दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में हिन्दुत्वनिष्ठों को मिली आनंदवार्ता !
केरल समान राज्य में साम्यवादियों का वर्चस्व होने से हिन्दुत्व का कार्य करने के लिए अत्यंत प्रतिकूल वातावरण होते हुए भी गत २० वर्षाें से अत्यंत लगन से हिन्दुत्व का कार्य अत्यंत धैर्य और साहस से करनेवाले थ्रिसूर (केरल) के हिन्दुत्वनिष्ठ पी.टी. राजू से ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने यह आनंदवार्ता दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के व्यासपीठ से १८ जून को उपस्थित सभी हिन्दुत्वनिष्ठों को दी । ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति असीम भाव रखनेवाले पी.टी. राजू जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुए’, इन शब्दों में सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे ने श्री. पी.टी. राजू के विषय में गौरवोद्गार व्यक्त किए । आध्यात्मिक स्तर घोषित होने पर पी.टी. राजू का अष्टसात्त्विक भाव अत्यंत जागृत हो गया । बहुत समय तक वे अपने भावाश्रु रोक नहीं पाए ।
इस अवसर पर व्यासपीठ पर हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळ सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु (सुश्री) अनुराधा वाडेकर एवं सद्गुरु (सुश्री) स्वाती खाडये उपस्थित थीं । सनातन के धर्मप्रचारक पू. रमानंद गौडा ने श्रीकृष्ण की प्रतिमा देकर श्री. पी.टी. राजू का सत्कार किया । इस अवसर पर श्री. पी.टी. राजू की धर्मपत्नी जी.जी. राजू एवं बेटी अपर्णा राजू भी उपस्थित थीं ।
इसके आगे समर्पित होकर पूरे समय धर्मकार्य करूंगा !- पी.टी. राजू
मेरी पत्नी कपडे सिलने का काम करती है । उससे जो पैसा मिलता है, उससे मैं धर्मप्रसार का कार्य करता हूं । धर्मकार्य में सहायता करनेवाली पत्नी, मेरी शक्ति है । कोरोना के काल में मैं उत्तम प्रकार से साधना कर पाया । गुरुदेवजी की कृपा से मेरी बेटी की इसी माह अच्छे पद पर नौकरी लगी है । इस प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मुझे गृहस्थ जीवन से मुक्त किया है । इसलिए अब मैं समर्पित होकर पूरे समय धर्मकार्य करूंगा ।
धर्मकार्य की असीम लगन के कारण भाषा की अडचनों पर मात करनेवाले पी.टी. राजू !
श्री. पी.टी. राजू प्रथम अधिवेशन से अब तक सर्व अधिवेशनों में उपस्थित रहे हैं । वास्तव में उन्हें हिन्दी भाषा नहीं आती । ऐसा होते हुए भी वे लगन से सभागृह में बैठकर आसपास बैठे धर्माभिमानियों से विषय समझकर लेने का प्रयत्न करते थे । भाषा समझ में न आने पर भी ऐसा एक बार भी नहीं हुआ कि सत्र के चलते वे सभागृह के बाहर टहल रहे हों, भ्रमणभाष इत्यादि पर बात कर रहे हों । अब उन्होंने थोडा-बहुत हिन्दी बोलना सीख लिया है । आध्यात्मिक प्रगति घोषित होने पर उन्होंने ‘मैं आज हिन्दी भाषा में बोलनेवाला हूं’, ऐसा कहते हुए अपना मनोगत जैसे संभव हुआ वैसे हिन्दी में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया ।