रामनाथी – कर्नाटक में धारवाड के पू. परमात्माजी महाराज जी ने आवाहन किया कि, जब धर्म पर अधर्म बढ गया, तब भगवान परशुराम ने परशु धारण किया । ऐसे परशुराम को हमें अपना आदर्श मानना चाहिए । यह तपस्या करने का नहीं, युद्ध करने का समय है । प्रत्येक संत ने और संन्यासी ने रास्ते पर आकर हिन्दू राष्ट्र की मांग करनी चाहिए । यह चर्चा करने का नहीं, युद्ध करने का समय है । सभी संतों और महात्माओं को मठ छोडकर हिन्दू राष्ट्र स्थपना के लिए कार्य करना आवश्यक है । पू. परमात्माजी महाराज जी दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए हिन्दुओं का संगठन’ इस उद्बोधन सत्र में ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु आध्यात्मिक संस्थाओं के संगठन के लिए किए प्रयत्न’ इस विषय पर वह बोल रहे थे ।
इस समय व्यासपीठ पर स्वामी आत्मस्वरूपानंद महाराज, गोवा के ‘भारत माता की जय संघ’ के राज्य संघचालक प्रा. सुभाष वेलिंगकर, सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस उपस्थित थे । इस समय हिन्दू जनजागृति समिति के पूर्व उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य समन्वयक श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी ने स्वामी आत्मस्वरूपानंद जी का तथा श्री. काशीनाथ प्रभु ने पू. परमात्माजी महाराज जी का पुष्पहार अर्पण कर सम्मान किया।
इस समय पू. परामात्माजी बोले,
१. संतों की ओर देखने का दृष्टिकोण हमें बदलना चाहिए । जो संत अधिक बोलते हैं, प्रवास करते हैं उन्हें अज्ञानी माना जाता है; परंतु जो मौन रखते हैं, मठ में रहते हैं उन्हें संत माना जाता है । बोलनेवाले संतों की प्रसारमाध्यों द्वारा अपकीर्ति की जाती है ।
२. हिन्दू राष्ट्र स्थापना करने का कार्य योगी आदित्यनाथ समान राजनेता करेंगे । कुछ संतों का लगता है कि, ‘बडा आश्रम, लाखों भक्तगण होने चाहिए ।’ वह ही ‘धर्म के लिए कुछ करें,’ परंतु ‘समाज के साथ घुलनेमिलने से उनका स्वयं का मूल्य न्यून होगा,’ ऐसा उन्हें लगता है । इसलिए संत आश्रम छोडकर बाहर नहीं निकलते ।
३. मौलाना (इस्लामी विद्वान) प्रत्येक के घर में जाते हैं । सामान्य लोगो में घुलते मिलते हैं । पर हमारे संत उनके समान सामान्य लोगों में घुलते मिलते नहीं हैं । इसलिए हिन्दुओं के संत और सन्यासियों से सर्वसामान्य हिन्दू जुडते नहीं हैं । इस मानसिकता से संतों को बाहर लाना चाहिए ।
४. जो हिन्दू राष्ट्र के लिए संघर्ष करेगा, उन्हें महत्व देना चाहिए । सभी संतों और आध्यात्मिक संस्थाओं ने एकत्रित आकर हिन्दू राष्ट्र की घोषणा की, तो कल ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।
…तो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य सरल होगा !
भारत आध्यात्मिक भूमि है । इतिहास देखा तो भारत में जब भी कोई परिवर्तन हुआ, वह आध्यात्मिक संस्था ने ही किया है । हमारे देश में आध्यात्मिक संस्था और संतों की संख्या बडी है । यह सब हिन्दू राष्ट्र की मांग के लिए एकत्र आएं, तो हिन्दू राष्ट्र की स्थानपना का कार्य करना सरल होगा ।
संतों का धन धर्मकार्य के लिए उपयोग में लाना चाहिए !
प्रत्येक मुसलमान स्वयं की आय में से १० प्रतिशत धन इस्लाम के लिए मौलाना को देता है । हिन्दू संत अपना धन शिक्षण संस्थानों, वैद्यकीय सुविधाओं के लिए व्यय करते हैं । हमारे संतों का धन भी धर्मकार्य के लिए उपयोग में लाना चाहिए ।
संतों ने आदि शंकाराचार्य जी के समान कार्य करना चाहिए !
आदि शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म के प्रचार के लिए प्रवास किया । अन्य संतों के साथ धर्म हेतु चर्चा की । धर्मप्रचार के लिए वह कन्याकुमारी से काश्मीर तक गए । कश्मीर में जब क्रूर ‘हूण’ लोग हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए आए, तब शंकराचार्य जी ने रुद्राक्ष धारण करनेवाले ११ हजार संतों के हाथों में त्रिशूळ देकर हुणों का सर्वनाश किया । जिस समय शास्त्रचर्चा आवश्यक थी, तब शंकराचार्य ने शास्त्रचर्चा की; परंतु जब शस्त्र की आवश्यकता थी, तब हाथ में शस्त्र उठाए । किस समय कौन सा कार्य करें, इसका महत्व है । जब शास्त्रों से कार्य नहीं होता, तब शस्त्र हाथों में उठाने पडते हैं ।
हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताओं को पू. परमात्माजी महाराज जी का आशीर्वाद !
हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य के पीछे परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी की अद्भुत शक्ति है । उनका मैं स्मरण करता हूं । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का आयोजन करनेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताओं को मैं आशीर्वाद देता हूं । भगवान ने जो दिया है, वह सर्व हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए समर्पित करें । हमें भगवान का आशीर्वाद है ।
गोवा मे इक्किवजिशन के द्वारा किए गए क्रूरतापूर्ण अत्याचारों की जानकारी गोवा की नई पीढी को देनी आवश्यक ! – प्रा. सुभाष वेलिंगकर, राज्य संघचालक, भारतमाता की जय संघ, गोवा
‘गोवा फाइल्स’ गोवावासियों के सामने रखेंगे !
भगवान परशुराम ही गोवा के रक्षणकर्ता हैं । उसके कारण यहां के कथित संत फ्रान्सिस जेवियर को ‘गोंयचो सायब’ (गोवा का साहब) बोलना अनुचित है । गोवा में इक्विजिशन नाम से क्रूरतापूर्ण व्यवस्था खडी करने के लिए फ्रान्सिस जेवियर ही संपूर्णरूप से उत्तरदायी था । उसके कारण गोवा के होली इक्विजिशन द्वारा २५० से भी अधिक वर्षाेंतक किए गए अत्याचारों की जानकारी आज की गोवा की नई पीढी को देना आवश्यक है । उसके लिए ही गोवावासियों के सामने ‘गोवा फाइल्स’ रखी जानेवाी है, ऐसा प्रतिपादन गोवा के भारतमाता की जय संघ के राज्य संघचालक प्रा. सुभाष वेलिंगकर ने किया । ‘हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की एकता का सफल प्रयोग : हिन्दू रक्षा महाप्रकोष्ठ’, इस विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
श्री. सुभाष वेलिंगकर ने आगे कहा कि,
१. गोवा राज्य में विगत ४५० वर्षाें में क्रूर असुरी पोर्तुगीजों ने हिन्दुओं का उत्पीडन किया । हिन्दू मंदिरों का विध्वंस, हिन्दुओं की हत्याएं, देवताओं की मूर्तियों का भंजन, धर्म बचाने के लिए हिन्दुओं को स्थानांतरण जैसे सभी बातों का गोवा के हिन्दुओं को एक ही समय सामना करना पडा था ।
२. गोवा के राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करने में ही संतोष मान रहे हैं । हिन्दू समाज की ओर उनका ध्यान नहीं है । विदेशियों का गुलामी से भरा कार्यकाल समाप्त हुआ; परंतु यह नई राजनीतिक गुलामी ने हिन्दू समाज को जकड लिया ाहै । यह हिन्दू समाज के सामने की चुनौती है ।
३. गोवा के प्रत्येक घर में मुसलमानों और ईसाईयों की जनसंख्या बढ रही है । गोवा में रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ बढी है ।
४. राजकीय दलों के समर्थन के कारण गोवा राज्य के ३१ स्थान ‘छोटे पाकिस्तान’ बन चुके हैं । मुसलमानों ने अब प्रशासन पर दबाव बनाना आरंभ किया है । गोवा के प्रत्येक गांव में मुसलमान घुस गया है । आतंकवादी संगठन ‘पॉप्युलर फ्रंट इंडिया’ यहां सक्रिय हो चुकी है ।
५. गोवा के धर्मांध मुख्यमंत्री को चेतावनी देकर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते हैं । इन सभी बातों का सामना करने के लिए हिन्दू समाज का संगठन करना आवश्यक है ।
६. गोवा के छोटे-बडे हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के ३५० प्रतिनिधियों को लेकर हमने हिन्दू रक्षा महाप्रकोष्ठ की स्थापना की है । धर्मांतरण का विरोध, जिहाद विरोध, मंदिर सुरक्षा, धर्मशिक्षा, हिन्दू संस्कार समर्पण यह पंचसूत्री तैयार कर उसके अनुसार कार्य किया जा रहा है । गोवा राज्य की सभी संस्थाए अपना-अपना कार्य करते समय ही अपनी कार्यप्रणाली में इन पंचसूत्रों का समावेश कर रही हैं । साथ ही हिन्दुत्व और राष्ट्रीयत्व बढाने के लिए गोवा राज्य के १२ तहसीलों की समिति का गठन किया गया है ।
अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन जहां चल रहा है, उस विद्याधिराज सभागार में ‘गोवा फाइल्स’ अर्थात गोवा में पोर्तुगिजों द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों के संदर्भ में प्रदर्शनी लगाई गई थी । यह प्रदर्शनी देखकर अधिवेशन में उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों, धर्मप्रेमियों और हितचिंतकों को हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों की दाहकता ध्यान में आ गई ।
९ राज्यों के ३६ जिलों में आयोजित ‘हिन्दू राष्ट्र अधिवेशनों’ में २ सहस्र से अधिक स्थानीय हिन्दुत्वनिष्ठों का सहभाग ! – चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
भारत में भ्रमण करते समय हमने जिलास्तर पर ‘हिन्दू राष्ट्र अधिवेशनों’ का आयोजन किया । इस वर्ष कोरोना काल के उपरांत देश के ९ राज्यों के ३६ जिलों में ‘हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ आयोजित किए गए । उनमें २ सहस्र १०० स्थानीय हिन्दुत्वनिष्ठों ने अपना सहभाग प्रविष्ट किया है । सभी राज्यों के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, स्वदेशी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करनेवाली संस्थाओं को हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का विचार बताने के उपरांत उन्होंने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार उनके उनके समुदाय के सामने अथवा प्रसार कर हमारी उपस्थिति में हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए व्याख्यान आयोजित किए । आज के समय में हिन्दुत्व के विषय में बडे स्तर पर जागृति हो रही है । सामाजिक माध्यमों के उपरांत अब राष्ट्रीय प्रसारमाध्य में हिन्दुत्व के पक्ष में खुलेआम बोल रहे हैं । उत्तर भारत के कुछ राज्यों में हिन्दुत्व के शासनकर्ताओं ने हिन्दुत्व का समर्थन करना आरंभ करने से और हिन्दूहित के कानून बनाने से अब ‘हिन्दू राष्ट्र’ शीघ्र आएगा, ऐसा समझा जाने लगा है ।
मानव, पशुओं, पक्षियों, वृक्षों, लताओंसहित सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवों का हित साधनेवाला हिन्दू राष्ट्र होगा – पू. नीलेश सिंगबाळजी, धर्मप्रचारक संत, हिन्दू जनजागृति समिति
भौतिक विकास के लिए भी धर्म महत्त्वपूर्ण है । दुर्भाग्यवश आज के समय में भौतिक विकास को ही वास्तविक विकास माना जा रहा है । मनुष्य पर जब कोई कठिन प्रसंग आता है, तब उसका मानसिक संतुलन नष्ट होता है । भौतिक विकास में कहीं पर भी षड्रिपुओं के निर्मूलन का महत्त्व नहीं है । सीता का अपहरण करनेवाले रावण की लंका भी उस समय की ‘स्मार्ट सिटी’ थी; परंतु वहां रहनेवाले राक्षस थे । हमें तो रामराज्य चाहिए । लोगों को नीतिमान बनानेवाला विकास हमें चाहिए । धर्म ही राष्ट्र का प्राण है । प्राण नहीं होगा, तो शरीर मृत बन जाता है । उसी प्रकार धर्म के बिना राष्ट्र मृत है ! इसके लिए धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है ।
लोकमान्य तिलकजी और स्वतंत्रतावीर सावरकरजी ने भूमि और संस्कृति पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की परिभाषा बताई । विश्व हिन्दू परिषद ने समूहवाचक हिन्दू राष्ट्र की परिभाषा बताई है । ‘मेरूतंत्र’ इस ग्रंथ में बताई गई गई हिन्दू धर्म की परिभाषा आध्यात्मिक स्तर की है । हीन कनिष्ठ विचारों का नाश कर स्वयं में गुणों की वृद्धि करनेवाला हिन्दू है । ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना संसदीय मार्ग से होगी’, ऐसा कुछ लोगों को लगता है; परंतु सत्ता के मोह से लिप्त लोग राष्ट्ररचना का कार्य नहीं कर सकते । राजनीति और राष्ट्ररचना ये दोनों अलग-अलग कार्य हैं । सत्त्वगुण केवल स्वयं का नहीं, अपितु विश्वकल्याण का विचार करता है । हमारे ऋषिमुनियों ने इस प्रकार से विश्वकल्याण का विचार किया है । विश्वकल्याण का विचार करनेवाले ऐसे धर्मधुरंतर सत्त्वगुणी लोग ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर सकते हैं, ऐसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रखर विचार हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी ने उद्धृत किए । उन्होंने ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के हिन्दू राष्ट्र के विषय में विचार’, इस विषय पर मार्गदर्शन किया ।