आदर्श चरित्र निर्माण करनेवाली शिक्षा आवश्यक ! – पू. (डॉ.) शिवनारायण सेन, उपसचिव, शास्त्र धर्म प्रचार सभा, बंगाल.
रामनाथी – पूर्व काल में भारत में विद्यालय मंदिरों में ही चलाए जाते थे । सामान्यत: प्रत्येक गांव में एक मंदिर था एवं प्रत्येक गांव में एक विद्यालय ! एक अंग्रेज अधिकारी थॉमस मुन्रो के ब्योरे के अनुसार वर्ष १८२६ में दक्षिण भारत में १ लाख २८ सहस्र विद्यालय थे । जिनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य विद्यार्थियों की मात्रा २५ प्रतिशत थी, जबकि शुद्र विद्यार्थियों की मात्रा ६५ प्रतिशत थी । प्रत्येक १ सहस्र लोगों के पीछे १ विद्यालय था । मंदिरों से विद्यालय समान ही संपूर्ण गांव भी चलाया जाता था । आगे यह सब कुछ अंग्रेजों ने बंद कर दिया ।
आज भी भारत में किसी भी विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती । भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हुए बिना हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा नहीं दे पाएंगे । इसलिए ‘सभी संस्थाओं के एकत्र आने से आदर्श चरित्र निर्माण होगा’, ऐसी धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है । वर्तमान में कम से कम प्राथमिक विद्यालयों में तो धर्मशिक्षा देने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उसके लिए एक समिति की स्थापना होनी चाहिए, ऐसा आवाहन बंगाल के शास्त्र धर्म प्रचार सभा के उपसचिव पू. डॉ. शिवनारायण सेन ने किया । वे दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में १६ जून २०२२ को ‘हिन्दुओं की शिक्षा प्रणाली’ इस विषय पर बोल रहे थे । इस अवसर पर व्यासपीठ पर गोवा के महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध विभाग के श्री. शॉन क्लार्क, स्वामी संयुक्तानंद महाराज, बंगाल के शास्त्र धर्म प्रचार सभा के उपसचिव पू. (डॉ.) शिबनारायण सेन, मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन के सप्तर्षि गुरुकुल के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. देवकरण शर्मा उपस्थित थे ।
इस अवसर पर अन्य वक्ताओं ने किया ओजस्वी मार्गदर्शन
हिन्दुओ, संकल्पशक्ति का महत्त्व जानकर धर्मकार्य करने का संकल्प करें ! – श्री. टी.एन्.मुरारी, भाजप नेता, तेलंगाणा
हिन्दुओं को आनेवाले आपातकाल के लिए नियोजन करना आवश्यक है । हिन्दुओं को धर्म पर निष्ठा रखकर हिन्दुत्व का काम करते रहना चाहिए । हिन्दू संगठनों को घबराने की आवश्यकता नहीं; कारण ईश्वर उनके साथ हैं । देश के हिन्दुओं की समस्याएं सुलझाने का दायित्व तुम पर है । हिन्दुओ, संकल्पशक्ति का महत्त्व जानकर धर्मकार्य करने का संकल्प करें । आप संकल्प करेंगे, तो उसे पूर्ण करने के लिए ईश्वर भी आता ही है । हिन्दुओं को संगठित होकर (वैध मार्ग से) लढना है । हमारे साथ ईश्वर एवं गुरुजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवले) का आशीर्वाद है ।
हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन ऊर्जाकेंद्र है ! – श्री. टी.एन्.मुरारी, शिवसेना, तेलंगाणा
वर्तमान में हो रहा यह अधिवेशन मनोबल प्रदान करनेवाला ऊर्जाकेंद्र है । यहां की ऊर्जा के कारण आगे वर्षभर कार्य करने के लिए मनोबल मिलता है ।
श्री. टी.एन्. मुरारी का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति भाव
मनोगत के आरंभ में श्री. टी.एन्. मुरारी बोले, ‘‘हिन्दू जनजागृति समिति के (प्रेरणास्रोत) गुरुजी (परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले) हम सभी का हाथ पकडकर आध्यात्मिक स्तर पर आगे बढने के लिए मार्गदर्शन कर रहे हैं । इसके लिए मैं उन्हें प्रणाम करता हूं । हाथ पकडकर आगे ले जानेवालों की आवश्यकता है । इससे कार्य अच्छा होता है ।’
जगत की धरोहरों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण से पुनर्विचार हो ! – श्री. शॉन क्लार्क, संशोधन विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
हिन्दू धर्म का महत्त्व जानने के लिए आध्यात्मिक शोधकार्य की प्रत्येक हिन्दू को जानकारी होनी चाहिए । ‘बाह्यतः अच्छी दिखाई देनेवाली वस्तु, वास्तु अथवा अन्य कोई भी बात आध्यात्मिक दृष्टि से पवित्र हो’, ऐसा नहीं होता; यह महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से किए शोध से प्रमाणित किया है । इस संदर्भ में शोध के प्रयोग में जगत के ‘७ आश्चर्य’ अर्थात seven wonders के रूप में विख्यात धरोहरों का निरीक्षण किया गया । तब ऐसा पाया गया कि ये जो सातों वास्तु हैं, वे भारी मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा प्रक्षेपित करती हैं । अधिकतर धरोहरों के स्थान पर मजारें हैं । इसके विपरीत भारत के प्रसिद्ध श्री तिरुपती बालाजी मंदिर की रीडिंग लेने पर उसमें थोडी भी नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई, केवल सकारात्मक ऊर्जा ही पाई गई; परंतु दुर्भाग्यवश श्री तिरुपति बालाजी मंदिर वैश्विक धरोहरस्थान नहीं है । इससे यह ध्यान में आता है कि ‘जगत के धरोहर स्थानों का आध्यात्मिकदृष्टि से पुनर्विचार किया जाना चाहिए’, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध विभाग के श्री. शॉन क्लार्क ने किया । वे ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के हिन्दू संस्कृति का महत्त्व सिद्ध करनेवाले शोधकार्य’ इस विषय पर बोल रहे थे ।
इस अवसर पर श्री. क्लार्क ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा हिन्दू धर्म की कृतियों के शोधनात्मक प्रयोगों का निष्कर्ष बताकर उनका महत्त्व समझाया । इसके अंतर्गत जगभर के पानी के १ सहस्र नमूनों का परीक्षण, विविध प्रकार से बनाए जानेवाले स्वस्तिक, साधना करनेवाले एवं न करनेवालों के घरों के स्पंदन, विविध प्रकार के लेखकों द्वारा लिखी आध्यात्मिक पुस्तकों का निरीक्षण, संगणकीय अक्षरों के फॉन्ट एवं नामजप करने पर कुंडलिनीचक्रों पर होनेवाला परिणाम आदि प्रयोगों की जानकारी दी ।
क्षणिकाएं
१. इस अवसर पर श्री. क्लार्क ने उपस्थितों से स्पंदनों के संदर्भ में एक प्रयोग भी करवाया । इसमें चीनी, अंग्रेजी एवं संस्कृत, इन भाषाओं में उच्चार किया गया ‘सूर्य पूर्व में उगता है और पश्चिम में अस्त होता है’, यह वाक्य सुनाया गया । इस प्रयोग द्वारा उपस्थितों को संस्कृत भाषा का महत्त्व ध्यान में आया ।
२. ताजमहल एवं उसके समीप बहनेवाली यमुना नदी के सूक्ष्मचित्र उपस्थितों को दिखाए गए । ‘ऊपर से प्रदूषित दिखाई देनेवाली यमुना नदी से चैतन्य प्रक्षेपित होता है’, यह देखकर उपस्थित सर्व जन प्रभावित हुए ।
देश के हिन्दुओं की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है ! – स्वामी संयुक्तानंद महाराज, भारत सेवाश्रम संघ
भारत एक शांतिप्रिय देश है, तब भी प्रत्येक संत को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए । संत विश्व के कल्याण के लिए अथक प्रयत्न कर रहे हैं । हिन्दुओं की सुरक्षा की उपेक्षा होने से उनकी संख्या घट गई; ऐसा नहीं होना चाहिए । इसलिए प्रथम देश के हिन्दुओं की सुरक्षा करना महत्त्वपूर्ण है । देश के बुद्धिजीवी एवं सामान्य जनता मोहनदास गांधी के बताए अनुसार अहिंसा परमो धर्म’ इस आधार पर जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इसलिए आज भी धर्मांधों द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे हैं । गांधी बलवान नहीं थे; परंतु हिन्दुओं के उनके पीछे जाने से हिन्दुओं की हानि हुई । ऐसी हानि न होने हेतु हिन्दुओं को संगठित होना आवश्यक है । ऐसा हमें संकल्प करना चाहिए, इसलिए कि बिना संकल्प के हम कुछ नहीं कर सकते । सोए हुए व्यक्ति के हाथों में शस्त्र देने पर भी वह काम नहीं कर सकेंगे । इसलिए ऐसे लोगों को जागृत करना चाहिए । कार्य के फल की अपेक्षा नहीं करनी है । फल मिलनेवाला ही है ।
गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त किए दशरथ, श्रीराम, भरत, विक्रमादित्य जैसे राजा यशस्वी सिद्ध हुए ! – डॉ. देवकरण शर्मा, संस्थापक अध्यक्ष, सप्तर्षि गुरुकुल, उज्जैन, मध्य प्रदेश
गुरुकुल की शिक्षा के कारण बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं । अच्छा सदाचारी मनुष्य बनने के लिए गुरुकुल में मानवीय मूल्यों की शिक्षा दी जाती है । वेदों का अध्ययन करने से लोभ, अहंकार और मोह ये दुर्गुण नष्ट होते हैं । गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त दशरथ, श्रीराम, भरत, विक्रमादित्य आदि राजाओं ने जनता का कभी शोषण नहीं किया । ये राजा यशस्वी सिद्ध हुए हैं । वैदिक अध्ययन से मिलनेवाली शक्ति के आधार से हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर सकते हैं, ऐसा प्रतिपादन उज्जैन (मध्यप्रदेश) के सप्तर्षि गुरुकुल के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. देवकरण शर्मा ने किया । ‘गुरुकुल पर आधारित शिक्षानीति की आवश्यकता’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।
डॉ. देवकरण शर्मा ने आगे कहा कि,
१. ८०० वर्ष पूर्व भारत में गुरुकुल शिक्षापद्धति थी, परंतु आज के समय में देश के ९० प्रतिशत लोगों को इसकी जानकारी नहीं है । गुरुकुल की शिक्षा योगवादी थी, भोगवादी नहीं थी ।
२. गुरुकुल आश्रम जाकर धर्म का नित्य आचरण करना, वेद, उपवेद, उपनिषद और नीतिशास्त्र सिखाया जाता था । वहां गृहस्थीजीवन और ज्ञानकांड की भी शिक्षा दी जाती थी ।
३. गुरुकुल में योगासन, प्राणायाम, व्यायाम के साथ सूर्य और गायत्री मंत्र की उपासना कैसे करनी चाहिए, यह सिखाया जाता है । प्रातःकाल में जागने से लेकर रात के १० बजेतक गुरुकुल की दिनचर्या सुनिश्चित होती है, जिसका आचरण करना पडता है ।
४. वेदमंत्र का पाठ करते समय मंत्रों में विद्यमान शब्दों के उच्चारण कैसे होने चाहिएं, इसकी भी शिक्षा दी जाती है । गुरुकुलों से इस प्रकार की उच्च पद्धति की शिक्षा दी जाती थी; परंतु बाहर के लोगों ने अतिक्रमण कर जानबूझकर गुरुकुल की शिक्षा बंद की ।
क्षणिका
अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन में गौतम बोस द्वारा तैयार की गई ‘बांगलादेश में हिन्दुओं पर होनेवाले अत्याचार’ इस संदर्भ में दृश्यश्रव्यचक्रिका (वीडियो) दिखाया गया ।