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काश्मीरकी समस्या : सर्वदलीय शासनकर्ताओंकी विफलता !

वैशाख कृष्ण प्रतिपदा / दि्वतीया , कलियुग वर्ष ५११५

वक्ता : श्री. अश्वनीकुमार च्रोंगू, पनून कश्मीर, जम्मू.


 

 

 

 

सारणी


 

१. जटिल बनती कश्मीरकी समस्या

१ अ. संपूर्ण भारतके हिंदुओंकी स्थिति कश्मीर जैसी ही अत्यंत दयनीय !

        ‘मैं कश्मीरके हिंदुओंकी दयनीय स्थितिपर बोलनेकी प्रतीक्षा कर रहा था; परंतु इस अखिल भारतीय हिंदू अधिवेशनमें भारतके अन्य स्थानोंके हिंदुओंकी दशा सुनकर मैं कश्मीरके हिंदुओंकी दयनीय स्थिति भूल गया ।

१ आ. अपनोंसे कठिन लडाई !

        जब विरोधी लोगोंसे लडना पडे और वे पराए हों, तो लडना सरल होता है; किंतु जब विरोधी अपने ही हों, तो उनसे लडना अत्यंत दुष्कर होता है ।

. तथाकथित हिंदुत्ववादी दलका हिंदूद्वेष !

        जब कश्मीरमें आतंकवाद बढा, हिंदुओंको कश्मीरसे बाहर कर दिया गया, कश्मीर हिंदूविहीन हो गया, सैकडों मंदिर जला दिए गए, उस समय कुछ लोगोंको तुरंत यह बात समझमें आनी चाहिए थी कि परिस्थिति विपरीत हो गई है । हमें लगा, ‘एक बार हिंदुत्ववादी पक्षका शासन आ जाए, सबकुछ ठीक कर लेंगे ।’ १९९९ में केंद्रमें हिंदुत्ववादी पक्षका शासन भी आया; किंतु कुछ ठीक नहीं हुआ । इसके विपरीत परिस्थिति और भी विकट हो गई ।

 

२. पाकका पक्ष लेनेवाला भारतीय शासन !

२ अ. भारतकी विफल विदेश नीति !

        जो मनुष्य चोरद्वारसे राष्ट्रपति बना हो, जिसे विश्वमें कोई स्वीकार न कर रहा हो, उस परवेज मुशर्रफको भारतमें बुलाकर सर्वप्रथम हिंदुत्ववादी कहलानेवाले शासनने महत्त्व दिया, यह हमारी विदेशनीतिकी सबसे बडी विफलता है । हिंदुत्ववादी (?) शासनने ही विश्वको परिचित करवाया कि मुशर्रफ ‘पाकिस्तानके राष्ट्रपति’ हैं और आगे उनसे चर्चा भी की ।

२ आ. पाक अधिकृत कश्मीर भारतमें लानेका

प्रस्ताव संसदमें पारित होनेपर भी पाकसे चर्चा क्यों ?

        वर्ष १९९४ में भारतीय संसदमें एक प्रस्ताव पारित हुआ । उसके अनुसार निश्चय किया गया कि कश्मीरका पाक अधिकृत भाग पुनः भारतमें लानेके लिए सर्व प्रकारके विकल्पोंका उपयोग किया जाएगा । आज हमारे पास धनबल है, अणुबल है, जनबल है, पूरा हिंदुस्थान है । ऐसे सर्व विकल्प उपलब्ध होनेपर भी और सर्व विकल्पोंका उपयोग कर पाक अधिकृत कश्मीरको भारतमें लानेका प्रस्ताव संसदमें पारित होनेके पश्चात भी हम पाकिस्तानसे चर्चा क्यों करते हैं ?

        राजा मानसिंह, राजा टोडरमल, बीरबल, तानसेन, शक्तिसिंह ऐसे अनेक हिंदू नवरत्नके नामसे बादशाह अकबरके दास बन गए । वही कार्य आज भी हो रहा है ।

 

३. ‘पनून कश्मीर’ द्वारा कश्मीरके लिए किए गए प्रयत्न

      ‘पनून कश्मीर’ के प्रयासोंसे कश्मीरके विषयमें मुसलमानोंने सर्वत्र जो झूठी बातें फैलाई थीं, उसकी वास्तविकता विश्वके सामने आई । इस कारण कश्मीरमें आतंकवाद और जातियवाद की जडें ढीली पड गर्इं । जबतक हमें अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं होता, तबतक हम शांतिसे नहीं बैठेंगे और ना ही किसीको बैठने देंगे ।’

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