दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के द्वितीय सत्र ‘राष्ट्रीय कार्य एवं संवैधानिक सुधार’ इस विषय अंतर्गत मान्यवरों के विचार
रामनाथी – ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाना का (नमाज के पहले हाथ-पैर धोने का स्थान) पानी लगातार तीन दिन तक निकालने पर वहां भव्य शिवलिंग मिला । जिस समय मुझे उस भव्य शिवलिंग के दर्शन हुए, उस समय मैंने निश्चय किया कि, आगे से हिन्दुओं के आराध्य देवताओं का अनादर नहीं होने दूंगा । न्यायालय ने भी शिवलिंग मिलने पर परिसर बंद (सील) करने की अनुमति दी । इसके विरोध में मुसलमान सर्वाेच्च न्यायालय गए, वहां भी इस निर्णय को उचित ठहराया गया । हिन्दू एकत्रित आकर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करेंगे, वह दिन दूर नहीं, ऐसा विश्वास हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस के प्रवक्ता और सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन जी ने व्यक्त किया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के उद्बोधन सत्र में ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप ॲक्ट’ की भीषणता और काशी-मथुरा मुक्ति आंदोलन’ विषय पर वह बोल रहे थे । इस समय व्यासपीठ पर सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता (पू.) हरि शंकर जैन, अधिवक्ता अमृतेश एन्.पी. और सी बी आई के पूर्व-अंतरिम निदेशक अधिकारी श्री. एम्. नागेश्वर राव उपस्थित थे ।
इस समय अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन जी ने बताया,
१. ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप ॲक्ट’ द्वारा हिन्दुओं की आवाज दबाई गई । उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने वर्ष १९९१ में बनाए इस कानून के कारण १५ अगस्त ९१४७ के पहले के धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे, उसी स्थिति में रखने का निर्णण लिया ।
२. इस कानून के अंतर्गत किसी भी धार्मिक स्थल के बारे में न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट नहीं कर सकते । ऐसा होते हुए भी अयोध्या के श्रीराममंदिर के संदर्भ में न्यायालय ने अभियोग प्रविष्ट किया, हिन्दुओं के जागृत होने पर श्रीराम मंदिर का अभियोग न्यायालय ने स्वीकार कर लिया ।
३. श्रीराममंदिर का अभियोग न्यायालय में प्रविष्ट किया जा सकता है, तो मुगलों द्वारा मस्जिद में रूपांतरण किए ४० हजार मंदिरों का अभियोग न्यायालय में प्रविष्ट क्यों नहीं कर सकते ? इसके लिए हिन्दुओं को आवाज उठाना आवश्यक है ।
४. इस कानून के विरोध में हम भी संवैधानिक मार्ग से लड रहे हैं । इस कानून का धारा ४ के अनुसार १५ अगस्त १९४७ को धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसी स्वरूप में वह रहेंगे, तो ‘उस समय उन धार्मिक स्थलों का स्वरूप क्या था ?’ यह पहले निश्चित करना चाहिए ।
५. जिस प्रकार किसी मस्जिद में मूर्ति रखी, तो वह मस्जिद मंदिर नहीं हो सकती, उसी प्रकार मंदिर में नमाज पढने से मंदिरों का धार्मिक स्वरूप नहीं बदल सकता । हिन्दू कानून के अनुसार किसी मंदिर की संपत्ति उस मंदिर के देवता की है । इसलिए इस कानून के अनुसार मंदिरों की सारी संपत्ति अंत तक उस देवता की ही रहती है ।
६. एक ओर वफ्क कानून के द्वारा वफ्क बोर्ड को किसी भी भूमि को नियंत्रण में लेने का अधिकार दिया है, तो दूसरी ओर ‘प्लसेस ऑफ वर्शिप ॲक्ट’ द्वारा मंदिरों का इस्लामिक धार्मिक स्थलों में किया परिवर्तन वैसे ही रखा गया है । इन दोनों ही कानूनों की तुलना की तो धर्मनिरपेक्षता की आड में हिन्दुओं का कैसे दमन किया जाता है, यह ध्यान में आता है ।
७. मैं और मेरे पिताजी पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैन जी ने इस कानून को सर्वाेच्च न्यायालय में चुनौति दी है । इस कानून द्वारा मंदिरों के विषय में नायायालय जाने का अधिकार निकाल दिया गया है । यह काला कानून केंद्र सरकार ने रहित करना चाहिए । इसमें अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का बडा योगदान होगा । जब तक यह कानून रहित नहीं किया जाता, तब तक हिन्दुओं के समक्ष बडी चुनौति है ।
जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां संविधान के प्रावधान उन पर लागू नहीं होते ! – एम्. नागेश्वर राव, पूर्व महानिदेशक, सीबीआई
‘भारत में हिन्दू धर्म का पालन, अध्ययन और प्रचार की स्वतंत्रता का अभाव’ विषय पर बोलते हुए केंद्रीय अन्वेषण विभाग के (सीबीआई) के पूर्व महानिदेशक श्री. एम्. नागेश्वर राव ने कहा, ‘‘संविधान के अनुसार मिलनेवाले ५ अधिकारों में से हिन्दुओं को केवल राजनीतिक अधिकार ही मिले हैं; परंतु धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्वतंत्रता इन क्षेत्रों में हिन्दुओं को समानरूप से संवैधानिक अधिकारों का लाभ नहीं मिलता । देश में हिन्दुओं को दुय्यम श्रेणी नागरिक बनाया गया है । इसलिए हिन्दुओं को समान अधिकार मिलने के लिए प्रयास होने चाहिएं । ९० के दशक में कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार किया गया । लाखों हिन्दुओं को वहां से पलायन करने पर बाध्य किया गया; परंतु उन्हें बचाने के लिए किसी ने भी प्रयास नहीं किए । जब हिन्दू अल्पसंख्यक बन जाते हैं, तब देश के संविधान के प्रावधान उन पर लागू नहीं होते और सरकार भी हिन्दुओं को संरक्षण नहीं देती । मिजोरम में हिन्दुओं के मंदिर नहीं हैं । वहां १०० प्रतिशत जनता ईसाई है । राज्य, जिलों और गांवो से हिन्दू पलायन कर रहे हैं; परंतु ‘ये हिन्दू जाएंगे तो कहां ?’, इस पर विचार किया जाना चाहिए ।’’
उन्होंने आगे कहा,
१. त्रिपुरेश्वर मंदिर में पशुबलि चढाने पर न्यायालय प्रतिबंध लगाता है; परंतु भारत में प्रतिदिन लाखों पशु काटे जाते हैं, उन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता । ‘हम ‘पिंक रिवोल्यूशन’ (गोमांस की बिक्री को प्रोत्साहन देनेवाली नीति) को बंद कर ‘व्हाईट रिवोल्यूशन’ (दूध के उत्पादन में वृद्धि) को बढावा देंगे’, ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था; परंतु आज की वास्तविकता को देखा जाए, तो आज विश्व में मांस और गोमांस की बिक्री करने में भारत दूसरे क्रम का देश बन गया है । भारत में प्रतिदिन १ लाख पशुओं की हत्या की जाती है, तो विदेशों में मांस का निर्यात करने के लिए अनुदान दिया जाता है ।
२. आज ईसाई और मुसलमान होने का अर्थ हिन्दुओं का धर्मांतरण करने की अनुमति मिलने जैसा हैै ।
३. मंदिरों का सरकारीकरण होने के कारण हिन्दुओं को मंदिर के सामने अपने चप्पल रखने से लेकर दर्शन करनेतक सर्वत्र ही पैसे देने पडते हैं । हिन्दुओं को अपने ही भगवान से मिलने के लिए पैसे क्यों देने पडते हैं ? यह तो एक प्रकार से औरंगजेब ने जो जिजिया कर लगाया था, उससे अधिक भयानक जिजिया कर है’, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा ।
४. अनुच्छेद १२, २५ और २६ को हटाकर केंद्र सरकार के माध्यम से ‘सेंट्रल टेंपल एक्ट’ (केंद्रीय मंदिर व्यवस्थापन कानून) लाना पडेगा । उस माध्यम से मंदिरों को राज्य सरकारों के नियंत्रण से मुक्त कर उनका व्यवस्थापन पुनः हिन्दुओं के हाथ में आएगा ।
५. हिन्दू धर्म में विद्यमान कोई सुधार बताने पर ‘उससे मंदिर में भ्रष्टाचार बढेगा’, जैसे कारण बताकर हिन्दुओं को संगठित होने से रोका जाता है; परंतु प्राचीन काल से हिन्दुओं ने उनके मंदिरों का अत्यंत प्रमाणिकता के साथ मंदिरों का व्यवस्थापन किया है । इसलिए ऐसे जुमलों की बलि न चढते हुए मंदिर पुनः हिन्दुओं के नियंत्रण में आएं; इसके लिए इस अधिवेशन के माध्यम से प्रयास होने चाहिएं ।
६. मंदिरों से मिलनेवाले पैसों का मंदिरों के विकास के लिए नहीं, अपितु अपने खर्चे के लिए उपयोग किया जा रहा है; इसलिए मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए हिन्दुओं को प्रयास करने चाहिएं ।
समान नागरिक कानून का अंधेपन से समर्थन मत कीजिए ! – एम्. नागेश्वर राव, पूर्व महानिदेशक, सीबीआई
आज के समय में समान नागरिक कानून पर निरंतर चर्चा हो रही है । अधिकांश हिन्दू उसका समर्थन कर रहे हैं; परंतु उस कानून में निश्चितरूप से क्या बताया गया है, इसे जाने बिना अंधेपन से उसका समर्थन मत कीजिए । हम देश में समानता के विचार रखते हैं; परंतु सियार और हिरन को समान अधिकार कैसे दिए जा सकेंगे?
न्यायालय का निर्णय न माननेवालों को कर्नाटक राज्य के हिन्दुओं ने अच्छा पाठ पढाया है – अधिवक्ता अमृतेश एन्.पी., राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद
या प्रसंगी हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमृतेश एन्.पी. ने कहा, ‘‘कर्नाटक राज्य से आरंभ हुआ ‘हिजाबविरोधी आंदोलन’ कुछ दिन उपरांत राष्ट्रीय विषय बना । इसमें कुछ मुसलमान छात्राओं ने ‘हमें हिजाब पहनेंगे ही’, इस मांग को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । इस याचिका के पक्ष में लडने के लिए अनेक अधिवक्ता खडे रहे, तो सरकार के पक्ष में और विरोध में लडने के लिए अत्यंत अल्प संख्या में अधिवक्ता थे । मेरे अनेक अधिवक्ता मित्रों के अनुरोध पर मैने यह अभियोग लडने का निर्णय लिया । इस संदर्भ में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय अत्यंत अभ्यासपूर्ण ता । ऐसा होते हुए भी मुसलमान याचिकाकर्ताओं ने उसे नहीं माना और वे उस निर्णय के विरोध में सर्वाेच्च न्यायालय चले गए । सर्वाेच्च न्यायालय में अभियोग लडने के लिए बडी मात्रा में पैसों की आवश्यकता होती है । इतना खर्चा करने की मुसलमान याचिकाकर्ताओं की तैयारी थी, इससे इसके पीछे का षड्यंत्र ध्यान में आता है । उसके उपरांत कर्नाटक के हिन्दुओं ने अभूतपूर्व संगठन दिखाकर उसका उत्तर दिया । हिन्दुओं ने उनके उत्सवों के समय में देवालयों के परिसर में अन्य धर्मियों को दुकानें लगा न देने का निर्णय लिया । न्यायालय का निर्णय न माननेवालों को कर्नाटक राज्य के हिन्दुओं ने अच्छा पाठ पढाया है ।’’