मप्र उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने धार के भोजशाला में नमाज पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका स्वीकार कर ली है। इस संबंध में न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI), केंद्र सरकार, राज्य सरकार, भोजशाला कमेटी को नोटिस जारी किया है।
Today petition for freedom of Bhojshala has been admitted and notice has been issued to the ASI by the Hon’ble High court. pic.twitter.com/Bo9iaTv90q
— Vishnu Shankar Jain (@Vishnu_Jain1) May 11, 2022
बता दें कि, हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की अध्यक्ष रंजना अग्निहोत्री ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उन्होंने मांग की थी कि भोजशाला में मंगलवार को हनुमान चालीसा और शुक्रवार को नमाज होती है। परिसर में दूसरे समुदाय के प्रवेश और नमाज को बंद कराया जाए। इस याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई।
यह भी पढें – भोजशाला (सरस्वती मंदिर) को आजाद करानेके लिए एकजुट हो जाएं !
याचिका दायर करने वाले वकील हरिशंकर जैन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, सरस्वती मंदिर पहले उन लोगों ने मजार बनाई है। इसके बाद दावा करने लगने कि, यह कमाल मौला मस्जिद है। हिंदू पक्ष ने यह भी दावा किया है कि, यहां राजा भोज ने सरस्वती सदन का निर्माण कराया था। उस समय यह शिक्षा का बडा केंद्र हुआ करता था।
न्यायालय से ये मांगें की गई
- भोजशाला में मां सरस्वती का मंदिर था, जिसकी मूर्ति ब्रिटिश सरकार साथ ले गई थी। सरकार उसे सम्मान सहित वापस लाकर स्थापित करे। परिसर में जो खंडित मूर्तियां हैं, उनका रख-रखाव किया जाए।
- परिसर की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी हो, जिससे वे नष्ट ना हो सकें।
- परिसर में दूसरे समुदाय की एंट्री पर रोक लगाई जाए।
- शुक्रवार को होने वाली नमाज भी बंद हो।
राजा भोज ने की थी स्थापना
ऐतिहासिक भोजशाला, राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईसवी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से जाना जाता है। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1880 में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे लेकर इंग्लैंड चला गया था। यह वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है।