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धर्मनिरपेक्ष विचारधाराका राष्ट्र नहीं, धर्माधिष्ठित ‘हिंदू राष्ट्र’ ही चाहिए !

सारणी


 

१. विश्वके अन्य राष्ट्रोंके समान भारत राष्ट्रका हिंदू धर्मपर आधारित होना आवश्यक !


डॉ. नील माधव दास, संस्थापक,‘तरुणहिंदू’

        ‘कुछ दिन पूर्व मेरा एक पत्रकार मित्रके साथ यह संवाद हुआ ।

पत्रकार : आपको हिंदू राष्ट्र क्यों चाहिए ?

डॉ. दास : हमारी ‘तरुण हिंदू’ नामक संस्था है, जिसका एक ही उद्देश्य है, ‘हिंदू राष्ट्र और हिंदू विश्व !’ पहले ये बताइए आपको हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं चाहिए, तत्पश्चात मैं आपके प्रश्नका उत्तर दूंगा ।

पत्रकार : विश्वमें कोई भी देश धर्मपर आधारित नहीं है । तो भारत धर्मपर आधारित क्यों होगा ?

डॉ. दास : यह आपका भ्रम है । भारत तथा नेपालके अतिरिक्त विश्वके सभी देश धर्मपर आधारित हैं । केवल इन दो देशोंके संविधानमें ‘सेक्यूलर’ यह शब्द है । अन्य किसी भी देशके संविधानमें ‘सेक्यूलर’ शब्द नहीं है । अमेरिका ‘सेक्यूलरिज्म ह्यूमन राईट’के लिए सभी देशोंमें आदर्श माना जाता है । एक बार उस देशके राष्ट्रपतिको शपथ लेनी थी, तब सर्वप्रथम वे चर्चमें गए । वहांके फादर प्रिस्टने उन्हें शपथ दिलाई । संसदका अधिवेशन आरंभ हुआ, तब सर्वप्रथम बायबलका पाठ हुआ । सभी देशोंमें बायबलका पाठ होता है । जापानके महाराज तथा सम्राटको बौद्धधर्मका रक्षक घोषित किया गया है । इंग्लैंडमें प्रोटेस्टंट ईसाई बने बिना वहां कोई भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकता । प्रत्येक देशमें ऐसा ही कुछ-ना-कुछ होता है ।

 

२. इंदिरा गांधीद्वारा संविधानमें ‘सेक्यूलर’ शब्द जोडा
और राष्ट्रीयत्व महत्त्वपूर्ण होनेके कारण धर्मको सामने रखना आवश्यक

        भारतका संविधान पूर्वमें तथा अब भी धर्मनिरपेक्ष नहीं है । वर्ष १९७६ में देशमें आपातकालके समय प्रसारमाध्यमोंको स्वतंत्रता नहीं थी । कोई कुछ भी नहीं बोल सकता था । उस समय इंदिरा गांधीने संविधानमें ‘सेक्यूलर’ यह शब्द जोडा । पूर्वके संविधानमें ‘डेमोक्रेटिक रिपब्लिक’ ऐसे शब्द थे, उसमें और दो शब्द जोडे गए, ‘सोशलिस्ट सेक्यूलर’ !

 

३. भारतका राष्ट्रीयत्व मात्र हिंदुत्व है !

        उत्तरपाडाके महर्षि अरविंदके सबसे प्रसिद्ध भाषणमें उन्होंने कहा, ‘‘Hindutva and Nationality are inseparable. Nationality in india is just Hindutava, Not Diffrent Things.’’ (हिंदुत्व तथा राष्ट्रीयत्व अभिन्न हैं । भारतका राष्ट्रीयत्व केवल हिंदुत्व है, अन्य कुछ नहीं ।) यह हम क्यों भूल गए ? राष्ट्रीयत्वको छोडकर क्या हम कभी आगे बढ सकते हैं ? कभी नहीं ।

 

४. कश्मीरकी १९ जनवरी १९९० की विदारक घटना !

        हिंदू समाजके विरोधमें गत ६०-६५ वर्षोंमें सबसे बडी घटना कश्मीरके संदर्भमें हुई । १९ जनवरी १९९० के दिन वहांके सर्व हिंदुओंको भगा दिया गया और वहांके मंदिर तोडे गए । लगभग ५०० हिंदुओंको मारा गया । कई अनैतिक कृत्य भी हुए । महत्त्वपूर्ण यह है कि यह किसी आतंकवादीने नहीं किया । वहांकी सामान्य धर्मांध जनताने मस्जिद से हिंदुओंको बताया, ‘यह देश छोडकर जाओ । यहां आपकी आवश्यकता नहीं है । अपनी माताओं, बहनों और बेटियोंको यहां छोड जाओ । हमें उनकी आवश्यकता है !’

 

५. धर्मनिरपेक्ष विचारधाराके कारण अन्य धर्मियोंका भारतीयोंपर राज्य करना

१. बांग्लादेशी घुसपैठिए यहां आकर गौएं ले जाते हैं और वे लोग यहीं रहते हैं ।
२. मुगलोंने १७ बार असमपर कब्जा करनेका प्रयास किया; परंतु वे विफल रहे । जबकि स्वतंत्रताके केवल ६५ वर्षोंकी कालावधिमें असम इस्लामीकरणकी ओर बढ रहा है ।
३. ‘सेक्यूलरिज्म’के कारण बंगाल तथा उत्तरप्रदेशपर धर्मांध राज्य कर रहे हैं । वहां मुलायमसिंहके समाजवादी दलका शासन आनेपर कुछ ही दिनोंमें राजनीतिको निमित्त बनाकर धर्मांधोंने हिंदुओंपर आक्रमण किए ।
४. धर्मनिरपेक्ष प्रसारमाध्यम इसे अलग ही रंग दे रहे हैं । बंगालमें क्या हो रहा है ? इसकी जानकारी सूचनाजालसे (इंटरनेटसे) मिलती है; परंतु प्रसारमाध्यमोंसे नहीं मिलती ।
५. पूर्वोत्तरके ५ राज्य ईसाइयोंके नियंत्रणमें हैं ।
६. हिंदू कर चुकाते हैं । उसमेंसे हजके लिए राशि व्यय की जाती है । मंदिरोंसे लिया जानेवाला धन मदरसे तथा चर्चमें दिया जाता है । भारत धर्मनिरपेक्ष है, इसलिए यहां धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती; परंतु धर्मांधोंको धर्मशिक्षा हेतु पैसा दिया जाता है ।
७. धर्मनिरपेक्ष विचारधारामें हिंदू, ईसाई तथा धर्मांध सभी समान हैं । तब भी इस्लाम तथा ईसाईबहुल राज्योंमें हिंदू मार खा रहे हैं । हिंदू मूल निवासी हैं, तब उनकी ऐसी दुर्दशा है ।

 

६. हिंदू वंशीय भारतके भूमिपुत्र हैं, अतः देशको हिंदू राष्ट्र होना ही चाहिए !

        जब देशका प्रश्न आता है; जिसने अबतक इस देशको संभाला है, जो देश की संस्कृति तथा धर्म आगे ले जाता है, उस हिंदू वंशीय भूमिपुत्रका इस हिंदू भूमिमें कोई महत्त्व नहीं । यह देश तथा संस्कृति हिंदुओंकी है । भारतका धर्म भी हिंदू है । इसलिए हिंदू राष्ट्र बनना ही चाहिए । हम सब एकत्र हो जाएं, तो कुछ भी असंभव नहीं ।

 

७. हिंदू धर्मके प्रचार हेतु निष्ठावानोंकी आवश्यकता

        स्वामी विवेकानंदने कहा था, ‘‘मुझे केवल २० साधक चाहिए । तो मैं विश्वमें हिंदू धर्मका प्रचार कर पाऊंगा । अधिक लोगोंकी आवश्यकता नहीं, मात्र कुछ निष्ठावान चाहिए ।’’

        – डॉ. नील माधव दास, संस्थापक, ‘तरुण हिंदू’, झारखंड

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