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ज्ञानवापी की सीख : हिन्दू एकता की आवश्यकता !

दक्षिण अफ्रिका में वास्तव्य के समय म. गांधी को एक बार स्थानीय गुंडों की एक टोली ने बीच रास्ते में असभ्य भाषाप्रयोग कर यह कहते हुए अपमानित किया कि ‘इस रास्ते पर काले लोगों को चलने का अधिकार नहीं ।’ यह प्रसंग जैसे-तैसे उन्होंने सहन तो कर लिया; परंतु इस पर गांधीजी की प्रतिक्रिया विचार करने योग्य है । वे अपने साथ आए मित्र से बोले, ‘‘मुझे समझ में यह नहीं आ रहा है कि किसी व्यक्ति का अपमान, दूसरे व्यक्ति का सम्मान कैसे हो सकता है ?’’ सच ही है । सामनेवाले व्यक्ति का अपमान यदि इसे अपना सम्मान समझा जाए, तो इसे ‘विकृति’नहीं तो और क्या कहेंगे ?

१. ज्ञानवापी मस्जिद में बनाया ‘वजू का तालाब’ इस्लामी विकृति है !

काशी में ज्ञानवापी से पुरातन शिवलिंग प्रकट होने के उपरांत इस्लाम का एकदम प्रारंभ से ऐसा ही विकृत चेहरा पुन: एक बार स्पष्टरूप से जग के सामने आया । वह कैसे ? यह शिवलिंग जहां मिला, वह स्थान ‘वजू का तालाब’ है । वजू क्या है ? तो मस्जिद में प्रवेश करने से पूर्व शुचिर्भूत होने की विधि । इसमें अपने हाथ-पैर दो-दो बार धोना, कुल्ला करना, नाक छिनकना (साफ करना) इत्यादि कृतियां अंतर्भूत हैं । अब हमें यह ध्यान में आएगा कि भूतकाल में काशी विश्वेश्वर मंदिर केवल उद्ध्वस्त करके इस्लामी आक्रमकों को संतोष नहीं हुआ, अपितु हिन्दुओं के लिए पूजनीय प्रतीक आगे अनेकानेक वर्षाें तक सामान्य मुसलमानों के पैरों तले रौंदे जाएं, ऐसी व्यवस्था ठीक उसी स्थान पर ‘वजू का तालाब’ के रूप में कर रखी है । यह है इस्लामी विकृति !

२. ‘काफिरों का (मुसलमानों के अतिरिक्त) अपमान ही हमारा सम्मान’, यह है इस्लाम की धारणा !

ज्ञानवापी यह कोई एकमेव उदाहरण नहीं है । केवल भारत के इतिहास में ही ऐसे सहस्रों उदाहरण हमें अनेकानेक स्थानों पर दिखाई देंगे । किसी हिन्दू की मृत्यु भी सम्मानसहित न होने देने की व्यवस्था भी प्रत्येक इस्लामी आक्रमक ने ली थी । सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुनदेव को गाय की छिली हुई चमडी में सीने का प्रकार हो अथवा गुरु तेगबहादु एवं उनके सहयोगियों की भरे चौक पर की गई क्रूर हत्या हो; या फिर गुरुपुत्र फत्तेसिंह एवं जोरावरसिंह को कोमल आयु में दीवार में चुनवा कर मार देना हो अथवा छत्रपति शंभूराजा की २० दिनों से भी अधिक दिन निरंतर शारीरिक यातनाएं देकर क्रूरता से उनकी हत्या हो, ऐसे सभी उदाहरणों में एक ही समान सूत्र दिखाई देता है, वह है ‘इस्लाम जिन्हें मान्य नहीं, उनका अधिकाधिक अपमान ।’ ये कुछ उदाहरण हैं । घोरी, ऐबक, तैमूर, तुघलक, खिलजी, बाबर, औरंगजेब, टीपू इत्यादि सभी आक्रमकों के काल में लाखों हिन्दुओं ने ऐसे अपमान निरंतर सहन किए हैं । ‘काफिरों का अपमान ही हमारा सम्मान’, यह इस्लाम की धारणा अपनी कृतियों से मुहम्मद पैगंबर ने ही सिखाई है, इसलिए ‘मूल इस्लाम ऐसा नहीं’ इत्यादि भ्रम में रहने का कोई कारण नहीं ।

३. हिन्दुओं का सामर्थ्यशाली संगठन, यही आक्रमकों का पुन: साहस न करने का प्रभावशाली उत्तर !

आज ज्ञानवापी में शिवलिंग पाए जाने का आनंद मनाते समय अनेक वर्षाें से हो रहे अपने श्रद्धास्थानों का जानबूझकर किया गया अपमान कदापि न भूलें । आज का काल, यह इन अपमानों की ब्याजसहित भरपाई करने का है । ‘पिछली बातें क्यों उखाडते हो’ इत्यादि ज्ञान देनेवाले विद्वानों पर ध्यान देने की आवश्यकता ही नहीं । हमें ध्यान रखना है, तो केवल हिन्दू एकता का ! आनेवाले काल में हिन्दू ऐसे ही संगठित रहे, तो काशी में श्री विश्वनाथ एवं मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण पुन: सुप्रतिष्ठित तो होंगे ही; इसके साथ-साथ भविष्य में भी हमारे श्रद्धास्थानों को कोई टेढी दृष्टि से देखने का साहस नहीं करेगा, ऐसा संगठन हमें बनाना है । ‘हिन्दुओं का अपमान जिन्हें अपना सम्मान’ लगता है, उनका मान हिन्दू भला क्यों रखें ?

– महेंद्र वाघ (प्रेषक – श्री. विजय अनंत आठवले)

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