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सुराज्य निर्माण करने के लिए हिन्दू राष्ट्र अपरिहार्य – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

उज्जैन (मध्यप्रदेश) में भारतमाता मंदिर में सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे के शुभहस्तों ध्वजारोहण

उज्जैन – हमें स्वतंत्रता मिलने का आनंद है; परंतु इसके साथ ही भारत के विभाजन एवं उस समय लाखों हिन्दू बंधुओं के नरसंहार की वेदना भी है । हमें भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाकर अखंड भारत की निर्मिति का संकल्प करना होगा । आज का स्वराज्य अपूर्ण है । अब हमें स्वदेशी के माध्यम से सुराज्य तक अर्थात हिन्दू राष्ट्र की ओर जाने के लिए हमें संकल्प करना होगा । हमारी व्यवस्था, राज्यव्यवस्था, कानून, शिक्षाव्यवस्था, भाषा इत्यादि के माध्यम से हमें पुन: स्वराज्य से सुराज्य की ओर मुडना होगा, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने किया ।

७५ वें अमृत महोत्सव पर स्वतंत्रतादिन के उपलक्ष्य में यहां भारतमाता मंदिर के मैदान में ध्वजारोहण का कार्यक्रम बडे उत्साह में मनाया गया । हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे के शुभहस्तों ध्वजारोहण किया गया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक तथा माधव सेवा न्यास के अध्यक्ष श्री. बलराज भट्ट की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था । इस प्रसंग में संघ का सामाजिक सद्भाव मालवा प्रांत सहसंयोजक तथा माधव सेवा न्यास के सचिव श्री. विपीन आर्य, कुटुंब प्रबोधन प्रांत संयोजक श्री. विजय केवलिया, माधव सेवा न्यास के कोषाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संपर्क प्रमुख श्री. नितीन गरुड आदि मान्यवर, संघ परिवार के कार्यकर्ता एवं मंदिर के श्रद्धालु उपस्थित थे ।

ध्वजारोहण होने के उपरांत संबोधित करते हुए सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगलेजी बोले, ‘‘हमें स्वतंत्रताप्राप्ति का अमृत महोत्सव दिन मनाते समय अपनी वैभवशाली परंपराएं युवा पीढी के सामने रखनी आवश्यक है । महाकाल, ये काल के देवता हैं । समय का निर्धारण महाकालनगरी उज्जैन से होता था; परंतु धूर्त अंग्रेजों ने इसे ‘ग्रीनवीच टाईम जोन’(ब्रिटिश क्षेत्रों का मानक समय) में स्थानांतरित किया । तब भी ‘२४ घंटों का एक दिन क्यों ?’, इसका उत्तर अंग्रेज नहीं दे सके । इसका उत्तर हमारे पंचांग में है । हमारा सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक एक दिन होता है । उज्जैन के राजा विक्रमादित्य समान पराक्रमी राजा की यह भूमि है, जिनके अलौकिक पराक्रम के कारण विक्रम संवत प्रारंभ किया गया है । भगवान श्रीकृष्ण ने भी उज्जैन के सांदिपनी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की थी । आज धर्मरक्षक एवं धर्मसंस्थापक निर्माण करनेवाली यह गुरुकुल परंपरा संपूर्ण भारत में स्थापित करने का समय आ गया है ।

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