क्या कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म से इस्लाम या ईसाई मजहब में धर्मांतरण करने के बावजूद अपनी जाति बरकरार रख सकता है और उसके आधार पर आरक्षण इत्यादि के फायदे उठता रह सकता है ? मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले से इस संबंध में चीजें स्पष्ट हुई है। इस्लाम अपनाने वाला एक व्यक्ति अपनी याचिका लेकर मद्रास उच्च न्यायालय पहुंचा था। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने स्पष्ट किया कि, जिस जाति में उसका जन्म हुआ, उसे वो धर्मांतरण के बाद भी अपनी पहचान के रूप में उपयोग नहीं कर सकता।
इस दौरान मद्रास उच्च-न्यायालय ने ये भी टिप्पणी की कि जब हिन्दू धर्म का कोई व्यक्ति किसी अन्य मजहब में धर्मांतरण करता है तो उसकी जाति नेपथ्य में चली जाती है। जैसे ही वो अपने धर्म में वापस लौटता है, उसकी जाति वाली पहचान भी फिर से वापस आ जाती है और वो उसका उपयोग कर सकता है। जिस व्यक्ति ने याचिका दायर की थी, वो 2008 में परिवार के साथ मुस्लिम बन गया था। उसने अपना नाम बदल लिया था और गैजेट में ये नहीं दिखाया था।
रामनाथपुरम के जोनल डिप्टी तहसीलदार ने 28 अक्टूबर, 2015 को कम्युनिटी सर्टिफिकेट जारी किया था। इसमें बताया गया था कि याचिकाकर्ता ‘लब्बैस समाज’ से ताल्लुक रखता है। जाति प्रमाण-पत्र का मामला तब संज्ञान में आया था जब उक्त व्यक्ति ‘तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमिशन (TNPSC)’ की परीक्षा में बैठा। उसने ग्रुप-2 के लिए प्रिलिमिनरी एग्जाम क्लियर कर लिया और मेंस में बैठा। लेकिन, अंतिम सिलेक्शन की सूची में उसे शामिल नहीं किया गया।
"The original caste remains under eclipse and as soon
as the person is reconverted to the original religion, the eclipse disappears and the caste automatically revives", Madras HC quotes from Supreme Court precedents.— Live Law (@LiveLawIndia) December 2, 2022
उसने जब RTI के माध्यम से इसका कारण पता किया तो हुए बताया गया कि उसे ‘बैकवॉर्ड क्लास (BC) मुस्लिम’ में शामिल नहीं किया गया, इसीलिए ऐसा हुआ है। उसे ‘सामान्य (General)’ कैटेगरी के अंतर्गत ही माना गया। इसके बाद वो उच्च न्यायालय पहुँचा। 25 दिसंबर, 2012 को काजी द्वारा जारी किए गए प्रमाण-पत्र में ये लिखा है कि वो मुस्लिम जमात में शामिल हुआ है। चूँकि धर्मांतरण के बाद आरक्षण के दावे पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है, इसीलिए मद्रास उच्च न्यायालय ने इस पर अधिक टिप्पणी करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता की याचिका रद्द कर दी।
स्रोत: ऑप इंडिया