रामायण से संबंधित पौराणिक स्थलों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को चालना मिल सकती है’, ऐसे श्रीलंका को लगता है । कहा जाता है कि ‘अनुकूल परिस्थिति में नहीं, अपितु संकट में ही भगवान याद आते हैं ।’ इस विधान की प्रचीति श्रीलंका के उदाहरण से आती है । अर्थसंकट की गर्त में पूर्णरूप से डूब जाने पर भगवान का स्मरण हुआ, यह भी कम नहीं ! वर्तमान में अराजकता श्रीलंका में अपनी चरम सीमा पर है, नागरिक असुरक्षित हैं एवं सुख-सुविधाओं की कमतरता है । संक्षेप में, यदि ऐसा कहें कि ‘श्रीलंका अपने ही कुकर्मों का फल भोग रहा है’, तो गलत नहीं होगा । ऐसी स्थिति में भी ‘पडोसीधर्म’का पालन करते हुए भारत श्रीलंका को सभी प्रकार की सहायता देकर ‘विश्वबंधुत्व’की प्रचीति दे रहा है । इससे श्रीलंका एवं भारत में मित्रतापूर्ण संबंध पुन: दृढ हो सकते हैं । पर्यटनदूत सनथ जयसूर्या ने इस सहायता के लिए भारत का आभार माना है । संक्षेप में, श्रीराम की जन्मभूमि अर्थात भारतभूमि ही आज श्रीलंका को तार रही है ! अब आता है प्रश्न श्रीलंका के पुर्ननिर्माण का ! वहां श्रीराम, सीता, हनुमान, लक्ष्मण, रावण एवं मंदोदरी से संबंधित अनेक स्थान, तीर्थ, गुफा, पर्वत एवं मंदिर भी हैं ।
रामायण में जिस भूभाग को ‘लंका’ अथवा ‘लंकापुरी’ कहते हैं, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णु ने श्रीरामावतार धारण कर लंकापुरी में रावणादि असुरों का नाश किया । इतनी महत्त्वपूर्ण धार्मिक परंपरा से युक्त श्रीलंका में वर्तमान में ७० प्रतिशत लोग बौद्ध हैं । इसलिए बीच में वह ‘बौद्ध राष्ट्र’ के रूप में घोषित किया गया था । ३० वर्षों पूर्व वहां ३० प्रतिशत हिन्दू अब केवल १५ प्रतिशत ही रह गए हैं । वहां ईसाइयों की संख्या बढती जा रही है । यह स्थिति देखते हुए अब देश बचाने के साथ-साथ वहां के हिन्दुओं को भी बचाने का समय आ गया है । ऐसा लगता है कि रामायण से संबंधित स्थलों के विकास के माध्यम से यह उद्देश्य भी कुछ प्रमाण में साध्य हो सकता है ।