माध्यम से भाग लूंगा और आध्यात्मिक उपायोंका भी आरंभ करूंगा । – श्री. सुनील मोहितकर, यवतमाळ
३. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के उद्देश्य को सामने रखकर ऐसी कार्यशालाएं नियमितरूप से होनी चाहिएं । – श्री. रंगराव राऊत, यवतमाळ
४. हमारे गांव में एक मान्यवर राजनीतिक व्यक्ति के घर में कार्यक्रम होने से गांव के सभी लोग वहां जानेवाले थे; परंतु कार्यशाला में आने की मेरी इच्छा थी । उसके कारण मैं कार्यक्रम के स्थान पर कुछ समय रुककर तुरंत कार्यशाला में पहुंची । कार्यशाला संपन्न होने के उपरांत अब ‘मैं कुछ कर सकतू हूं’, यह आत्मविश्वास स्वयं में उत्पन्न हुआ । अब धर्मकार्य में औरों को जोडना चाहिए, ऐसा मुझे लग रहा है । हिन्दू जनजागृति समिति के व्यासपीठ से बोलने का अवसर मिलने से मेरा आत्मबल बढा – श्रीमती उषाताई सावद, दारव्हा, यवतमाळ
५. अन्यों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए ?, कैसे बोलना चाहिए ?, हमारा आचरण कैसा होना चाहिए और स्वयं की रक्षा कैसे करनी चाहिए ?, इस विषय में विद्यालयों में सिखाया नहीं जाता । समिति के माध्यम से यह सब सिखाए जाने से समिति का यह कार्य प्रशंसनीय है । समिति के प्रत्येक कार्य में सम्मिलित होना मुझे अच्छा लगेगा ! – कु. ज्ञानेश्वरी सावदे (आयु १३ वर्ष) (श्रीमती उषाताई सावदे की पुत्री)