पंढरपुर (जनपद सोलापुर) : यहां की श्री रुक्मिणीमाता की मूर्ति की हो रही घिसन रोकने के लिए पुनः एक बार वज्रलेप के नाम पर रासायनिक विलेपन किया जानेवाला है । मंदिर और उसमें होनेवाले विधि धर्म से संबंधित होने से वहां के प्रत्येक विधि धर्मशास्त्र से सुसंगत होना आवश्यक होता है । उस परिप्रेक्ष्य में मूर्ति की घिसन हो रही हो, तो क्या करना आवश्यक है, इसे भी धर्मशास्त्र के अनुसार ही सुनिश्चित होना चाहिए । इससे पूर्व अनेक बार धर्मशास्त्रविसंग रासायनिक विलेपन कर भी श्री रुक्मिणीमाता की मूर्ति की हो रही घिसन नहीं रुकी है, तो पुनः यही प्रक्रिया कर क्या लाभ होनेवाला है ?
अतः धर्मशास्त्र में बताए अनुसार और धार्मिक क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्तियों का मार्गदर्शन लेकर ही धार्मिक पद्धति के अनुसार उपाय किए जाएं और मूर्ति पर रासायनिक विलेपन न किया जाए, यह मांग हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट ने विज्ञप्ति के माध्यम से की है ।
इस विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि,
१. इससे पूर्व कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति पर किया गया वज्रलेप नाकाम सिद्ध हुआ और केवल एक वर्ष के अंदर ही मूर्ति पर किया गया वज्रलेप निकलने लगा, मूर्ति पर श्वेत रंग के दाग आने लगे, मूर्ति की घिसन हो ही रही है, साथ ही इस प्रक्रिया में मूर्ति के मस्तक पर स्थित नाग की प्रतिकृति दिखाई नहीं दे रही है । यही परिणाम श्री रुक्मिणीमाता के मूर्ति के संदर्भ में नहीं होगा, इसकी आश्वस्तता कौन करेगा ? इसलिए पूर्वानुभव के अनुसार इस वज्रलेपन का दायित्व निश्चितरूप से किसका होगा ? और उसमें कुछ अनुचित हुआ, तो उसके लिए उत्तरदायी कौन होगा ?, यह विठ्ठलभक्तों के लिए स्पष्ट किया जाना चाहिए ।
२. रासायनिक विलेपन प्रक्रिया में विविध रासायनिक द्रव्यों का उपयोग करने से मूर्ति की सात्त्विकता घट जाती है । ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उनसे संबंधित शक्तियां एकत्रित होती हैं, यह अध्यात्मशास्त्र का मूलभूत सिद्धांत है । श्री रुक्मिणीमाता के रूप से भी यह शक्ति प्रक्षेपित होती रहती है, जिसके फलस्वरूप मूर्ति के मूल रूप में बदलाव होते हैं । मूर्ति के रूप में बदलाव आने से मूर्ति से प्रक्षेपित होनेवाले चैतन्य का स्तर घटता है और उससे मूर्ति के आध्यात्मिक लाभ से वंचित रहेंगे । श्रद्धालुओं को देवता के तत्त्व से वंचित रहना, केवल चूक नहीं, अपितु वह बडा पाप सिद्ध होगा ।
३. मूर्ति केवल पत्थर की वस्तु नहीं है, अपितु उसमें देवत्व है, यह श्रद्धालुओं की श्रद्धा होती है । उस पर विलेपन किया जाए, ऐसी वह कोई निर्जीव वस्तु नीं है । विविध क्षेत्रों की समस्याओं के लिए विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लिया जाता है । मंदिर का विषय हिन्दू धर्म से संबंधित है; इसलिए मूर्ति की घिसन और उसके उपायों के संदर्भ में हिन्दू धर्म के अधिकारी व्यक्तियों अर्थात संत, धर्माचार्य, शंकराचार्य आदि से मार्गदर्शन लेकर उपाय करने चाहिएं । अतः इस संदर्भ में पुरातत्त्व विभाग का विचार क्या है, इसकी अपेक्षा धर्मशास्त्र क्या बताता है ?, इसे देखना आवश्यक है ।
४. ओडिशा के जगन्नाथपुरी के मंदिर में स्थित श्री जगन्नाथ, श्री बलभद, श्री देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन इन देवताओं की लकडी से बनी मूर्तियों को प्रति १२ वर्ष उपरांत बदलकर उनकी नई मूर्तियों में प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और केवल इतना ही नहीं, अपितु गणेशोत्सव के समय में भी किसी कारणवश श्री गणेशमूर्ति भंग हुई अथवा टूट गई, तो उस मूर्ति का विसर्जन कर नई मूर्ति की स्थापना कर प्राणप्रतिष्ठा की जाती है । धर्मशास्त्र की दृष्टि से इसका विचार करना उचित रहेगा ।