रामनाथी – वाराणसी के नंदी आज भी भगवान काशी विश्वेश्वर की ओर नहीं, अपितु ज्ञानव्यापी मस्जिद की ओर मुंह करके मूल मंदिर के भग्नावशेष देख रहे हैं ! वर्तमान में काशी-मथुरा, कुतुबमिनार, अजमेर में ‘ढाई दिन का झोपडा’ अर्थात ‘श्री सरस्वती मंदिर’, इन मंदिरों के विषय में आज चर्चा आरंभ हुई है; तब भी इनके अतिरिक्त १ सहस्र ५६० प्राचीन हिन्दू मंदिरों पर हुआ इस्लामी अतिक्रमण उसी स्थिति में हैं । हिजाब प्रकरण हो अथवा नूपुर शर्मा द्वारा मुहम्मद पैगंबर द्वारा किया तथाकथित अवमान हो, मुसलमानों द्वारा किए गए दंगों के विरोध में उन्हें यह प्रश्न ‘कुराण श्रेष्ठ अथवा देश का संविधान ?’, यह प्रश्न पूछने का साहस देश के किसी भी ‘सेक्युलर’वादी को नहीं हुआ । उस दृष्टि से यह ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ महत्त्वपूर्ण है । कालमहिमा अनुसार वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र आनेवाला ही है, इसलिए हिन्दुओं को अभी से सक्रिय होना आवश्यक है ।
केंद्र में स्थिर एवं राष्ट्रवादी शासन है, तब भी राज्यों में प्रांतीय एवं ‘सेक्युलर’ पक्षों की सरकारें हैं । इससे देशभर में एकप्रकार की राजकीय अराजकता है । ऐसी परिस्थिति में हमें अभी ही ‘भारतीय राज्य संविधान द्वारा हिन्दू राष्ट्र घोषित करें’, ऐसी मांग करनी चाहिए । राज्य संविधान के अनुसार हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग का यही उचित समय है ।
मस्जिद के भोंगों के विरोध में हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने वर्ष २०१३ में उच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रविष्ट की थी । तदुपरांत निरंतर भोंगों के विरोध में आंदोलन किए गए, इसके साथ ही अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में भी इस प्रश्न पर आवाज उठाई गई । अब मस्जिद के भोंपूओं के विरोध में हनुमान चालिसा का पठन कर, हिन्दुओं ने उसका उत्तर देने का प्रयत्न किया । यह इस अधिवेशन का फल है । हिन्दुओं द्वारा वैधानिक मार्ग से किए जा रहे विरोध का हमें भी समर्थन करना चाहिए ।