ताजमहल का सच्चा इतिहास का पता लगाने को लेकर कमरे खुलवाने की याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि, ये एक पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने याचिका को खारिज किया। याचिका में कहा गया था कि, कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं कि शाहजहां ने ही ताजमहल बनवाया था। ताजमहल के तहखाने के कमरों को खुलवा कर सत्य और तथ्य का पता लगाने की गुहार लगाई गई थी। इस मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में डॉ रजनीश सिंह ने याचिका दाखिल की थी। दाखिल याचिका में विश्व प्रसिद्ध इमारत ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए फैक्ट फाइडिंग समिति बनाने का आदेश देने की अपील सर्वोच्च न्यायालय से की गई है।
BREAKING #SupremeCourt dismisses petition seeking a research to know the real history of #TajMahal
Petitions raised doubts over #ShahJahan
— LawBeat (@LawBeatInd) October 21, 2022
याचिका में कहा गया है कि, अब तक इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि मूल रूप से ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था। सर्वोच्च न्यायालय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी गई है, जिसमें डॉ. सिंह की याचिका खारिज कर दी गई है। डॉ सिंह ने ताजमहल के तहखाने के कमरों को खुलवा कर सत्य और तथ्य का पता लगाने की गुहार लगाई थी। याचिका में कहा गया है कि, ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल के मकबरे के तौर पर 1631 से 1653 के बीच 22 वर्षों में कराया गया था, लेकिन ये उस दौर के इतिहास में बयान की गई बातें भर हैं। इस बात को साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है।
स्रोत : एनडीटीवी