हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के समारोप भाषण में सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे जी का आवाहन !
६ देशोंसहित भारत के २६ राज्यों के हिन्दुत्वनिष्ठों का सहभाग !
रामनाथी – हिन्दू राष्ट्र की स्थापना धर्मसंस्थापना का ईश्वरीय कार्य है । ईश्वर जब अवतार धारण कर कार्य करते हैं, तब उनके भक्त अपनी साधना के रूप में इस कार्य में सम्मिलित होते हैं । जो कार्य में सम्मिलित होंगे, उनकी आध्यात्मिक उन्नति होगी, साथ ही मृत्योपरांत पारलौकिक उन्नति भी सुलभता से होगी । इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की ओर तटस्थ होकर न देखकर उसके लिए प्रधानता लेकर कार्य कीजिए, ऐसा आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के समापन सत्र के मार्गदर्शन में किया । इस अधिवेशन में भारत के २६ राज्योंसहित अमेरिका, नेपाल, हाँगकाँग, फिजी, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से ११७ हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के ४०० से अधिक हिन्दुत्वनिष्ठ सम्मिलित थे ।
१२ जून से चल रहे इस अधिवेशन का १८ जून को समापन हुआ । अधिवेशन समाप्त होने के उपरांत उपस्थित सभी हिन्दुत्वनिष्ठों ने अपने-अपने क्षेत्र में जाने के उपरांत हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए समर्पित होकर कार्य करने का निश्चय किया ।
हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण करनेवाला अध्येता वक्ता बनिए !
आज जहां सर्वत्र वैचारिक स्तर पर ध्रुवीकरण होने के समय आप सभी हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का प्रभावशाली पद्धति से प्रस्तुतिकरण करनेवाले अध्येता वक्ता बनिए, साथ ही लेखन, सामाजिक माध्यमों आदि के माध्यम से वैचारिक कार्य कीजिए, ऐसा आवाहन सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने किया ।
सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे आगे बोले,
१. प्रांत, भाषा, संस्था, कार्यशैली आदि भले ही भिन्न हो, तब भी हम सभी का लक्ष्य एक ही है अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ ! वर्तमान के अत्यंत अल्प काल में १०० करोड हिन्दुओं का संगठन असंभव है । इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए समविचारी हिन्दू शक्तियों का एकत्रीकरण करना है ।
२. हिन्दू राष्ट्र से प्रेरित समस्त हिन्दू शक्ति जब एकत्र आएगी उस क्षण, यह राष्ट्र हिन्दू राष्ट्र होगा । उसके लिए किसी भी चुनाव की अथवा किसी के बौद्धिक प्रश्नोें के उत्तर देने की आवश्यकता नहीं रहेगी ।
३. भारत संविधानात्मक हिन्दू राष्ट्र के रूप में घोषित होने पर हिन्दुओं के मानबिन्दुओं की रक्षा नहीं होगी । हमें धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र का बीजारोपण करना होगा । धर्माधारित राज्यकारभार आने पर ही गाय, गंगा, सती, वेद, सत्यवादी, दानवीर आदि की संपूर्ण रक्षा संभव है ।
४. कालप्रवाह हिन्दू राष्ट्र के लिए अनुकूल हो रहा है, यह ध्यान रहे । १० वर्षाें पूर्व आयोजित हिन्दू राष्ट्र के प्रथम अधिवेशन के समय सभी लोग ‘हिन्दू राष्ट्र’ इस शब्दप्रयोग की ओर संदेह की दृष्टि से देखते थे; परंतु आज संसद में हो अथवा जनसंसद में, ‘हिन्दू राष्ट्र’ यह शब्द प्रचलित हो गया है । यह काल की महिमा है ।
५. भारत आंतरराष्ट्रीय स्तर पर तटस्थ है, तब भी भविष्य में किसी के पक्ष में तो युद्ध में सम्मिलित होना ही होगा । वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह युद्ध अब बहुत दूर नहीं ।
६. ‘द कश्मीर फाइल्स’ चलचित्र प्रदर्शित होने पर हुए दंगों में, इसके साथ ही श्रीरामनवमी एवं श्री हनुमान जयंती के दिन हुई शोभायात्राओं में धर्मांधों के आक्रमण, ये सभी भविष्य के गृहयुद्धों की झलक थी, यह ध्यान में रखें ।
७. अराजकता निर्माण होती है, तब देश की आंतरिक एवं बाह्य सीमाएं असुरक्षित हो जाती हैं । ऐसे समय पर सीमापार के साथ-साथ गृहयुद्ध का भी संकट मंडराता रहता है । सीमा पर सैनिक भारत की रक्षा करेंगे ही, परंतु आंतरिक सुरक्षा के लिए सर्व देशभक्त एवं हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को शारीरिक स्तर पर कार्य करना होगा ।