ज्ञानवापी मस्जिद के आंतरिक भाग का सर्वेक्षण एवं चित्रिकरण नहीं होने देंगे ! – न्यायालय के आदेश को न मानते हुए ‘अंजुमन इंतजामिया’ मस्जिद संगठन की चेतावनी !
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में स्थानीय न्यायालय द्वारा मस्जिद का वीडियोग्राफी कराने के निर्णय का अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (प्रबंधन समिति) ने विरोध करने का निर्णय लिया है। बता दें कि स्थानीय न्यायालय के इस निर्णय के खिलाफ मस्जिद कमिटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित मां श्रृंगार गौरी मंदिर समेत अन्य विग्रहों और स्थानों की वीडियोग्राफी पर थम नहीं रहा विवाद | @RoshanAajTak https://t.co/XL4ctCOQcy
— AajTak (@aajtak) April 28, 2022
न्यायालय के आदेश पर नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर की देखरेख में यह वीडियोग्राफी 6 और 7 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में होनी है। न्यायालय ने इसकी रिपोर्ट 10 मई को देने के लिए कहा है। इस पर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने कहा, “हम वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के लिए मस्जिद परिसर में किसी के प्रवेश की अनुमति नहीं देंगे।” उन्होंने कहा कि, वे इसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं।
वहीं, इस मामले को लेकर मस्जिद कमिटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने गुरुवार (28 अप्रैल 2022) को इस याचिका को खारिज कर दिया। इस दौरान मंदिर पक्ष के वकील ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे में विवादित संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होते हैं। इसलिए यह वक्फ की संपत्ति नहीं है।
अधिवक्ता ने कहा, “जब 1995 का वक्फ कानून अस्तित्व में आया तो इस कानून में एक प्रावधान था कि वक्फ की संपत्ति को फिर से पंजीकृत कराया जाए, लेकिन विवादित संपत्ति को इस कानून के तहत पुनः पंजीकृत नहीं कराया गया। इसलिए विवादित संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है और इस कानून के प्रावधान यहां लागू नहीं होते।”
मंदिर के वकील ने दलील दी कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4 यहाँ लागू नहीं होती, क्योंकि यहाँ एक प्राचीन मंदिर था। इसका निर्माण 15वीं शताब्दी से पूर्व कराया गया था। भगवान विवादित ढांचे के भीतर विराजमान हैं। यदि किसी भी तरह से मंदिर नष्ट किया भी गया है तो भी इसका धार्मिक चरित्र नहीं बदला है।
बता दें कि, पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम की धारा 4, स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 को मौजूद स्थिति के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के परिवर्तन के संबंध में कोई वाद दायर करने या कानून कार्यवाही से रोकती है।
मंदिर तोडकर बनाई गई मस्जिद
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान कहा गया कि मस्जिद विश्वेश्वर नाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। इस दौरान न्यायालय ने अपने आदेश में 1936 में अदालत द्वारा दिए गए आदेश को भी रेखांकित किया है। तर्क दिया गया कि पूर्व में दाखिल वाद केवल तीन मुस्लिमों से संबंधित था। वह सामान्य आदेश नहीं था। उस आदेश के आधार पर कोई दावा नहीं किया जा सकता है।
विवादित स्थल के ‘निरीक्षण और वीडियोग्राफी’ के लिए आयुक्त द्वारा श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं के मौजूद विग्रह के साक्ष्यों के संकलन को लेकर मंदिर पक्ष के अधिवक्ता ने अदालत में दलील दी। उन्होंने कहा कि सभी सबूतों और तथ्यों को देखें तो ज्ञानवापी मस्जिद चारों तरफ से चारदीवारी से घिरी हुई है, जो कि मस्जिद से काफी पुरानी है। जो चहारदीवारी है, वह मंदिर का हिस्सा है और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है।