श्री तुलजाभवानी मंदिर में करोडों रुपयों का भ्रष्टाचार !
श्री तुलजाभवानी देवस्थान में वर्ष 1991 से 2009 की अवधि में सिंहासन दानपेटी की नीलामी में 8 करोड 45 लाख 97 हजार रुपयों का घोटाला हुआ है । इस प्रकरण में 9 ठेकेदार, 5 तहसीलदार, 1 लेखापरीक्षक और 1 धार्मिक सहव्यवस्थापक पर विविध धाराओं के अंतर्गत अपराध (FIR) प्रविष्ट करने की सिफारिश राज्य अपराध अन्वेषण विभाग ने अन्वेषण रिपोर्ट द्वारा महाराष्ट्र शासन से की है । उसे पांच वर्ष बीत चुके हैं, तब भी अभी तक दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है । इस प्रकरण में मुंबई उच्च न्यायालय के संभाजीनगर खंडपीठ ने राज्य सरकार से प्रश्न किया है कि, पांच वर्ष होने के उपरान्त भी ‘सी.आई.डी’ की रिपोर्ट के अनुसार दोषियों पर अपराध प्रविष्ट क्यों नहीं किए गए हैं ? क्या पांच वर्ष अपराध प्रविष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं ? इस संदर्भ में मा. उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक, विशेष पुलिस महानिरीक्षक, संभाजीनगर और पुलिस अधीक्षक, धाराशीव को 22 अगस्त 2022 तक कारण प्रस्तुत करने हेतु नोटिस भेजा है ।
इस संदर्भ में हिन्दू जनजागृति समिति ने हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी तथा अधिवक्ता उमेश भडगांवकर के माध्यम से रिट याचिका प्रविष्ट की थी । उस पर न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति देशपांडे ने उपरोक्त आदेश दिए हैं तथा समिति की रिट याचिका को जनहित याचिका में रुपांतरित करने की अनुमति दी है । वर्ष 2011 में महाराष्ट्र सरकार ने श्री तुलजापुर मंदिर घोटाले का अन्वेषण करने के आदेश दिए थे; परंतु इसमें अनेक अनेक बडे अधिकारी और जनप्रतिनिधि सम्मिलित होने के कारण अन्वेषण पूर्ण नहीं हो रहा था । इसलिए समिति ने वर्ष 2015 में संभाजीनगर उच्च न्यायालय में याचिका (क्र. 96/2015) प्रविष्ट की थी । उस पर 20 सितंबर 2017 को अपर मुख्य सचिव, गृह विभाग, महाराष्ट्र राज्य को अन्वेषण रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी; परंतु वह रिपोर्ट विधानसभा में सार्वजनिक न करते हुए दबाकर रखी गई । इस संदर्भ में दूसरी याचिका प्रविष्ट करने पर संभाजीनगर खंडपीठ के न्यायमूर्ति आर.डी. धनुका और न्यायमूर्ति एस.जी. मेहरे ने 22 अप्रैल 2022 को उक्त रिपोर्ट की प्रति हिन्दू जनजागृति समिति को उपलब्ध करने के आदेश सरकार को दिए ।
इस अन्वेषण रिपोर्ट में 16 शासकीय अधिकारी और ठेकेदारों पर कार्यवाही करने की सिफारिश की गई तथा इस अवधि में मंदिर के न्यासी तत्कालीन जिलाधिकारी और जनप्रतिनिधि पर विभागीय स्तर पर कार्यवाही करने की सिफारिश की गई थी; परंतु पांच वर्ष होने पर भी इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है । अनेक बार निवेदन देकर तथा आंदोलन करने पर भी सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की । इसलिए समिति को तीसरी बार न्यायालय में याचिका प्रविष्ट करनी पडी । उसमें उक्त आदेश मा. न्यायालय ने दिए हैं ।