कुछ दिनों पूर्व तमिलनाडु के हिन्दूद्वेषी अभिनेता कमल हासन ने ‘राजा चोल के काल में हिन्दू धर्म नहीं था !’, ऐसा हास्यास्पद विधान किया । वास्तव में दिग्दर्शक मणिरत्नम् ने ‘पोन्नियिन सेल्वन’ (कावेरी नदी का पुत्र) नामक तमिल भाषा में एक ऐतिहासिक चलचित्र (फिल्म) बनाया है । यह चलचित्र में उन्होंने भारत के इतिहास का चोल साम्राज्य दिखाया है । वह साम्राज्य एवं उस काल में राजा चोल ने हिन्दू मंदिरों के लिए जो कार्य किया, इस विषय में जानकर लेंगे । इससे ध्यान में आएगा कि अभिनेता कमल हासन का विधान हास्यास्पद कैसे है ।
१. दक्षिण में सर्वाधिक काल टिका था चोल साम्राज्य !
भारत में अनेक राजा-महाराजा हुए, जिनके वंशज आज भी इतिहास का प्रमाण देते हैं । जिसप्रकार मराठा साम्राज्य ने अटक के पार ध्वज फहराया, उन्होंने राज्य में कुशल न्यायव्यवस्था चलाई, उसी पद्धति का चोल साम्राज्य दक्षिण भारत में भी फैला था । इतिहासकारों के मतानुसार चोल साम्राज्य ऐसा साम्राज्य है जो दक्षिण में सर्वाधिक काल टिका था । सम्राट अशोक के कुछ अशोक स्तंभों पर इस साम्राज्य का संदर्भ है । ९ वीं शताब्दी से १३ वीं शताब्दी तक यह साम्राज्य फलाफूला । इस साम्राज्य का पहला राजा, राजा चोल और उनका पहला पुत्र राजेंद्र चोल ने सेना, नौसेना दल, आर्थिक एवं सांस्कृतिक, इन सभी दृष्टि से राज्य को संपन्न बनाया । इनका साम्राज्य दक्षिण से लेकर सीधे आग्नेय में एशियातक पहुंच गया था, इसके साथ ही श्रीलंका का कुछ भाग, मालदीव समान टापुओं को अपने नियंत्रण में लिया । राजा राजा चोल ‘सबसे पराक्रमी राजा’ के रूप में पहचाने गए हैं । राजा राजा चोल के कार्यकाल में साम्राज्यविस्तार भारी मात्रा में हुआ ।
‘There was no Hindu religion during the time of Chola king’, claims Kamal Hassan who once used to spread the word of Christ to the worldhttps://t.co/hnck9xufwc
— OpIndia.com (@OpIndia_com) October 6, 2022
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२. चोल साम्राज्य में अनेक भव्यदिव्य मंदिर निर्माण किए जाना
दक्षिण भारत में आज जो भव्यदिव्य हिन्दू मंदिर खडे हैं, वे इसी चोल साम्राज्य में निर्माण किए गए हैं । इस साम्राज्य की स्थापना वर्ष ८५० के आसपास विजयालय में हुई । परांतक नाम का एक पराक्रमी राजा था; परंतु उसके अंतिम दिनों में उसे अनेक पराभवों का सामना करना पडा था । चोल साम्राज्य की नींव डगमगाने लगी । फिर उनके पुत्र राजा राजा चोल ने बागडोर हाथ में ली और साम्राज्य की समृद्धि ही नहीं, अपितु उसका विस्तार भी किया । तंजावुर में ‘बृहदीश्वर’ शिवमंदिर राजा राजा चोल ने निर्माण करवाया था । १० वीं शताब्दी में बनाया यह विशाल मंदिर आज भी वैसे ही है । अब ‘युनेस्को’ की ‘जागतिक धरोहर स्थल’की सूची में उसका समावेश है ।
३. चोल साम्राज्य में सक्षम नौदल, विविध कला, विद्या एवं हिन्दू धर्म को आश्रय
जिसप्रकार छत्रपति शिवाजी महाराजजी की युद्ध सज्ज नौसेना दल था, उसीप्रकार राजा राजा चोल का नौदल भी अपने काल में अग्रणी था । नौदल में अत्यंत कुशल सैनिक थे । सुव्यवस्थित, आवश्यक शस्त्रास्त्रों से वे सुसज्ज थे । साथ ही इस साम्राज्य में विविध कलाएं एवं विद्याएं फल-फूल रही थीं । इतिहास में उल्लेख मिलता है कि इस साम्राज्य के राजा अपने मंत्री एवं राज्य के अधिकारियों के परामर्श से राज्य करते थे । संपूर्ण राज्य अनेक मंडलों में विभाजित था । सार्वजनिक सभा लेना, यह उनके शासनकाल में एक प्रमुख कार्य था । इस शासनकाल में उत्तम सिंचन व्यवस्था की गई थी । शिल्पकला का उत्कर्ष भी इसी शासनकाल में हुआ था ।
४. चोल साम्राज्य का अंत
राजा राजा चोल के पुत्र के उपरांत चोल साम्राज्य का अस्त होने लगा । चोल एवं चालुक्य में निरंतर युद्ध होते रहे । १३ वीं शताब्दी के प्रारंभ में दक्षिण भारत में अन्य साम्राज्यों का उदय होने लगा । पांड्या वंश ने धीरे-धीरे साम्राज्य पर नियंत्रण करना प्रारंभ किया । चोल साम्राज्य के तीसरे राजा राजेंद्र का पराभव पांड्यों ने किया और इसप्रकार उस साम्राज्य का अंत हुआ । इतिहासकारों के मतानुसार ‘कुछ कौटुंबिक कारणोंवश भी चोल साम्राज्य का अंत हुआ था ।’’
(साभार : दैनिक ‘लोकसत्ता’, २८.९.२०२२)