रामनाथी – ईसाई जब हिन्दुओं का धर्मांतरण करते हैं, तब वे उनमें राष्ट्रविरोधी भावना उत्पन्न करते हैं । उनकी यह नीति केवल भारततक सीमित नहीं है, अपितु ईसाई जिस देश में जाते हैं, वहां वे यही नीति अपनाते हैं । वर्ष १७०० से ईसाई इसी प्रकार की नीति अपना रहे हैं, ऐसा तेलंगाना की येथील भगवद्गीता फाऊंडेशन फॉर वैदिक स्टडीज की सहनिदेशिका श्रीमती एस्थर धनराज ने किया । अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के तीसरे दिन ‘धर्मांतरण रोकना और घरवापसी की योजना’ इस पहले सत्र में ‘पश्चिमी राष्ट्रों में ईसाईयों की दुर्दशा और भारत पर उसका प्रभाव‘, इस विषय पर वे ऐसा बोल रही थीं ।
उन्होंने आगे कहा …
१. अमेरिका की एक संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार वहां के ४७ प्रतिशत ईसाई चर्च नहीं जाते । उसके कारण अब ईसाईयों ने अन्य धर्मियों पर अपना ध्यान केंद्रित कर उनका धर्मांतरण करने का काम आरंभ किया है । इसमें हिन्दुओं का ‘ब्रेन वॉश’ किया जाता है ।
२. ईसाई अपने बच्चों को चर्च ले जाते हैं, वैसे ही हिन्दू अभिभावकों को भी अपने बच्चों को हिन्दू धर्म की शिक्षा देना आवश्यक है ।
३. ईसाई यदि चावल की बोरी देकर हिन्दुओं का धर्मांतरण करते हों, तो हिन्दुओं को भी चावल की बोरी देकर धर्मांतरण रोकना चाहिए । (‘ईसाई हिन्दुओं को चावल अथवा अन्य सामग्री का लालच देकर धर्मांतरण करते हों, तो हिन्दुओं को भी गरीब हिन्दुओं के भरण-पोषण का दायित्व लेकर धर्मांतरण रोकना चाहिए ।)
४. हिन्दू संगठनों को जरूरतमंद हिन्दुओं की सहायता करनी चाहिए । आर्थिक सहायता करना संभव न हो, तो दृढतापूर्वक ऐसे हिन्दुओं साथ रहना चाहिए ।
५. धर्म की रक्षा के लिए व्यक्तिगत, संगठित, संवैधानिक और आध्यात्मिक स्तरों पर लडाई लडनी चाहिए । हमने संगठितरूप से प्रयास किए, तो भगवान को हमें हिन्दू राष्ट्र देना ही पडेगा ।
धर्म के आधार पर मुसलमान और ईसाईयों में निधि का बंटवारा करना कौनसी धर्मनिरपेक्षता है ? – एम्. नागेश्वर राव, पूर्व प्रभारी महानिदेशक , सीबीआई
सरकार के कोष में इकट्ठा होनेवाला कर धर्मनिरपेक्ष है; परंतु उसका लाभ कुछ ही लोगों को दिया जाता है । अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए स्वतंत्र मंत्रालय है; परंतु बहुसंख्यक हिन्दुओं का हित देखने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है । पिछले ८ वर्षाें में अल्पसंख्यकों की विभिन्न योजनाओं पर ३७ सहस्र ६६९ करोड रुपए खर्च किए गए हैं । साथ ही उसमें राज्यों में अल्पसंख्यकों पर खर्च किया गया निधि मिलाया, तो यह खर्च दोगुना होता है । वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या के २० प्रतिशत मुसलमान और ईसाईयों पर इतना पैसा खर्च किया जा रहा है । जिन्हें निधि की आवश्यकता है, उन्हें निधि दिया जाना चाहिए; परंतु विकासकार्याें में धर्म कहां से आ गया ? यह तुष्टीकरण का विषय है । अल्पसंख्यकों में अंतर्भूत पारसी पंथियों को कुछ ही मात्रा में निधि मिलता है । सामान्यरूप से जैन लोग सधन होते हैं, तो हिन्दू धर्म के साथ ही होते हैं । उसके कारण इनमें का अधिकतम निधि मुसलमान और ईसाईयों पर ही खर्च किया जाता है । धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों पर इतने बडे स्तर पर निधि खर्च करने में कौनसी धर्मनिरपेक्षता है ? यदि संविधान धर्मनिरपेक्ष है, तो सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए ।
हिन्दू धर्म के अनुसार साधना करनेपर अन्य पंथियों में प्रेम और अपनापन निर्माण हुआ ! – स्वामी निर्गुणानंद पुरी, कोषाध्यक्ष और शाखा सचिव, इंटरनैशनल, वेदांत सोसायटी, कोलकाता, बंगाल.
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि, हिन्दुओं के पास प्रचुर आध्यत्मिक संपत्ति है यह हिन्दुओं को ही पता नहीं है । सच में ऐसी ही हिन्दुओं की स्थिति है । विश्व में हिन्दुओं की संख्या बहुत है, तो भी हिन्दू धर्म के अनुसार कर्म करने वाले हिन्दू अल्प हैं । इंडोनेशिया में मुसलमानों की संख्या अधिक है । उन्होंने मस्जिद के मौलवी से (इस्लाम के धार्मिक नेता से) दीक्षा भी ली है । ऐसे होते हुए भी ‘ऑनलाईन’ पर अध्यात्म और वेद की जानकारी देने पर वहां के कुछ मुसलमान हिन्दू धर्म की ओर आकृष्ट हो रहे हैं । केवल हिन्दू धर्म के अनुसार साधना करने के कारण उनमें प्रेम और अपनापन निर्माण हो रहा है । ‘सनातन हिन्दू धर्म में हिंसा नहीं सिखाई जाती, अपितु प्रेम सिखाया जाता है ।’, यह उनके ध्यान में आया है । युरोप में ईसाई चर्च में नहीं जाते हैं, वह मात्र नाम के ईसाई हैं । ‘ऑनलाईन’ संपर्क द्वारा हमने ऐसे लोगों को हमारे साथ कुछ दिन आध्यात्मिक सहवास में रहने के लिए बताया । वैसा करने के उपरांत उनमें धीरे धीरे हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षण और प्रेम निर्माण हुआ । आगे आगे साधना आरंभ करनेपर उन्हें अपनी सुंदर आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव होगा । इस प्रकार हम संपूर्ण विश्व को हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित कर सकते हैं । हम ‘सत्समेव जयते’ बोलते हैं । सत्य के बिना विजय प्राप्त नहीं हो सकती । हिन्दू शास्त्र में मोक्ष और मुक्ति प्राप्त करने की शिक्षा दी जाती है, ऐसी शिक्षा विश्व में अन्य पंथों में नहीं दी जाती ।
शासन ने साथ नहीं दिया, तो भी हिन्दुओं ने धर्म के आधार पर मार्गक्रमण किया तो उन्हें निश्चित शक्ति मिलेगी ! – श्री. नीरज अत्री, अध्यक्ष, विवेकानंद कार्य समिति पंचकुला, हरियाणा
अनेक मुसलमानों की मन:स्थिति इस्लाम छोडने की है । उन्हें सहायता करनी चाहिए । पहले घरवापसी (इस्लाम त्यागून हिंदु धर्मात प्रवेश केलेले) मुसलमान समाज के सामने आने के लिए सिद्ध नहीं थे; पर अब ‘घरवापसी’ किए अनेक मुसलमान समाज के सामने आ रह हैं । मुसलमान समाज में इस्लाम के नाम पर दुकानदारी चलाई जाती है । १०० वर्षाें का इतिहास देखें तो मुसलमानों ने हिन्दू और उनकी औरतों पर अनंत अत्याचार किए हैं । इसका अभ्यास कर स्वामी दयानंद सरस्वती ने प्रथम ‘घरवापसी’ अभियान आरंभ किया; पर वर्ष १९१४ में मोहनदास गांधी ने जागृत हिन्दू समाज को पुन: सुलाने का कार्य आरंभ किया । गांधी ने ‘अहिंसा और सर्वधर्मसमभाव’ की बातें सीखाकर हिन्दुओं को दुर्बल बनाया । आजकल हिन्दू और हिन्दू धर्म पर हुए आक्रमणों का सामाजिक माध्यमों द्वारा प्रत्युत्तर देना आरंभ है । इसके पूर्व ऐसे उत्तर नहीं जाते थे । भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा के साथ धर्मांधो और गुंडों के द्वारा दुर्भाग्यपूर्ण व्यवहार हो रहा है; पर शर्मा का हिन्दुओं ने साथ देना चाहिए । ज्ञानव्यापी जैसे प्रश्न लगातार उठाने आवश्यक हैं । शासन ने साथ नहीं दिया, तो भी हिन्दुओं ने यदि धर्म के आधार पर मार्गक्रमण किया तो उन्हें निश्चित शक्ति मिलेगी !